भारत के लिए सामान्य रूप से निर्यात क्षेत्रक के महत्व
प्रश्न:रोजगार सृजन हेतु निर्यात क्षेत्र की क्षमताओं की पहचान करते हुए, भारत की कमजोर होती निर्यात प्रतिस्पर्धा को संबोधित करने हेतु कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। विश्लेषण कीजिए।(150 words)
दृष्टिकोण
- भारत के लिए सामान्य रूप से निर्यात क्षेत्रक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- रोजगार के अवसर सृजित करने में इस क्षेत्रक की संभाव्यता का उल्लेख कीजिए।
- भारत की कमज़ोर हो रही निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता का समाधान करने एवं रोजगार सर्जक निर्यात वृद्धि को प्राप्त करने हेतु उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों की चर्चा कीजिए।
उत्तर
वर्ष 2015 में, विश्व व्यापार निर्यात 16.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा जिसमें चीन की भागीदारी 13.72% थी जबकि भारत की भागीदारी केवल 1.67% की ही रही।
निर्यात क्षेत्रक और रोजगार सृजन
- रत्न-आभूषण, चमड़ा एवं कृषि जैसे श्रम गहन क्षेत्रक प्रच्छन्न और चक्रीय बेरोजगारी के मुद्दे से निपटने में सहायता कर सकते हैं।
- वर्ष 2012-13 के दौरान भारत में कुल रोजगार में निर्यात क्षेत्रक का योगदान 14.5% का रहा। एक्जिम बैंक के शोध के अनुसार, भारत में 2012-13 के दौरान प्रति 1 मिलियन डॉलर के निर्यात द्वारा 138 नौकरियों (रोजगार भूमिकाओं) के सृजन में सहायता मिली। यह 2014 के दौरान अमेरिका में प्रति 1 मिलियन डॉलर के निर्यात द्वारा 5.2 नौकरियों के सृजन की दर से कहीं अधिक है।
- इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन-विश्व बैंक (ILO-WB) का अध्ययन उच्चतर मजदूरी और अनौपचारिकता में कमी के संदर्भ में रोजगार पर निर्यातों के सकारात्मक प्रभाव को प्रमाणित करता है। बढ़ते निर्यात से भारत को 1999 से 2011 के बीच 800,000 नौकरियों को अनौपचारिक क्षेत्रक से औपचारिक क्षेत्रक में स्थानांतरित करने में सहायता मिली।
क्रिसिल की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत की निर्यात वृद्धि ऐसे समय में घट रही है जब वैश्विक परिवेश व्यापार के अधिक अनुकूल बन रहा है। वर्ष 2017 में भारत की निर्यात वृद्धि लगभग 9% रही जो वियतनाम और दक्षिण कोरिया की निर्यात वृद्धि (क्रमशः 24% और 18%) से अत्यधिक कम थी। श्रम गहन निर्यात क्षेत्रों अर्थात् रत्न-आभूषण, चमड़ा एवं चमड़ा उत्पादों तथा रेडीमेड वस्त्रों की प्रतिस्पर्धात्मकता में विगत दशक में कमी आई है। यद्यपि इसके लिए आंशिक रूप से विमुद्रीकरण (नोटबंदी), वस्तु एवं सेवा कर के कार्यान्वयन आदि के रूप में नीतिगत व्यवधानों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, किन्तु घटती निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक कदम:
- दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक गलियारा (DMIC) और समर्पित माल गलियारा (DFC) जैसी अवसंरचना परियोजनाओं को पूर्ण करने में तेजी लाकर भौतिक संपर्क में सुधार करना ताकि वितरण के समय को कम किया जा सके और निर्यातकों की पहुंच में वृद्धि की जा सके।
- श्रम प्रावधानों को लचीला बनाकर श्रम और भूमि विनियमों को सुगम बनाना। सभी राज्य सरकारों को सभी क्षेत्रकों के लिए नियत अवधि की रोजगार (FTE) सुविधा को शीघ्रता से कार्यान्वित करना चाहिए।
- निर्यात संवर्द्धन परिषदों (EPCs) की क्षमताओं को सुदृढ़ करना, जिससे अंततः इन निर्यात संवर्द्धन परिषदों द्वारा संबंधित महत्वपूर्ण उत्पाद बाजारों में भारतीय निर्यातों की हिस्सेदारी बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
- व्यापार विनियमों के सरलीकरण, निर्यात क्षेत्रक हेतु सरल ऋण उपलब्धता, विद्युत प्रशुल्क संरचनाओं को युक्तिसंगत बनाने आदि के माध्यम से बेहतर विनियमन द्वारा भारतीय उद्योगों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में भी वृद्धि होगी।
- भारत के व्यापार को संतुलित करने में इस क्षेत्रक की महत्वपूर्ण भूमिका को बनाए रखने हेतु सेवा क्षेत्रक पर नए सिरे से ध्यान देने की आवश्यकता है।
- इसके लिए 12 “चैंपियन सेवा क्षेत्रकों” में वृद्धि हेतु हाल ही में स्थापित निधि का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए।
- लाओस, वियतनाम आदि जैसी दक्षिण-पूर्व एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ घनिष्ठतर आर्थिक एकीकरण की संभावनाओं का पता लगाने हेतु वर्तमान BBIN नेटवर्क और BIMSTEC ढांचे का उपयोग करके पूर्वोत्तर से किए जाने वाले निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने पर ध्यान केन्द्रित करना।
- प्रभावी ऋण आपूर्ति, प्रौद्योगिकीय सहायता और बाजार की उपलब्धता के माध्यम से लघु, मध्यम एवं सूक्ष्म उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान कर उनके निर्यात में वृद्धि करना।
वैश्वीकरण के युग में, भारत के निर्यात क्षेत्रक में विकास, रोजगार सृजन और साझा समृद्धि को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं विद्यमान हैं। रोजगार-सर्जक विकास को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से श्रम प्रधान क्षेत्रों में उच्च निर्यात वृद्धि अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
Read More
- विश्व में परिवर्तित होता रोजगार परिदृश्य : भारत में स्कूली पाठ्यक्रम व व्यावसायिक शिक्षा
- अवसंरचना निवेश के BOT एवं EPC मॉडल
- ‘मिट्टी के लाल के सिद्धांत’ : देशीय राजनीतिक दलों और आंदोलनों द्वारा “स्थानीय” लोगों को रोजगार की मांग
- कृषि निर्यात नीति, 2018 : 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य
- भारत के कृषि व्यापार के संबंध में संक्षिप्त में परिचय : कृषि निर्यात में सुधार लाने के उपाय