बंगाल विभाजन : स्वदेशी आंदोलन की सफलताओं और कमियों की विवेचना
प्रश्न: बंगाल विभाजन के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या करते हुए, इसके आलोक में आरंभ किए गए स्वदेशी आंदोलन की सफलताओं और कमियों की विवेचना कीजिए।
दृष्टिकोण
- बंगाल विभाजन कब और किस प्रकार संपन्न किया गया, इसका संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- बंगाल विभाजन के लिए उत्तरदायी आधिकारिक व वास्तविक कारणों की व्याख्या कीजिए।
- बंगाल विभाजन के पश्चात आरंभ किए गए स्वदेशी आंदोलन की सफलताओं और कमियों की विवेचना कीजिए।
- स्वदेशी आंदोलन से प्राप्त अनुभवों के संदर्भ में इस आंदोलन के महत्व को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
बंगाल का विभाजन इसे दो प्रांतों में विभाजित करके किया गया जिसके अंतर्गत एक ओर जहाँ पश्चिम बंगाल, बिहार व उड़ीसा का विलय किया गया और कलकत्ता को इसकी राजधानी बनाया गया, वहीं दूसरी ओर पूर्वी बंगाल व असम का विलय किया गया और ढाका को इसकी राजधानी बनाया गया। ब्रिटिश सरकार ने बंगाल प्रांत के बड़े आकार को इस विभाजन का आधिकारिक कारण बताया जिसका प्रशासन एक ही गवर्नर द्वारा किया जाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, यद्यपि यह विभाजन ब्रिटिश सरकार के परोक्ष उद्देश्यों के कारण हुआ, जो इस प्रकार हैं:
- लॉर्ड कर्जन बंगाल में सशक्त रूप से उभरने वाली राष्ट्रीयता की भावना को कमजोर करना चाहता था।
- यह विभाजन कर्जन की बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के मध्य ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का एक भाग था।
- असम के यूरोपीय चाय बागान मालिक चटगाँव को एक बंदरगाह के रूप में विकसित करना चाहते थे ताकि चाय की परिवहन लागत को कम किया जा सके। एक पृथक राज्य का यह अर्थ था कि वे आर्थिक लाभों हेतु एक अनुकूल कराधान प्रणाली हेतु गवर्नर को प्रभावित कर सकते थे।
बंगाल विभाजन की प्रतिक्रिया में वर्ष 1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन के दौरान स्वदेशी आंदोलन को आरंभ करने निर्णय लिया गया। स्वदेशी आंदोलन की सफलता को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:
- इसने अनुनय-विनय और याचिका जैसे पुराने तरीकों के विपरीत ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष के नए तरीकों को प्रस्तुत किया। उदाहरण के लिए, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, भारत निर्मित वस्तुओं पर निर्भरता, स्वयंसेवकों को भर्ती करना तथा जनसमूहों को संगठित करने के लिए लोकप्रिय त्योहारों का आयोजन इत्यादि।
- यह प्रथम अखिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन था, क्योंकि यह बंगाल से बाहर देशव्यापी स्तर पर चलाया गया। उदाहरण के लिए, पंजाब में लाला लाजपत राय द्वारा, मद्रास में एच.एस. राव द्वारा और महाराष्ट्र में तिलक द्वारा इसका नेतृत्व किया गया।
- महिलाओं और छात्रों की भागीदारी के कारण इस ब्रिटिश-विरोधी संघर्ष को सामाजिक आधार पर काफी व्यापकता प्राप्त हुई।
- इस आंदोलन के परिणामस्वरूप वर्ष 1906 में कांग्रेस ने स्वराज अथवा स्व-शासन का एक प्रस्ताव पारित किया।
- इसके अतिरिक्त, टिस्को (TISCO) जैसी फैक्ट्रियों की स्थापना से आर्थिक प्रयासों को सुदृढ़ता प्राप्त हुई।
- शिक्षा परिषद को राष्ट्रवादी पद्धति से संरेखित करने के लिए इस दौरान राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की गई।
हालाँकि, इस आंदोलन में कुछ कमियाँ भी थीं जो निम्नलिखित हैं:
- इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस के भीतर नरमपंथियों और चरमपंथियों के मध्य मतभेद उत्पन्न हो गए, जिसके कारण अंतत: 1907 में सूरत विभाजन हुआ।
- इस आंदोलन को एक नेतृत्वहीन आंदोलन का नाम दिया गया क्योंकि इसके अधिकांश प्रमुख नेताओं जैसे तिलक, लाला लाजपत राय, अजीत सिंह और अन्य नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया गया अथवा उन्हें निर्वासित कर दिया गया।
- यह आंदोलन काफी हद तक उच्च और मध्यम वर्गों तक ही सीमित रहा तथा जनता तक पहुंच स्थापित करने में विफल रहा।
- इस आंदोलन ने लोगों को जागरुक किया लेकिन यह लोगों की आकांक्षाओं को पूरा न सका और लोगों में व्याप्त असंतोष को अभिव्यक्ति प्रदान न कर सका।
- लोगों को प्रेरित करने के लिए हिंदू त्योहारों और पौराणिक कथाओं पर बल दिया जाने लगा, जिससे यह धीरे-धीरे मुसलमानों को पृथक करने की ओर प्रवृत्त होने लगा। यह आंदोलन मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करने में सक्षम नहीं रहा।
इन कमियों के बावजूद स्वदेशी आंदोलन अपने तरीकों, अभी तक संलग्न नहीं रहे वर्गों की भागीदारी और आंदोलन के प्रारंभिक वर्षों के दौरान ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एकजुटता प्रस्तुत करने के कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण प्रयास था। स्वदेशी आंदोलन ने गांधीजी द्वारा संचालित आगे के विभिन्न आंदोलनों, मुख्यतः असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रेरित किया।
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