अश्गाबात समझौते : भारत के लिए इसके महत्व का मूल्यांकन

प्रश्न: अश्गाबात समझौते में शामिल होना वस्तुतः भारत के लिए अपने विस्तारित पड़ोस से जुड़ने की दृष्टि से मूल्यवान है। अश्गाबात समझौता क्या है? भारत के लिए इसके महत्व का मूल्यांकन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • अश्गाबात समझौते को परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए और बताइए कि भारत इसमें कब शामिल हुआ।
  • समझौते में भारत के शामिल होने के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • यदि कुछ चुनौतियां हों तो उनकी चर्चा कीजिए और उनका समाधान बताइए।

उत्तर

एक अंतर्राष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन गलियारे की स्थापना के लिए 25 अप्रैल 2011 को ईरान के इस्लामी गणतंत्र, ओमान के सुल्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान गणराज्य के मध्य अश्गाबात समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। अश्गाबात समझौते में मध्य एशिया और फारस की खाड़ी के बीच वस्तुओं के पारगमन और परिवहन की सुगमता की परिकल्पना की गई है। फरवरी 2018 में भारत के सम्मिलित होने के साथ ही, इसकी कुल सदस्यता छह हो गई है। इसमें भारत के अतिरिक्त ईरान, कज़ाखस्तान, ओमान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान सम्मिलित हैं।

भारत के लिए इस समझौते में सम्मिलित होने का महत्व:

  • कनेक्टिविटी तथा व्यापार: इस समझौते में प्रवेश से मध्य एशिया के साथ भारत के संपर्क विकल्पों में विविधता आएगी तथा इस क्षेत्र और वृहद यूरेशिया के साथ भारत के व्यापारिक तथा वाणिज्यिक संबंधों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह भारत को यूरेशियाई क्षेत्र के साथ व्यापारिक और वाणिज्यिक अंतःक्रिया बढ़ाने हेतु मौजूदा परिवहन और पारगमन गलियारे का उपयोग करने में सक्षम बनाएगा।
  • रणनीतिक लाभ: यह समझौता होर्मुज जल संधि में भारत के प्रवेश को संभव बनाते हुए उसे रणनीतिक पहुँच प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, यह अफगानिस्तान के साथ संपर्क बढ़ाने के भारत के प्रयासों में सहायक सिद्ध होगा।
  • उन्नत सहयोग: उत्तर-दक्षिण गलियारे की स्थापना के साथ ही, यह व्यापक रूप से जहाज, रेल (ट्रांस कैस्पियन रेलवे सहित) तथा सड़क मार्ग को शामिल करते हुए उत्तर-दक्षिण सहयोग में वृद्धि करेगा।
  • ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस: इसके अंतर्गत हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के मध्य व्यापार संबंधी अवरोधों को सुगम बनाना और वस्तुओं के आवागमन हेतु सरल प्रक्रियाएं सम्मिलित होंगी।
  • ऊर्जा सुरक्षा: इससे फारस की खाड़ी तक भारत की पहुंच में वृद्धि होगी जहां ईरान में भारत चाबहार बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। अफगानिस्तान के हाजीगक खनिज भंडार और मध्य पूर्व में स्थित भंडारों से खनिज संसाधनों के निष्कर्षण के लिए भी इसका लाभ उठाया जा सकता है।

भारत की चिंताएं 

  • इसके भागीदार देशों के पास सीमित संसाधन होने के कारण ऋण की अधिक आवश्यकता है।
  • समझौते को इस क्षेत्र में चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना से कठिन प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के रणनीतिक संबंधों ने भारत-ईरान के संबंधों को प्रभावित किया है। 
  • इस क्षेत्र में उग्रवाद के कारण समझौते को सुरक्षा चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

इन चिंताओं का समाधान करने से, अश्गाबात समझौते के माध्यम से यूरेशियाई संपर्क परियोजनाओं में भारत की भागीदारी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मौजूदा समझौतों के तहत एकीकरण प्रक्रिया में सहयोग करेगी।

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