न्यायिक समीक्षा, न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण पदों की व्याख्या

प्रश्न: भारतीय संदर्भ में न्यायिक समीक्षा, न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण (जूडिशियल ओवररीच) पद से आप क्या समझते हैं?

दृष्टिकोण:

  • न्यायिक समीक्षा, न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण पदों की व्याख्या कीजिए।
  • इन पदों के मध्य भिन्नता को स्पष्ट कीजिए।
  • विधिक वादों और उदाहरणों के माध्यम से रेखांकित कीजिए कि किन परिस्थतियों में न्यायालय ने सक्रियता, समीक्षा और अतिक्रमण का उपयोग किया है।

उत्तर:

शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के तहत, न्यायपालिका राज्य के नाम से विधियों की व्याख्या करती है एवं उन्हें लागू करती है तथा न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया के माध्यम से विधियों को बदलने अथवा उन्हें अवैध घोपित करने की शक्ति प्राप्त है। यद्यपि न्यायपालिका, विधायिका एवं कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में एक अधिक सक्रिय भूमिका के रूप न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण का उपयोग करती है।

न्यायिक समीक्षा:

न्यायिक समीक्षा की शक्ति न्यायपालिका को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13, 32 और 226 के तहत प्रदान की गई है जिसके माध्यम से न्यायपालिका एक सार्वजनिक निकाय द्वारा की गई प्रशासनिक कार्रवाई की समीक्षा करने और घोषणाओं अथवा आदेशों की रक्षा करती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया भी है जिसके माध्यम से न्यायपालिका केंद्रों एवं राज्य सरकारों द्वारा पारित कानूनों की वैधता और संवैधानिकता की जांच करती है।

न्यायिक समीक्षा का एक उदाहरण श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ वाद है। इस वाद में न्यायालय ने आईटी अधिनियम की धारा 66A को निरस्त कर दिया था क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों से असंगत थी।

न्यायिक सक्रियता:

यह एक न्यायिक सिद्धांत है, जो न्यायाधीशों को प्रगतिशील और नई सामाजिक नीतियों के पक्ष में न्यायिक अधिकारिक निर्णयों का सख्ती से पालन करने के लिए प्रेरित करता है। इसे संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनैतिक व्यवस्था से अपनाया गया है, इस उपकरण के माध्यम से विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के साथ-साथ कार्यपालिका के कार्यों की भी जांच की जाती है और उन्हें संवैधानिक के अनुरूप अधिक संगत बनाने के लिए संशोधनों का सुझाव दिया जाता है। भारत में, जनहित याचिका के आरम्भ के माध्यम से न्यायिक सक्रियता को स्थापित किया गया। विशेषज्ञता और शक्तियों की सीमाओं के भीतर बड़े सार्वजनिक हित संबंधी मामलों में, न्यायपालिका ने स्वतः संज्ञान अथवा जनहित याचिका से मामलों का फैसला किया है।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद में संविधान की मूल ढांचे के सिद्धांत का प्रतिपादन न्यायिक सक्रियता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

न्यायिक अतिक्रमण:

यह एक नकारात्मक अवधारणा है जिसके अंतर्गत न्यायिक सक्रियता के एक चरम रूप उपयोग किया जाता है। न्यायपालिका द्वारा विधायिका एवं कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में मनमाने, अनुचित और निरंतर हस्तक्षेप किए जाते हैं, जिससे शक्तियों के शक्ति के पृथक्करण के संवैधानिक सिद्धांत में विकृति उत्पन्न होती है।

2016 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्याम नारायण चौकसे बनाम भारत संघ वाद में सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाए जाने का निर्देश दिया गया था यह न्यायिक अतिक्रमण का एक उदाहरण है।

एक अन्य उदाहरण खुदरा दुकानों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध, इसके साथ ही यह नियम होटलों, रेस्तरां और बार में भी लागू होते हैं, जो किसी भी राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग के 500 मीटर के दायरे में स्थित हैं।

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