आर्कटिक क्षेत्र : भारत के दीर्घकालिक हित

प्रश्न: बढ़ते पारिस्थितिक और भू-राजनीतिक महत्व के आलोक में, आर्कटिक क्षेत्र भारत के दीर्घकालिक हितों की पूर्ति हेतु व्यापक अवसर प्रस्तुत करता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आर्कटिक क्षेत्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • आर्कटिक क्षेत्र के बढ़ते पारिस्थितिक एवं भू-राजनीतिक महत्व को रेखांकित कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार इन संभावनाओं का भारत के दीर्घकालिक हितों में वृद्धि करने हेतु उपयोग किया जा सकता है तथा इसके द्वारा भारत के समक्ष उत्पन्न प्रमुख चुनौतियों का भी उल्लेख कीजिए।
  • निष्कर्ष में इस दिशा में उठाए गए क़दमों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

उत्तर

वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) के कारण हिम पिघलने की अप्रत्याशित दर, इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की खोज तथा हाल के समय में नए व्यापार मार्गों के खुलने की संभावनाओं ने आर्कटिक क्षेत्र के बढ़ते पारिस्थितिक के साथ-साथ भू-राजनीतिक महत्व को भी रेखांकित किया है। यह भारत के लिए अवसर प्रदान करने के साथ-साथ इसके दीर्घकालिक हितों की भी पूर्ति कर सकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • जलवायु संबंधी अनुसंधान: वैश्विक जलवायु पर ध्रुवीय क्षेत्रों का व्यापक प्रभाव पड़ता है। आर्कटिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों का मानसून जैसी परिघटनाओं पर भी प्रभाव पड़ता है, जो भारत को प्रभावित करता है। भारत के पास ध्रुवीय क्षेत्र में अनुसंधान करने की क्षमताएं विद्यमान हैं, जिन्हें भारत ने अंटार्कटिका क्षेत्र के अपने पूर्व के अनुभवों से प्राप्त किया है। आर्कटिक में ध्रुवीय अनुसंधान द्वारा भारत जलवायु सुरक्षा संबंधी अपने दीर्घकालिक हितों की पूर्ति कर सकेगा। 2008 में हिमाद्रि रिसर्च स्टेशन की स्थापना भी भारत द्वारा इस दिशा में उठाए गए क़दमों को रेखांकित करती है।
  • रणनीतिक महत्व: आर्कटिक का भविष्य, आर्कटिक एवं गैर-आर्कटिक राज्यों के मध्य सहयोग पर निर्भर करता है। भारत को 2013 से आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया गया था। नॉर्वे जैसे देश भारत की विशिष्ट रणनीतियों के अंतर्गत महत्वपूर्ण रहे हैं। यह इस क्षेत्र के भविष्य को निर्धारित करने हेतु आर्कटिक एवं गैर-आर्कटिक राज्यों के मध्य सहयोग की क्षमता को इंगित करता है। हालांकि, यह क्षेत्र फिलहाल ग्लोबल कॉमन्स (जिस संसाधन पर किसी भी देश का अधिकार न होना) में शामिल नहीं है परन्तु फिर भी यह वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: आर्कटिक में तेल और प्राकृतिक गैस के प्रचुर भंडारों की विद्यमानता और इन संसाधनों (विशेषकर कच्चे तेल पर) पर हमारी निर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत हेतु आर्कटिक क्षेत्र को अधिक महत्वपूर्ण बनाती है। साथ ही, यह भारत को अपने ऊर्जा आयातों में विविधता लाने में भी सहायता कर सकता है। जैसे- भारत इस क्षेत्र में तेल एवं गैस के अन्वेषण हेतु रूस के साथ सहयोग करने के लिए इच्छुक है।
  • आर्थिक महत्व: आर्कटिक क्षेत्र में खनिज संसाधन जैसे स्वर्ण, निकल, तांबा, ग्रेफाइट और यूरेनियम इत्यादि मौजूद हैं। उल्लेखनीय है कि इन संसाधनों का प्रयोग मोबाइल फ़ोन, परमाणु रिएक्टर जैसे उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, आर्कटिक क्षेत्र के नए मार्ग के खुलने से ग्लोबल कनेक्टिविटी परिदृश्य परिवर्तित हो सकता है। अतः, इस क्षेत्र में संलग्न होना भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार, आर्कटिक क्षेत्र भारत के दीर्घकालिक हितों की पूर्ति करने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में अपने हितों के संरक्षण के लिए भारत को आर्कटिक परिषद के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। आर्कटिक परिषद के अन्य पर्यवेक्षकों जैसे जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के साथ सहयोग भी भारत की स्थिति को सुदृढ़ बनाएगा। हालाँकि, भारत को अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के संबंध में आर्कटिक नीति का निर्माण करने की आवश्यकता है, जैसा कि चीन एवं दक्षिण कोरिया जैसे देश पहले ही निर्मित कर चुके हैं।

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