विवेकाधीन शक्ति के कारण बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार और इसके समाधान

प्रश्न: भ्रष्टाचार कम करने का एक महत्वपूर्ण पहलू सरकारी अधिकारियों को प्राप्त विवेकाधिकार शक्तियों को न्यूनतम करना है। विश्लेषण कीजिए। साथ ही, उन उपायों को भी सुझाइए जिनके द्वारा यह हासिल किया जा सकता है।

दृष्टिकोण:

  • विवेकाधीन शक्तियों और उनके अस्तित्व के कारणों की एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत कीजिए।
  • विवेकाधीन शक्तियों और भ्रष्टाचार के मध्य संबंधों का विश्लेषण कीजिए।
  • इसके स्थान पर विभिन्न नियंत्रण तंत्रों की चर्चा कीजिए तथा उनके दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के उपाय सुझाइए।

उत्तरः

कार्यपालिका को विधायी शक्तियां प्रदान करने वाले विधान को सामान्यतः व्यापक और सामान्य अर्थों में तैयार किया जाता है। इससे विधि को वास्तविक, विशिष्ट और तथ्यात्मक स्थितियों (अर्थात् परिस्थिति विशिष्ट) में लागू करने के लिए प्रशासक को विकल्पों का एक व्यापक क्षेत्र प्राप्त होता है। “विवेकाधीन शक्तियों” का उदय प्रशासन में शक्तियों के व्यक्ति विशिष्ट प्रयोग होने की आवश्यकता होने के कारण होता है।

विवेकाधीन शक्तियां किसी अधिकारी को उसके व्यक्तिपरक ज्ञान और समझ के अनुसार स्थितियों का मूल्यांकन करने में सक्षम बनाती हैं। इस प्रकार ऐसी शक्तियों के उपयोग की स्वतंत्रता के साथ-साथ उनके कुप्रयोग और दुरुपयोग का मार्ग भी प्रशस्त होता है। परिणामतः ये निरंकुशतावाद और स्वेच्छाचारिता को बढ़ावा दे सकती हैं। विवेकाधीन शक्तियां एक या अन्य रूपों में भ्रष्टाचार को उत्पन्न करती हैं, जैसे :

  • ये भाई-भतीजावाद और रिश्वतखोरी को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, निश्चित मानदण्डों के अभाव में निचले पदों के लिए कर्मचारियों की भर्ती में साक्षात्कार के दौरान विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग होता है।
  • व्यक्तिगत पूर्वाग्रह और पक्षपात प्राय: अविवेकपूर्ण निर्णयों का कारण बन जाते हैं। उदाहरण के लिए सामाजिक और धार्मिक संघर्षों से संबंधित कानून और व्यवस्था की स्थिति को संभालना।
  • इनके माध्यम से अधिकारियों द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती, लाइसेंस की जाँच आदि के लिए पुलिस शक्ति का दुरुपयोग करना।
  • इनसे वित्तीय अनुशासनहीनता और प्रशासनिक कार्यों में अनियमितता को बढ़ावा मिल सकता है।

तथापि, वर्तमान समय की समस्याओं का समाधान किसी एक सामान्य नियम द्वारा नहीं किया जा सकता है। इन समस्याओं की जटिलता और विविधतापूर्ण प्रकृति के कारण विवेकाधीन शक्तियाँ एक आवश्यक बुराई हैं। हालांकि आंतरिक (उच्च अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक समीक्षा) के साथ-साथ बाह्य (विधायी और न्यायिक नियंत्रण के साथ-साथ मीडिया नियंत्रण) स्तरों पर तंत्र को नियंत्रित करने के उपाय पहले से ही मौजूद हैं तथापि और अधिक उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

सरकारी अधिकारियों द्वारा विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग को न्यूनतम करने हेतु उपाय:

  • ऐसे पर्यवेक्षक अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए जो इस व्यवस्था का निरीक्षण करे और इस सन्दर्भ में विशेषीकृत टिप्पणी प्रदान करे कि किसी अधिकारी द्वारा उसकी विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग किस प्रकार किया गया है।
  • पदोन्नति में प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली को पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए।
  • किसी भी प्रकार की व्याख्या में अस्पष्टता से बचने हेतु निश्चित कानूनी मसौदा तैयार किया जाना चाहिए।
  • जब कभी मानदंडों का उल्लंघन चिह्नित हो तो संबंधित अधिकारी के व्यक्तिगत उत्तरदायित्व को सुनिश्चित किया जाना चाहिए और पीड़ित नागरिक को उसके विरुद्ध हुए अनुचित व्यवहार के लिए क्षतिपूर्ति प्रदान की जानी चाहिए।
  • फाउंडेशनल और इन-सर्विस ट्रेनिंग कोसों में इन शक्तियों के उपयोग के समय पालन किये जाने वाले मानदंडों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।
  • सहभागी लोकतंत्र और विधि के शासन को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ नागरिक जागरुकता और सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • एक पारदर्शी मीडिया सरकारी गतिविधियों के संबंध में जनता के मत को जानने के लिए एक मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
  • निर्णय निर्माण प्रक्रिया को निर्देशित करने हेतु एक आचरण संहिता और एक नीतिपरक संहिता निर्मित की जानी चाहिए।

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