जीरो बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF) : प्रचलित पूंजी और रसायन गहन कृषि

प्रश्न: जीरो बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF), भारत में वर्तमान समय में प्रचलित पूंजी और रसायन गहन कृषि का एक विकल्प प्रदान करती है। विश्लेषण कीजिए।(150 words)

दृष्टिकोण

  • भारत में परम्परागत कृषि की वर्तमान स्थिति का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  • शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF) की अवधारणा की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि ZBNF किस प्रकार पूँजी तथा रसायन गहन पारंपरिक खेती का विश्वसनीय विकल्प उपलब्ध कराती है।
  • ZBNF को बढ़ावा देने के लिए उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत में प्रचलित पारंपरिक कृषि की विधियाँ पूँजी तथा उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भर हैं। उच्च उत्पादन लागतों, उच्च ब्याज दर, अस्थिर बाज़ारों तथा जैव-ईंधन आधारित आगतों की बढ़ती लागतों के कारण किसान ऋण के दुष्चक्र में फंस जाते हैं जिसके कारण अगामी कृषि ऋतु में कृषि एक अव्यावहारिक विकल्प बन कर रह जाती है।

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF) को पारंपरिक कृषि पद्धति के विकल्प के रूप में वर्णित और विकसित किया जा रहा है। यह कृषि की एक प्राकृतिक तकनीक है जिसके अंतर्गत किसी रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किए बिना या किसी ऋण के बिना तथा किसी इनपुट की ख़रीद पर धन व्यय किए बिना कृषि की जाती है। ZBNF खेतों में या उनके आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग द्वारा कृषि लागत को पूर्णतः समाप्त करने का प्रयास करती है। इसे दक्षिण के राज्यों, विशेषकर कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में व्यापक लोकप्रियता प्राप्त हुई है।

ZBNF व्यावसायिक कृषि के विकल्प के रूप में

  • यह अपेक्षा की जा रही है कि ZBNF के माध्यम से ऋणों पर निर्भरता समाप्त होगी, उत्पादन लागत में भारी कमी आएगी तथा किसानों को ऋण-जाल से मुक्ति मिलेगी। प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का उपयोग उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग में कमी करने में भी सहायक होगा।
  • इसमें उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के स्थान पर जैविक आगतों का प्रयोग कर पौधों की वृद्धि हेतु मृदा की आवश्यक क्षमता को प्राप्त किया जा सकता है। किसान गोबर, पौधों, मानव मल, तथा अन्य जैविक उर्वरकों का उपयोग फसल के संरक्षण के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए बकाइन वृक्ष (lilac tree) तथा मिर्च का घोल पौधों को कीटों से बचाने में सहायक हो सकता है।
  • यह पद्धति मृदा में जैविक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि करने के लिए केंचुओं की स्थानीय प्रजाति के प्रयोग पर बल देती है।
  • यह पद्धति मृदा की प्राकृतिक नमी को बचाए रखने, मृदा में वायु संचरण को बढ़ाने, मृदा स्वास्थ्य तथा उसकी उर्वरता में वृद्धि करने तथा मृदा में अनुकूल सूक्ष्म जलवायु (microclimate) के विकास को सुनिश्चित करने हेतु मल्चिंग तथा वाफ्सा (Waaphasa) के प्रयोग को बढ़ावा देती है।यह अंतर-शस्यन को भी बढ़ावा देती है। इसके अंतर्गत एकल फसल के लिए उपयोग किए जा सकने वाले संसाधनों का प्रयोग कर निर्दिष्ट भूमि से अधिक पैदावार प्राप्त करने हेतु एक ही साथ विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं।
  •  इसमें जलवायु-परिवर्तन तथा जल की बढ़ती कमी को ध्यान में रखते हुए एक सुदृढ़ कृषि पद्धति विकसित करने की क्षमता है। ZBNF को मुख्यधारा में लाना ZBNF को भारत में लगभग एक दशक से छोटे स्तर पर प्रयोग किया जा रहा है। किन्तु हाल ही में, दक्षिण भारत में इसे व्यापक पैमाने पर अपनाया गया है। आंध्र प्रदेश 100% रसायन मुक्त कृषि व्यवस्था को अपनाने के उद्देश्य से ZBNF को अपनाने वाला प्रथम राज्य बन गया है।

यद्यपि कुछ कदम जैसे- ZBNF को वैज्ञानिक मान्यता प्रदान करना, किसानों को कॉर्पोरेट प्रायोजित रासायनिक कृषि के चक्र से बाहर निकालने हेतु नीतिगत परिवर्तन, निवेश वृद्धि, रासायनिक उर्वरकों पर दिए जाने वाले अनुदान की समाप्ति और मौजूदा कृषि विज्ञान नेटवर्क को सुदृढ़ बनाना आदि ZBNF के व्यापक स्तर पर अंगीकरण में सहायक हो सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अनुसार, ZBNF कृषक संघों और स्वयं सहायता समूहों की स्थापना करके तथा ज्ञान के सृजन और प्रसार में किसानों को अग्रणी स्थान प्रदान करके सशक्त और समावेशी कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक सामाजिक पूंजी का निर्माण भी करती है।

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