भारत में कौशल विकास में निजी क्षेत्रक की भूमिका की समालोचनात्मक चर्चा

प्रश्न: हाल के वर्षों में भारत में कौशल विकास में निजी क्षेत्रक की भूमिका की समालोचनात्मक चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में, कौशल विकास क्षेत्रक में निरीक्षण और साथ ही वित्तीयन में सुधार के लिए कौन-से उपाय आवश्यक हैं? (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • परिचय में, वर्तमान परिस्थितियों और कौशल विकास क्षेत्रक एवं निजी क्षेत्रक की भूमिका को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता का उल्लेख कीजिये।
  • प्रश्न को दो भागों में विभाजित कीजिए- प्रथम भाग में निजी क्षेत्र की भूमिका और इसमें सुधारों की चर्चा कीजिए। दूसरे भाग को पुनः दो भागों में विभाजित कीजिए पहला, निरीक्षण संबंधी सुधार और दूसरा, वित्तपोषण।

उत्तर

भारत में प्रति वर्ष लगभग 1.1 मिलियन युवा जनसंख्या कार्यबल में शामिल हो जाती है। मैकिंसे रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से केवल एक चौथाई युवा ही नियोजित हो पाते हैं। यह भारत में कौशल विकास की निम्न स्थिति का सूचक है। – ऐसे में बीते कुछ समय से निजी क्षेत्रक द्वारा भारत में कौशल विकास के क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाई जा रही है जिसे निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है:

  • निजी ITIs की संख्या वर्ष 2007 में 2000 थी जो वर्तमान में बढ़कर 11000 हो गई है।
  • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation: NSDC) के अंतर्गत 6,000 से अधिक निजी प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की गई है।
  • मुख्य रूप से कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत सरकारी सहायता प्राप्त निजी प्रशिक्षण साझेदारों की संख्या एक दिन में पांच की दर से वृद्धि कर रही है।

निजी क्षेत्र की भूमिका को दो पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पहचाना गया है – श्रमबल में विद्यमान व्यापक कौशल अंतराल को पूरा करने में अकेले सरकार की अक्षमता तथा कौशल को उद्योग आधारित बनाने के बजाय उद्योगों के लिए अधिक प्रासंगिक बनाना।

हालांकि, उनकी बढ़ती भूमिका में कुछ चुनौतियाँ भी सम्मिलित हैं, यथा:

  • कौशल को बढ़ावा देने के क्रम में कौशल विकास से संबंधित मानदंडों और मानकों की उपेक्षा करना। उदाहरण के लिए आधार कार्ड की जांच, उपस्थिति की आवश्यकताओं और बैच के आकार संबंधी सीमाओं को लागू न किया जाना।
  • उचित विनियमन की कमी – निम्नस्तरीय संगठनात्मक शक्ति के कारण भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI), नेशनल काउंसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग (NCVT) द्वारा निर्मित प्रत्यायन मानदंडों का पालन नहीं करती है।
  • NCVT के पास पर्याप्त प्राधिकारों की कमी – NCVT द्वारा मुख्य रूप से सलाहकारी भूमिका निभाई जाती है। ऐसे में प्राधिकारिता की कमी का एक उदाहरण परीक्षा प्रक्रिया है – जहां प्रश्न पत्र NCVT द्वारा तैयार किया जाता है, लेकिन स्टेट काउंसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग (SCVT) के प्रशिक्षकों द्वारा प्रशासित और मूल्यांकित किया जाता है। इस प्रकार, वास्तव में गुणवत्ता मूल्यांकन में इसकी कोई भूमिका नहीं होती है।
  • अपर्याप्त परिणाम अभिविन्यास ,क्योंकि कौशल विकास के निजी केंद्र मांग चालित नहीं हैं।
  • विविधता और उपयुक्तता की कमी – निजी ITIs द्वारा पांच से भी कम ट्रेड्स के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, अभ्यास (प्रैक्टिस) के लिए कक्षाओं और कार्यशालाओं की कमी है और यहाँ कार्यरत शिक्षकों को बहुत कम भुगतान किया जाता है।
  • प्रशिक्षण मॉड्यूल के माध्यम से प्राप्त कौशल समुच्चय के आकलन हेतु प्रशिक्षण की बाद की अवधि के दौरान ध्यान न देना।

इन समस्याओं को व्यवस्थित रूप से हल करने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

  • पर्यवेक्षण में सुधार: 
  • अन्य शैक्षणिक बोर्ड्स की भांति, कौशल विकास क्षेत्र के लिए भी एक बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए जो प्रत्यायन, मूल्यांकन, प्रमाणीकरण और पाठ्यक्रम मानकों की निगरानी करेगा।
  • रेटिंग और रैंकिंग प्रणाली की व्यवस्था होनी चाहिए जिसका प्रकाशन समय-समय पर किया जाना चाहिए।
  • एकीकृत राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रणाली होनी चाहिए। इस उद्देश्य के लिए, एक कानूनी फ्रेमवर्क का भी निर्माण किया जाना चाहिए।
  • कौशल विकास के दौरान और प्रशिक्षण के पश्चात कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रभावों का आकलन करने के लिए तंत्र होना चाहिए।
  • वित्तपोषण:
  • वित्त का स्रोत सरकार, बहुपक्षीय एजेंसियाँ और कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) होना चाहिए।
  • संसाधनों को संगठित करने में नियोक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसे कर लाभ और प्रतिपूर्ति योग्य उद्योग योगदान के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

तेजी से परिवर्तित होते रोजगार बाजार में, भारत को निजी क्षेत्र की पर्याप्त भूमिका के साथ अपने कौशल विकास में बेहतर सुधार करने की आवश्यकता है।

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