भावनात्मक समझ : उच्च भावनात्मक समझ के मूल के रूप में आत्म-जागरुकता

प्रश्न: उच्च भावनात्मक समझ का मूल आत्म-जागरुकता है। यदि आप स्वयं की अभिप्रेरणाओं और व्यवहार को नहीं समझते हैं, तो दूसरों की अभिप्रेरणाओं और व्यवहारों की समझ विकसित करना लगभग असंभव है। उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भावनात्मक समझ को संक्षेप में परिभाषित करते हुए इसके अवयवों का उल्लेख कीजिए।
  • उच्च भावनात्मक समझ के मूल के रूप में आत्म-जागरुकता के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  • यह दर्शाने के लिए उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत कीजिए कि व्यवहार और अभिप्रेरणाओं के संदर्भ में, आत्म-जागरुकता के अभाव से दूसरों के प्रति समझ विकसित करना असंभव हो जाता है।
  • तदनुसार निष्कर्ष प्रदान करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

भावनात्मक समझ स्वयं की भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं की पहचान करने, समझने और उन्हें प्रबंधित करने की क्षमता है। भावनात्मक रूप से बुद्धिमान व्यक्ति चार क्षेत्रों अर्थात आत्म-जागरुकता, स्व-प्रबंधन, सामाजिक जागरुकता और संबंध प्रबंधन में सक्षम होता है।

इन चार में से, उच्च भावनात्मक समझ का मूल आत्म-जागरुकता है, जो हमारी अपनी भावनाओं, शक्तियों, सीमाओं, अभिप्रेरणाओं आदि को सटीक रूप से अनुभव करने और यह समझने की क्षमता है कि ये किस प्रकार किसी व्यक्ति और उसके आसपास के लोगों को प्रभावित करती है तथा कैसे व्यक्ति के व्यवहार को आकार प्रदान करती है।

आत्म-जागरुकता के लाभ हैं:

  • यह रचनात्मक प्रतिपुष्टि को स्वीकार करते हुए स्व-मूल्यांकन में सहायता करती है।
  • जीवन में स्वयं की अभिप्रेरणा और मूल्यों को समझने से व्यक्ति को उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य में प्रसन्नता प्राप्त होती है और यह प्रक्रिया उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर भी उस कार्य पर अपना ध्यान केन्द्रित रखने में सहायता करती है।
  • जो लोग अपनी सीमाओं से अवगत होते हैं, वे स्वयं या संगठन के लिए अवास्तविक लक्ष्य निर्धारित करने से बच जाते हैं।
  • समान स्थिति में विद्यमान लोगों की परिस्थितियों से स्वयं को सम्बद्ध करने और उनके साथ समानुभूति रखने की क्षमता, जो किसी भी मुद्दे के प्रति व्यक्ति में संवेदनशीलता उत्पन्न करती है। यह सहयोगियों की निष्ठा अर्जित करने में भी सहायक होती है।
  • यह अनियंत्रित बाह्य कारकों से निपटने और प्रतिकूल परिस्थितियों में उचित व्यवहार करने में सहायता करती है।

उदाहरण के लिए, दिन भर काम करने के पश्चात यातायात में फँसने से व्यक्ति क्रोधित हो सकता है और जिससे शेष दिन भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है। यह घर पर दूसरों के साथ उसके व्यवहार को भी प्रभावित कर सकता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति आत्म-जागरुक है तो व्यक्ति के पास कम से कम उस परिस्थिति के प्रति की जाने वाली प्रतिक्रिया को परिवर्तित करने का विकल्प विद्यमान होता है। वस्तुतः ऐसी स्थिति में वह निर्धारित कर सकता है कि यातायात में फँसने से वह परेशान नहीं होगा।

हालांकि, आत्म-जागरुकता के अभाव में न केवल व्यक्ति का हित बल्कि उस पर निर्भर व्यक्तियों के हित भी प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी प्रशासक का सार्वजनिक सेवाओं के वितरण के संबंध में स्वयं की अभिप्रेरणा के विषय में जागरुक न होना उसके व्यवहार को प्रभावित कर सकता है जिससे समस्या और अधिक गम्भीर हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक पिछड़े जिले में सेवारत कोई नौकरशाह व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त हो सकता है, लेकिन इससे न केवल उसकी छवि धूमिल होती है, बल्कि उन क्षेत्रों में रहने वालों का कल्याण भी प्रभावित होता है। इस तरह की कार्रवाइयाँ प्रशासन को उन लोगों से भी पृथक कर देती हैं जिनकी सेवा करना प्रशासन का प्रयोजन होता है।

इसी प्रकार, जो माता-पिता परिवार में मूल्यों और संवेदनाओं को बढ़ाने के लिए अपनी अभिप्रेरणाओं और जिम्मेदारियों की पहचान करने में विफल रहते हैं, उनके बच्चे मादक द्रव्यों, गलत संगति आदि के शिकार हो सकते हैं।

इसलिए अभिवृत्ति, व्यवहार, जिम्मेदारियों, अभिप्रेरणाओं जैसे गुणों के संबंध में आत्म-जागरुकता का मूल्यांकन उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता के लिए भी आवश्यक है जिनके अभाव में व्यक्ति दूसरों की भावनाओं को समझने और उनसे स्वयं को जोड़ने में विफल रहता है।

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