भरतीय रिजर्ब बैंक : अंतिम ऋणदाता’ की अवधारणा का संक्षिप्त परिचय

प्रश्न: RBI को ‘अंतिम ऋणदाता’ क्यों कहा जाता है? वाणिज्यिक बैंकों एवं सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करते हुए RBI द्वारा और क्या कार्य सम्पादित किए जाते हैं?

दृष्टिकोण:

  • अंतिम ऋणदाता’ की अवधारणा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि RBI को अंतिम ऋणदाता’ क्यों कहा जाता है।
  • RBI द्वारा संपादित किए जाने वाले अन्य कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तरः

‘अंतिम ऋणदाता’ वह संस्था होती है, ( सामान्यतः एक देश का केंद्रीय बैंक) जो वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे या अत्यधिक जोखिमपूर्ण या पतनोन्मुख माने जाने वाले बैंकों या अन्य पात्र संस्थानों को ऋण प्रदान करती है।

भारत में, जब वाणिज्यिक बैंक तरलता संकट के समय अपनी निधियों का अनुपूरण करने हेतु सभी संसाधनों का पूर्णतया उपयोग कर लेते हैं, तो वे अंतिम ऋणदाता के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से मांग करते हैं। अंतिम ऋणदाता के रूप में, RBI इन वाणिज्यिक बैंकों को उनकी पात्र प्रतिभूतियों एवं विनिमय पत्रों की गणना करके व उनकी प्रतिभूतियों की गारंटी पर ऋण प्रदान करके ऋणशोधन क्षमता प्रदान करता है तथा वित्तीय आपूर्ति करता है।

इस प्रकार, RBI को ‘अंतिम ऋणदाता’ की संज्ञा उसके द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सुरक्षा के लिए दी जाती है। RBI यह सुविधा, बैंक के जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने और बैंक की संभावित विफलता रोकने के लिए प्रदान करता है, जो प्रतिफल में अन्य बैंकों एवं संस्थानों को भी प्रभावित कर सकती है तथा जिससे बैंकिंग प्रणाली का संभावित विघटन हो सकता है। यह वित्तीय स्थिरता और देश की अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।

वाणिज्यिक बैंक सामान्यत: RBI से ऋण प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते हैं, क्योंकि इस प्रकार की कार्रवाई से यह संकेत मिलता है कि बैंक वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। साथ ही, अंतिम ऋणदाता के असीमित विस्तार से बैंक यह अपेक्षा करते हुए जोखिमपूर्ण निर्णय लेंगे कि RBI जोखिम लेने और विफल होने वाले बैंक के सहायतार्थ आवश्यक उपाय करेगा।

अंतिम ऋणदाता की उपर्युक्त भूमिका के अतिरिक्त, RBI निम्नलिखित कार्यों का संपादन करता है:

बैंकों के बैंकर के रूप में:

  • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत, RBI को देश की बैंकिंग प्रणाली के निरीक्षण और नियंत्रण हेतु व्यापक अधिकार प्राप्त हैं।
  • यह अंतर-बैंक लेनदेन का सुचारु एवं त्वरित समाशोधन और निपटान संभव बनाता है।
  • यह सभी बैंकों हेतु निधि अंतरण के सक्षम साधन उपलब्ध कराता है।
  • यह बैंकों को सांविधिक आरक्षित आवश्यकताओं और लेनदेन संतुलनों के अनुरक्षण हेतु RBI में उनके खातों को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।

सरकार के बैंकर के रूप में:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत, RBI सरकार के बैंकर, एजेंट और सलाहकार के रूप में कार्य करता है। यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बैंकिंग व्यवसाय के सुव्यवस्थित संचालन हेतु उत्तरदायी है। उदाहरण के लिए, RBI सरकार की ओर से सभी भुगतान प्राप्त करता है तथा सरकार की ओर से सभी प्रकार के भुगतान भी करता है। इसके अतिरिक्त RBI सरकार की निधियों को विप्रेषित करता है, सरकार हेतु विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय करता है और सभी बैंकिंग मामलों पर परामर्श प्रदान करता है।
  • RBI केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को नए ऋण जारी करने और सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन करने में सहायता प्रदान करता है।
  • RBI, केंद्र सरकार की ओर से ट्रेजरी बिल का विक्रय करता है और अल्पकालिक वित्त प्रदान करता है।

इस प्रकार, RBI वित्तीय प्रणाली के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का संपादन करता है।

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