विधायिका की स्वतंत्रता की रक्षा हेतु संविधान में उल्लिखित प्रावधान : विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध किये जाने के कारण तथा विभिन्न समितियों की अनुशंसा

प्रश्न: विधायिका को अवमानना या विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिए दण्डित करने की शक्ति का उपयोग संयम से करना चाहिए, मुख्य रूप से इसका प्रयोग सदन की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए न कि आलोचकों की स्वतंत्रता को समाप्त करने के लिए। चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भूमिका में, विधायिका की स्वतंत्रता की रक्षा हेतु संविधान में उल्लिखित प्रावधानों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • विधायिका को प्रदत्त विशेषाधिकारों के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए। 
  • विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध किये जाने के कारणों तथा विभिन्न समितियों की अनुशंसाओं का उल्लेख कीजिए।
  • संहिताबद्ध करने के संदर्भ में आवश्यक कदमों की चर्चा करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

भारतीय संविधान द्वारा अनुच्छेद 105 और 194 के अंतर्गत, संसद एवं राज्य विधान मंडलों और उनके सदस्यों को शक्तियां, विशेषाधिकार आदि प्रदान किये गये हैं। संहिताबद्ध न किये जाने के कारण, ये अधिकार और उन्मुक्तियां व्यापक रूप से ब्रिटिश संसदीय परंपराओं के अनुरूप शासित होती हैं, जैसा कि संविधान निर्माताओं द्वारा मूल रूप से निर्धारित किया गया था।

इन विशेषाधिकारों का उद्देश्य सदनों में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना और बाह्य कारकों जैसे कि मीडिया के अनावश्यक प्रभाव या दबाव से सुरक्षा प्रदान करना है। ये विधायिका के सदस्यों/प्रतिभागियों को, सदन में दिए गये किसी वक्तव्य, दिए गये किसी मत या सदन की अन्य कार्यवाही के संदर्भ में, न्यायिक जांच से सुरक्षा प्रदान करते हैं।

हालांकि, अनेक अवसरों पर विशेषाधिकारों की अवमानना एवं उनके उल्लंघन के लिए दंड की शक्ति की आलोचकों, मूलतः सिविल सोसायटी और मीडिया, द्वारा आलोचना की गई है। यह आलोचना विशेषतः आलोचना की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए की गयी। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार किया जाना चाहिए:

  • इसे व्यापक रूप से सदन की छवि या उसके किसी सदस्य की “छवि” की सुरक्षा जैसे अप्रासंगिक प्रकरणों में उपयोग किया जाता है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में लोगों को विधायकों के विशेषाधिकार के उल्लंघन के आरोप में विशेषाधिकार समितियों द्वारा सम्मन जारी किया जाता है।
  • कई बार मीडिया द्वारा की जाने वाली आलोचना के विरोध में इसका उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, हाल ही में कर्नाटक विधानसभा द्वारा दो पत्रकारों को विधायक के भाषण के विरोध में लिखने पर जुर्माना और कारावास की सजा दी गयी।
  • हालांकि विशेषाधिकारों द्वारा सदन में वाक् एवं अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वंत्रता प्रदान की गयी है, जबकि सामान्य लोगों की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनेक प्रतिबंध आरोपित करके सीमित किया गया है।

विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता

अतः उपर्युक्त कारणों से संसदीय विशेषाधिकार को परिसीमित और परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है ताकि :

  • इसे मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित किया जा सके।
  • उनकी अस्पष्टता, अनिश्चितता और अभेद्यता को समाप्त किया जा सके।
  • हितों के टकराव को समाप्त किया जा सके, क्योंकि सांसद स्वयं अपने ही मामले में न्याय करते हैं और यह निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • भ्रष्टाचार के कृत्यों को छुपाने के लिए इसके दुरुपयोग को रोका जा सके। उदाहरण के लिए, 1998 के पी.वी.नरसिम्हा राव बनाम CBI मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि रिश्वत लेकर अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मत देने वालों को उनके विशेषाधिकारों के कारण अभियोजन से उन्मुक्ति मिल गई थी।

राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग, प्रथम एवं द्वितीय प्रेस आयोगों और भारतीय प्रेस काउंसिल ने अपनी रिपोर्ट में इन विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने के पक्ष में तर्क दिया है। इसके साथ ही, भविष्य में समायोजन की संभावना होनी चाहिए और संसद की संप्रभुता को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

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