शस्त्र व्यापार संधि (ATT) : संधि के उद्देश्य और चुनौतियां

प्रश्न: शस्त्र व्यापार संधि (ATT) के उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए, उन चुनौतियों की चर्चा कीजिए जो ATT को इसकी पूर्ण क्षमता से उपयोगित किये जाने में बाधक हैं।

दृष्टिकोण

  • शस्त्र व्यापार संधि (ATT) का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर आरम्भ कीजिए।
  • शस्त्र व्यापार संधि के उद्देश्यों को वर्णित कीजिए।
  • शस्त्र व्यापार संधि का उसकी पूर्ण क्षमता में उपयोग किए जाने को बाधित करने वाली चुनौतियों पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह सुझाते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

पारंपरिक हथियारों का उपयोग युद्ध को जारी रखने और परिणामस्वरूप मानव अधिकारों का व्यापक उल्लंघन करने में किया जाता है। इसलिए 2013 में अंगीकृत शस्त्र व्यापार संधि (ATT) को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था। पारंपरिक हथियारों के हस्तांतरण को नियंत्रित करने के लिए यह विधिक रूप से बाध्यकारी प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संधि है।

शस्त्र व्यापार संधि (ATT) के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

  • पारंपरिक हथियारों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विनियमों को विनियमित करने या सुधारने के लिए उच्चतम संभव सर्वनिष्ठ अंतरराष्ट्रीय मानकों की स्थापना;
  • पारंपरिक हथियारों के अवैध व्यापार को रोकने एवं उन्मूलन हेतु उनके दुरूपयोग को प्रतिबंधित करना ताकि निम्नलिखित को सुनिश्चित किया जा सके:
  • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता;
  • मानव उत्पीड़न में कमी;
  • पारंपरिक हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में राज्य पक्षकारों द्वारा सहयोग, पारदर्शिता और जिम्मेदारीपूर्ण कार्रवाई और इस प्रकार उनके मध्य परस्पर विश्वास का विकास।

इसके कार्यान्वयन के पांच वर्षों के बाद भी, सरकारें निम्नलिखित चुनौतियों के कारण शस्त्र व्यापार संधि की पूरी क्षमता का उपयोग करने में विफल रही है: 

  • राष्ट्रीय कानून: देश विशेष रूप से शस्त्र व्यापार संधि की विधिक रूप से बाध्यकारी प्रकृति के प्रति सचेत हैं और जब तक इस विषयवस्तु का राष्ट्रीय कानून के आलोक में पूरी तरह से विश्लेषण कर लिया जाए, तब तक इसके अनुसमर्थन/स्वीकार्यता के लिए आगे बढ़ने के इच्छुक नहीं हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात आदि जैसे देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं किन्तु अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा: कुछ मामलों में, अस्थिर क्षेत्रीय सुरक्षा किसी देश की किसी ऐसी संधि में सम्मिलित होने की इच्छा को प्रभावित करती है जिसमें हथियारों को स्थानांतरित करने की क्षमता सीमित करने की संभाव्यता होती है। उदाहरण के लिए, उत्तर कोरिया, ईरान और सीरिया जैसे देश इस संधि के विरोध में हैं।
  • सीमित अंतर-एजेंसी सहयोग: यह समस्या कई कारकों के संयोजन से उत्पन्न होती है जैसे सहयोग हेतु सुस्थापित औपचारिक दिशा-निर्देशों का अभाव, प्रमुख हितधारकों के मध्य पर्याप्त औपचारिक और अनौपचारिक नेटवर्क का अभाव तथा तथा सूचना के आदान-प्रदान एवं विनिमय को सुगम बनाने के लिए पर्याप्त अवसंरचना का अभाव।
  • नागरिक समाज की चिंता: राष्ट्रीय संप्रभुता या सशस्त्र रक्षा के व्यक्तिगत अधिकारों के विषय में चिंतित समूह, शस्त्र व्यापार संधि (ATT) के कार्यान्वयन की दिशा में नकारात्मक रहे हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित समूह जैसे नेशनल राइफल एसोसिएशन (NRA), नेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन आदि।

भारत की विशिष्ट चिंताएं:

  • भारत ने इस संधि द्वारा पारंपरिक हथियारों के अवैध व्यापार और उपयोग की समस्या का समाधान न करने के विषय में चिंता व्यक्त की है।
  • इसके अतिरिक्त, शस्त्र व्यापार संधि (ATT) निर्यातक और आयातक देशों के मध्य दायित्वों का उचित संतुलन सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत का मानना है कि निर्यात करने वाले राज्यों के प्रति संधि में एक प्रकार का अंतर्निहित पक्षपात विद्यमान है जिसका सहारा लेकर निर्यातक देश आसन्न परिणामों पर विचार किए बिना आयातक राज्यों के विरुद्ध एकपक्षीय उपाय कर सकते हैं।

उपर्युक्त चुनौतियों का सर्वसम्मति आधारित बहु-हितधारक दृष्टिकोण द्वारा प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सकता है। संधि के सदस्य देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शस्त्र व्यापार संधि (ATT) की प्रतिबद्धता को भुलाया न जाए और हथियारों के अनियमित एवं अनुत्तरदायित्वपूर्ण हस्तांतरण के नकारात्मक परिणामों को कम करने के प्रयासों के साथ सामंजस्य बनाते हुए इसका सार्थक और प्रभावी कार्यान्वयन किया जाए।

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