भारत में श्रम बाजार के अनौपचारीकरण की अवधारणा एवं प्रसार

प्रश्न: श्रम बाज़ार के बढ़ते ‘अनौपचारीकरण’ को आर्थिक संभाव्यता को साकार करने में एक अवरोध के साथ-साथ दीर्घकालिक आर्थिक विकास तथा गरीबी न्यूनीकरण में एक व्यवधान के रूप में देखा जाता है। चर्चा कीजिये।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में भारत में श्रम बाजार के अनौपचारीकरण की अवधारणा एवं प्रसार को बताइए।
  • अर्थव्यवस्था के अनौपचारीकरण में वृद्धि हेतु उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि ये कारक दीर्घकालिक रूप से आर्थिक विकास और गरीबी न्यूनीकरण में एक व्यवधान के रूप में किस प्रकार कार्य कर सकते हैं।

उत्तर

व्यापक रूप से, श्रम बाजार के अनौपचारिकरण को ऐसी परिस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें अनौपचारिक श्रमबल का औपचारिक श्रमिक बल से अनुपात, या कुल श्रमबल में अनौपचारिक श्रमबल का भाग, समय के साथ बढ़ जाता है।

  • असंगठित क्षेत्र की सांख्यिकी पर समिति के अनुसार असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र में देश का 90 प्रतिशत श्रमबल और राष्ट्रीय आय का 50 प्रतिशत हिस्सा संबद्ध है।
  • NSSO आंकड़ों (2011-12) के अनुसार, कृषि क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक और गैर-कृषि क्षेत्र (विनिर्माण, निर्माण क्षेत्र का वर्चस्व) का लगभग 80 प्रतिशत रोजगार अनौपचारिक श्रेणी में आता है।

अनौपचारीकरण के लिए उत्तरदायी कारक

  • प्रतिबंधित श्रम और हायर एंड फायर कानून जो संविदा पर की जाने वाली नियुक्तियों को बढ़ावा देते हैं।
  • बाजार-तंत्र और प्रतियोगिता के कारण अप्रचलित उद्योगों जैसे कपड़ा मिलों को बंद करना पड़ा जिसके कारण अंततः औपचारिक नौकरियों में कमी आई।
  • विनिर्माण पर बल न दिये जाने के कारण ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण करने वाले लोगों के लिए औपचारिक नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा है।
  • निरक्षरता एवं निम्न कौशल स्तर संयुक्त रूप से औपचारिक नौकरी के अवसरों में गिरावट लाते हैं।

यद्यपि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था औपचारिक अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करती है, फिर भी, इसके नकारात्मक परिणामों की अवहेलना नहीं की जा सकती है। अनौपचारिक नौकरियों में सामान्य तौर पर कम मजदूरी, नौकरी की सुरक्षा का अभाव, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा तथा अन्य कई व्यावसायिक खतरे विद्यमान होते हैं।

आर्थिक विकास और गरीबी कम करने के लिए अवरोध के रूप में अनौपचारीकरण

  • इससे मानव संसाधनों का संकेन्द्रण कम उत्पादकता वाले अनौपचारिक क्षेत्र की कार्यों में होता है, जो हमारी सम्पूर्ण आर्थिक संभाव्यता को साकार करने की संभावना को विफल करता है।
  • अनौपचारिक श्रमिकों को नियमित और उचित मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता है।
  • यह असमानता को बढ़ाता है, बचत दर को कम करता है और अंततः ऋण चक्र और विकास को बाधित करता है।
  • अनौपचारिक श्रमिकों को कल्याणकारी लाभों जैसे स्वास्थ्य सेवा, बीमा और शिक्षा सुविधाओं तक पहुंच प्राप्त नहीं है।
  • इससे आउट ऑफ़ पॉकेट व्यय में वृद्धि होती है और गरीबी की समस्या बढ़ जाती है।
  • वित्तीय साक्षरता का निम्न स्तर अनौपचारिक श्रमबल को ऋण तक पहुँच से वंचित कर देता है, इस प्रकार यह अर्थव्यवस्था में घरेलू खपत और नकदी प्रवाह को कम करता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की नकदी आधारित प्रकृति इसे कर अपवंचन एवं काले धन की उत्पति का एक प्रमुख स्रोत बनाती है, जिसके कारण राज्य अपने वैध कर आधार से वंचित हो जाता है।

भारत को सरलता से जनसांख्यिकीय रूप से एक औपचारिक अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, श्रमिक क्षेत्र सुधार, वित्तीय समावेशन, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता आदि सभी पहलों को संयुक्त रूप से कार्य करने की आवश्यकता है ताकि देश के भीतर यह सुनिश्चित किया जा सके सके कि विकास के परिणाम सभी श्रमिकों को समान रूप से मिल रहे हैं।

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