आपदा जोखिम न्यूनीकरण की अवधारणा : स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता

प्रश्न: आपदा जोखिम न्यूनीकरण के एक समग्र दृष्टिकोण के लिए, देशज पारंपरिक ज्ञान को मुख्यधारा में लाने और उसे आधुनिक तकनीकों से जोड़ने की आवश्यकता है। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण की अवधारणा को संक्षेप में परिभाषित करते हुए इसे स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान के लाभों के साथ संबद्ध कीजिए।
  • विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में विभिन्न जोखिमों की गणना करके स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
  • व्यापक आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीति के निर्माण हेतु आधुनिक तकनीकों के साथ पारंपरिक ज्ञान डोमेन्स को एकीकृत करने के कुछ तरीकों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण आपदा से संबंधित सामाजिक-आर्थिक सुभेद्यता को पहचानने, इसका मूल्यांकन करने और न्यूनीकरण के व्यवस्थित दृष्टिकोण को संदर्भित करता है।
  • देशज पारंपरिक ज्ञान स्थानीय पारिस्थितिकी के आधार पर स्थानीय कौशल, ज्ञान और सामग्रियों पर आधारित होता है और स्थानीय रूप से जोखिम संभावित क्षेत्रों में इसे अपनाए जाने का अवसर प्रदान करता है। सांस्कृतिक विरासत, पारंपरिक प्रौद्योगिकी और कौशल को एकीकृत रूप में व्यवस्थित करके आपदा जोखिम न्यूनीकरण के प्रभावी साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से एकीकरण की आवश्यकता का विस्तृत वर्णन किया जा सकता है:

पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र प्रबंधन:

  • विशेष स्थानीय प्रथाओं जैसे कि सिक्किम में भूस्खलन से सुरक्षा हेतु बोल्डर सॉसेज दीवारों (boulder sausage walls) का निर्माण करना, भू-क्षरण को कम करने हेतु ढलुआ खेती, ‘जल पूर्वानुमेयता’ (वाटर प्रिडिक्टबिलिटी) को नियंत्रित करने के लिए ग्लेशियर ग्राफ्टिंग और कृषि प्रणालियों के विविधिकरण हेतु लंबवत ऋतुप्रवास आदि आपदा जोखिम न्यूनीकरण में सहायता प्रदान कर सकते हैं।

मरूस्थल पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन:

  • कैर भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक देशीय झाड़ी है। सूखे और गर्मी को सहन करने की इसकी विशेष क्षमता इसे मौसम पूर्वानुमानित करने में एक सक्षम प्रजाति के रूप में स्थापित करती है। इसकी मृदा निर्माण और मृदा की क्षारीयता को कम करने की क्षमता के कारण पर्यावरणीय स्थिरता के साथ-साथ खाद्य, औषधीय उपयोग, निर्माण सामग्री, ईंधन, लकड़ी आदि के रूप में उपयोग किए जाने के कारण पश्चिमी राजस्थान और गुजरात की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

तटीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन:

  • अपने स्वदेशी ज्ञान का प्रयोग कर दक्षिणी अंडमान के चोलारी गांव का मछुआरा समूह काली चींटियों, घोंघे, मेंढक और सफेद कीड़े के व्यवहार से चक्रवात के पूर्वानुमान लगाते हैं।

नदी घाटी प्रबंधन :

  • असम के नंदेश्वर गांव के स्थानीय लोगों द्वारा नहर तटबंधों के साथ बांस-रोपण जैसी स्वदेशी रणनीति का उद्देश्य प्रति वर्ष तटबंधों को उनमें दरारों के पड़ने और भारी वर्षा के समय उनके बह जाने से बचाकर स्थानीय लोगों के जीवन को बचाना  है।

भूगर्भीय जोखिम प्रबंधन:

  • कश्मीर में भूकंप जोखिम संवेदनशील आवास निर्माण की प्रक्रियाओं जैसे ताक प्रणाली जिसके अंतर्गत लकड़ी या लकड़ी के बड़े टुकड़े को चिनाई की गई दीवारों में क्षैतिज स्थिति में लगाकर ऐसी दीवार को फैलने और इसमें दरार पड़ने से रोका जाता है।

जल संसाधन प्रबंधन:

  • त्रिपुरा में रात्रि में खिलने वाले चमेली के फूलों से ऋतुजैविकी (जलवायु संबंधी प्रभावों की दृष्टि से) के द्वारा वर्षा भिन्नता के पूर्वानुमान लगाए जाते हैं। यह स्वदेशी ज्ञान कृषकों द्वारा यहाँ पूर्व ही फसल रोपण गतिविधियों की योजना बनाने में सहायता करके फसल संकट से संरक्षण प्रदान करता है।

वृहद् आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु, इन स्वदेशी तकनीकों को आधुनिक तकनीकों जैसे भूकंप जोखिम के मानचित्रण के लिए भौगोलिक संकेतक प्रणाली (GIS) और सुदूर संवेदी उपकरण (remote sensing tools), सक्रिय ज्वालामुखी की निगरानी के लिए थर्मल इन्फ्रारेड (TIR) इमेजरी, लैंडस्केप के विश्लेषण हेतु रिमोट सेंसिंग, सूनामी से पूर्व भू-विस्थापन के सापेक्षिक क्षेत्र स्तर का अनुमान लगाने हेतु सिंथेटिक एपर्चर रडार (Synthetic Aperture Radar: SAR) का उपयोग, भूस्खलन क्षेत्र वर्गीकरण के मानचित्र आदि के निर्माण हेतु मल्टीस्पेक्ट्रल सैटेलाइट इमेजरी (multispectral satellite imagery) और प्रारंभिक चेतावनी एवं पूर्वानुमान प्रणाली यथा एरिया साइक्लोन वार्निंग सेंटर(Area Cyclone Warning Centres: ACWCs), उपग्रह आधारित नदी घाटी प्रबंधन प्रणाली, आदि के साथ संबद्ध किया जा सकता है।

आधुनिक तकनीक के साथ मुख्यधारा में लाने की विधियां:

  • इन स्वदेशी प्रथाओं को प्रलेखित करना और उन्हें राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पायलट कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदर्शित करना।
  • स्वदेशी ज्ञान और आधुनिक तकनीकों के मध्य समन्वय स्थापित करने संबंधी व्यापक अनुसंधान, शिक्षण और जागरूकता निर्माण कार्यक्रम को संचालित करना।
  • नीति निर्माण प्रक्रिया में राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों के साथ सभी हितधारकों (उनके स्वदेशी ज्ञान को समावेशित करने हेतु) को शामिल करना।
  • स्वदेशी ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय स्तर के संस्थागत अवसंरचना का निर्माण करना और इसे प्रमुख आपदा जोखिम न्यूनीकरण में समन्वित करना।
  • नीतिगत स्तर, अर्थात विधायकों एवं प्रशासकों और सामुदायिक स्तर, अर्थात स्थानीय नेताओं एवं प्रभावशाली नागरिकों दोनों में परिवर्तन अभिकर्ताओं की पहचान और प्रशिक्षण।
  • अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय नागरिक समाज संगठनों को अपने संबंधित एजेंडे (कार्य-सूचियों) में स्वदेशी ज्ञान को सम्मिलित करने के लिए सूचना का प्रसार।

अतः, आधुनिक तकनीकों और स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान के दृष्टिकोण का समन्वय बेहतर आपदा निवारण, तैयारी, प्रतिक्रिया और प्रभावी लागत में शमन, सहभागिता एवं संधारणीय विकास की दिशा के मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

Read More 

भारतीय शहरीकरण के तीव्र विकास : शहरों को संधारणीय एवं आपदा-प्रत्यास्थ बनाने हेतु उपायों का सुझाव

अवसंरचनाओं की आपदाओं के प्रति सुनम्यता (DRI) की संक्षिप्त व्याख्या

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 : राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और इससे संबंधित निकायों के मध्य दृष्टिकोण

विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति कृषि क्षेत्र की सुभेद्यता

आपदा जोखिम न्यूनीकरण में प्रौद्योगिकी की भूमिका : आपदा प्रभावित क्षेत्रों में तकनीकी समाधानों के अनुप्रयोग में आने वाली चुनौतियां

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.