स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश में ‘क्रांतिकारी आन्दोलन’ के प्रसार एवं उनकी प्रमुख गतिविधियों पर प्रकाश डालें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • क्रांतिकारी आन्दोलन का संक्षिप्त परिचय दें।

मुख्य भाग

  • उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी गतिविधियों एवं उसके प्रसार को बताएं।

निष्कर्ष

  • क्रांतिकारी आन्दोलन के महत्व को बताएं।

भूमिकाः

‘क्रांतिकारी आन्दोलन’, सशस्त्र क्रांति के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का प्रसार एवं ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता का प्रयास था। भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का प्रारंभ 22 जून 1897 से माना जाता है जब पूना में चापेकर बंधुओं ने ‘रैंड’ और आयर्स्ट की हत्या की। प्रारंभ में बंगाल और महाराष्ट्र आन्दोलन के मुख्य केन्द्र थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् क्रांतिकारी आन्दोलन का प्रसार उत्तर प्रदेश में हुआ।

उत्तर

मुख्य भागः

  • असहयोग आन्दोलन के दौरान गांधीजी ने 1 वर्ष में स्वतंत्रता की बात कही थी। लेकिन असहयोग आन्दोलन एकाएक वापस लिये जाने से भारतीय युवा असंतुष्ट हो गए। अहिंसक आन्दोलन की विचारधारा से युवकों का विश्वास उठा।
  • युवाओं ने स्वीकार कर लिया कि राष्ट्र की स्वतंत्रता केवल हिंसात्मक तरीके से ही संभव है।
  • रूस की क्रांति और साम्यवाद के उदय से युवा काफी प्रभावित थे।

प्रसार एवं प्रमुख गतिविधियाँ

  • अक्टूबर 1924 में उ0प्र0 के कानपुर में क्रांतिकारी युवाओं का सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, योगेश चटर्जी और शचीद्रनाथ सान्याल जैसे पुराने क्रांतिकारियों ने भाग लिया।
  • सम्मेलन में हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन” (ILR.A.) का गठन किया और क्रांतिकारी आन्दोलनों को संगठित रूप देने का प्रयास किया। इस संगठन का उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता और एक संघीय गणतंत्र “संयुक्त राज्य भारत” की स्थापना करना था।
  • किसी भी बड़े संघर्ष के लिए वित्त प्रथम आवश्यकता होती है। हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ने धन की समस्या के समाधान के लिए 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के निकट काकोरी गाँव में 18 डाउन ट्रेन” को रोक लिया और रेल विभाग का खजाना लूट लिया।
  • काकोरी काण्ड में शामिल रहे अशफाकउल्ला खाँ, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को गिरफ्तार कर फांसी की सजा दी गयी। जबकि चन्द्रशेखर आजाद भूमिगत हो गए। इस काण्ड में क्रांतिकारियों की तरफ से मुकदमा चन्द्रकांत गुप्त ने लड़ा था।
  • “काकोरी काण्ड” ने यवाओं को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। 9-10 दिसम्बर 1925 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान के क्रांतिकारियों को बड़ी बैठक आयोजित की गयी।
  • क्रांतिकारियों की कोटला बैठक में सामहिक नेतृत्व को स्वीकार किया गया और समाजवाद की स्थापना का लक्ष्य घोषित किया गया।
  • फिरोजशाह कोटला बैठक में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम बदलकर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” कर दिया गया। इस प्रकार क्रांतिकारियों ने संगठित क्रांतिकारी कार्यवाही को अपनाया।
  • लेकिन  इसी दौरान 30 अप्रैल 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लाला ला राय की लाठी चार्ज से मृत्यु हो गयी। क्रांतिकारियों के लिए यह अत्यंत क्षुब्ध करने वाली घटना थी।
  • 17 दिसम्बर 1928 को इस घटना के लिए दोषी अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और राजगुरू ने लाहौर में कर दी।
  • इसी बीच पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंका। इस कार्य में उत्तर प्रदेश के शिव वर्मा और जयदेव कपूर ने उनका सहयोग किया था।
  • भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। इसी बिल फरवरी 1931 में इलाहाबाद के अलकेट पार्क में मुठभेड़ के दौरान चन्द्रशेखर आजाद शहीद हो गए। मार्च 1931 में भगत सिंह को फांसी दे दी गयी।
  • परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में क्रांतिकारी गतिविधियों का पराभव प्रारंभ हो गया।

निष्कर्ष

इस प्रकार राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष में क्रांतिकारियों का योगदान अमूल्य रहा। इन्होंने साहस, प्रतिबद्धता, बलिदान और राष्ट्र भक्ति से उत्तर प्रदेश सहित समस्त भारत की जनता को प्रेरित किया। राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ समाजवाद के विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित किया।

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