उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप एवं प्रकार का वर्णन कीजिए।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • संक्षेप में ग्रामीण बस्तियों को स्पष्ट करें।

मुख्य भाग

  •  ग्रामीण बस्तियों के प्रकार बताएं।
  • ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप बताएं

उत्तर

भूमिकाः

ग्रामीण बस्तियाँ छोटे तथा मध्यम आकार की बस्ती होती है जिसके निवासी मुख्यतः कृषि, पशुपालन इत्यादि प्राथमिक कार्यों में संलग्न होते हैं। ग्रामीण बस्तियों के कई सांस्कृतिक, प्राकृतिक और स्थानिक अभिलक्षण होते हैं। विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, जातीय, ऐतिहासिक तथा राजनीतिक कारणों से ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप व प्रकार में भिन्नता पायी जाती है।

मुख्य भागः

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार का निर्धारण मकानों की संख्या और उनके बीच पारस्परिक दूरी के आधार पर किया जाता है। मुख्य रूप से ग्रामीण बस्तियों के तीन प्रकार हैं

  1. संहत/न्यष्टित  बस्तिया (Compact/Nucleated settlements): इसमें मकान एक-दूसरे के समीप होते हैं।उत्तर प्रदेश के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र में समतल एवं उपजाऊ मिट्टी की उपलब्धता, भूमि का अपखण्डन एवं स्वामित्व, वंश-संबंध, कृषि कार्यों में अधिकता इत्यादि के कारण सघन बस्तियाँ विकसित हुई हैं।
  2. प्रकीर्ण एकाकी बस्तियों (Scattered/Isolated settlement): इस प्रकार की बस्तियों में मकान एक-दूसरे से दूरस्थ  स्थित होते हैं। प्रायः कृषि भूमि मकानों के बीच स्थित होती है। उत्तर प्रदेश में जाति प्रथा, भूमि-सुधार, पशचारण, पर्वतीय उच्चावच तथा बाढ़ इत्यादि के कारण एकाकी बस्तियों का विकास हुआ है।
  3. अर्द्ध-संहत बस्तियाँ (Semi-compact settlements): इस प्रकार की बस्तियों में संहत और प्रकीर्ण दोनों प्रकार के मकान पाए जाते हैं। कुछ मकान एक-दूसरे के समीप होते हैं और कुछ एकाकी। उत्तर प्रदेश में यमुना के खड्ड क्षेत्र और गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में प्राकृतिक और सामाजिक कारणों से ऐसी बस्तियाँ विकसित हुई हैं।

ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप का संबंध बस्तियों की आकृति (shaped) से है। ग्रामीण बस्तियों के निम्नलिखित प्रतिरूप प्रमुख हैं

  1.  रैखिक प्रतिरूपः इसमें ग्रामीण बस्तियाँ सीधी रेखा में अवस्थित होती हैं। उत्तर प्रदेश में नदियों के किनारे, सड़क के किनारे ऐसे प्रतिरूपों में ग्रामीण बस्तियाँ पायी जाती हैं।
  2. चौक पट्टी (Checkerbant) प्रतिरूप: इसमें दो सड़क मार्ग के मिलन स्थल पर विकसित चौराहे के आस-पास आयताकार आकृति में ग्रामीण बस्तियों का विकास होता है। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे प्रतिरूप बहुतायात में पाए जाते हैं।
  3. अर्द्ध-वृत्ताकार प्रतिरूप (Semi-circular pattern): नदियों द्वारा निर्मित नदी विसर्प अथवा गोखूर झील के निकट ग्रामीण बस्तियों का अर्द्ध-वृत्तकार प्रतिरूप विकसित होता है। उत्तर प्रदेश में प्रयागराज (इलाहाबाद), मिर्जापुर, वाराणसी में ऐसे प्रतिरूप पाए जाते हैं।
  4. वृत्ताकार प्रतिरूपः इस प्रकार प्रतिरूप किसी झील अथवा तालाब के चारों तरफ विकसित होता है। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी पठारी प्रदेश (बुन्देलखण्ड क्षेत्र) तथा गंगा-यमुना दोआब क्षेत्रों में वृत्ताकार प्रतिरूप की ग्रामीण बस्तियाँ पायी जाती हैं।
  5. त्रिभजाकार प्रतिरूपः इस प्रकार का प्रतिरूप ऐसे स्थानों पर विकसित होता है जहाँ दो सड़क, नदिया अथवा नहरआपस में मिलती हैं। त्रिभज के आधार की ओर खली भूमि पायी जाती है। उत्तर प्रदेश में इटावा क्षेत्र में यमुना और चम्बल के संगम के निकट तथा इलाहाबाद (प्रयागराज) में ऐसे प्रतिरूप पाए जात ह।
  6. नीहारिका प्रतिरूप: किसी धार्मिक स्थल के चारों ओर नीहारिका की आकृति में इस प्रकार की बस्तिया का विकास होता है। सड़कें केन्द्र से परिधि की ओर घुमावदार रूप से विकसित होती है।
  7. सीढ़ीनुमा प्रतिरूप (Terraced Pattern): इस प्रकार के प्रतिरूप पहाड़ी ढालों पर विकसित होते हैं। ढलानों को काटकर समतल बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में सीढ़ीनुमा प्रतिरूप की ग्रामीण बस्तियाँ पायी जाती हैं।

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