कृषि के लिए उर्वरकों के महत्व का संक्षिप्त परिचय : उर्वरकों के लिए DBT योजना के विषय में संक्षिप्त चर्चा

प्रश्न: यह तर्क दिया जाता है कि भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने में उर्वरक सब्सिडी का एक नकारात्मक प्रभाव रहा है। टिप्पणी कीजिये। साथ ही, उर्वरकों के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के बदले किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करने के फायदों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  •  कृषि के लिए उर्वरकों के महत्व का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उर्वरक सब्सिडी, जैविक खेती के विकास और प्रोत्साहन को हानि पहुँचाती है।
  • उर्वरकों के लिए DBT योजना के विषय में संक्षिप्त चर्चा कीजिये।
  • DBT योजना के सम्बन्ध में किसानों के लिए प्रत्यक्ष आय सहायता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

उत्तर

कृषि उत्पादकता के लिए उर्वरकों के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा सब्सिडी युक्त मूल्यों पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। हालाँकि, इसके साथ ही उर्वरक सब्सिडी निम्नलिखित तरीकों से जैविक खेती के विकास और प्रोत्साहन को हानि भी पहुँचाती है:

  • मूल्य की हानि- यह रासायनिक उर्वरकों को सस्ता बना देती है जिससे कृषक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग हेतु प्रेरित होते हैं।
  • कॉर्पोरेट हित- ये उर्वरक सब्सिडी को हटाए जाने तथा जैविक खेती के प्रोत्साहन को बाधित करते हैं।
  • जैविक खेती में नयी तकनीकों को कम अपनाया जाना।
  • अपर्याप्त आपूर्ति श्रृंखला अवसंरचना- रासायनिक उर्वरकों के वितरण हेतु एक सुविकसित आपूर्ति-शृंखला विद्यमान है, जबकि जैविक उर्वरकों के वितरण में इसका अभाव है।

उर्वरक सब्सिडी लीकेज तथा डायवर्ज़न से प्रभावित होती है।भारत सरकार उर्वरक सब्सिडी पर करीब 70,000 करोड़ रुपये व्यय करती हैं जबकि कृषकों के पास केवल इसका 35 प्रतिशत ही पहुँचता है। सस्ते उर्वरकों के आवश्यकता से अधिक उपयोग ने भारत के बहुत से भागों में कृषि उत्पादकता को नष्ट किया है था अन्य उर्वरकों की उपेक्षा करते हुए इसे यूरिया (नाइट्रोजन) के पक्ष में झुका दिया है।

अतः केंद्र सरकार द्वारा उर्वरक सब्सिडी के तार्किकीकरण का निर्णय लिया गया एवं अक्टूबर 2016 से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली का सूत्रपात किया गया। वर्तमान में 14 राज्यों के 17 जिलों में DBT योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।

DBT के अंतर्गत, खुदरा विक्रेताओं द्वारा लाभार्थियों को किये गए वास्तविक विक्रय के आधार पर उर्वरक कंपनियों को विभिन्न उर्वरक ग्रेडों पर 100 % सब्सिडी प्रदान की जाती है। कृषकों को सभी सब्सिडी युक्त उर्वरकों की बिक्री प्रत्येक खुदरा विक्रेता की दुकान पर स्थापित विक्रय बिंदु (पॉइंट ऑफ सेल) उपकरणों के माध्यम से की जाती है। लाभार्थियों की पहचान आधार इत्यादि से की जाती है।

इसके विपरीत, प्रत्यक्ष आय सहायता (DIS) में मौद्रिक सहायता उर्वरकों के खुदरा विक्रेताओं के बजाय सीधे कृषकों को प्रदान की जाती है। इसके लाभ निम्नलिखित हैं: 

  • DIS अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और फसल-तटस्थ है।
  • पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत तेलंगाना में किसानों को चेक प्रदान किये गए जिसे वो अपनी इच्छा से किसी भी बैंक में जमा  कर सकते थे। यह इसलिए किया गया ताकि बैंकों द्वारा कृषकों के बकाया ऋण की उगाही के लिए उनके खातों में अंतरित सब्सिडी का प्रयोग न किया जा सके।

यह कृषकों को अपने उत्पादन तथा आगतों के प्रयोग सम्बन्धी निर्णय लेने हेतु बाजार का प्रयोग करने में सक्षम बनाता है। चूंकि DBT के अंतर्गत सब्सिडी का भुगतान कंपनियों को किया जाता है, इसलिए उन्हें उत्पादन लागत को न्यूनतम करने तथा गुणवत्ता में सुधार का कोई लाभ नहीं मिलता अतः वे अप्रभावी रहते हैं।

प्रत्यक्ष आय सहायता बाजार विकृतियों और इसके संबंधित दक्षता हानियों में वृद्धि नहीं करेगी।

हानियाँ

  • लाभार्थियों की पहचान में कठिनाइयाँ तथा व्यापक वित्तीय निहितार्थ।
  • इसमें तीन अलग-अलग प्रकार के डाटाबेसों (भू-रिकॉर्ड, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, आधार) के मध्य समन्वय की आवश्यकता है। यह भूमि तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के डाटाबेस के अपूर्ण डिजिटलीकरण के कारण लेन-देन की अवधि (ट्रांजैक्शन टाइम) को बढ़ा देता है।
  • आय सहायता प्रत्यक्ष रूप से कृषकों को प्रदान की जाएगी जिससे मुद्रास्फीति, धन का गैर-कृषि उपयोगों में डायवर्जन तथा डिपेंडेंसी सिंड्रोम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

अतः, आय सहायता को इसकी हानियों को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। राज्यों (यथा तेलंगाना) में इसकी विशेष निगरानी की जानी चाहिए तथा इसके परिणामों के आधार पर इसे व्यापक स्तर पर अपनाया जाना चाहिए।

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