प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय सुरक्षा (Technology and National Security)

प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय सुरक्षा (Technology and National Security)

सकारात्मक राष्ट्रीय सुरक्षा परिणामों के लिए प्रौद्योगिकी सक्षमता अपरिहार्य है, किन्तु यह भी सत्य है कि कट्टरपंथ,आतंकवाद और अंतर्राष्ट्रीय अपराध में लिप्त अपराधियों द्वारा इसके दुरुपयोग की भी अत्यधिक संभावना है। इन अपराधियों को सभी जगह उपलब्ध ऐसे प्रौद्योगिकी कार्यबल तक पहुंच प्राप्त है जो किसी भी भौगोलिक सीमा या संगठनात्मक अवसंरचना से बंधा हुआ नहीं है। इस प्रकार की पहुँच अपराधियों को अत्यधिक दक्ष बना देती है।
21 वीं शताब्दी की रक्षा तैयारियों में तकनीकी सामर्थ्य का प्रदर्शन, विभिन्न सैन्य अभ्यासों के माध्यम से प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन, शक्ति की अभिव्यक्ति के उद्देश्य और प्रभावी प्रतिरोध तंत्र के निर्माण हेतु नए हथियारों / हथियारों का प्रयोग करने के प्लेटफार्मों के ‘परीक्षणों का आयोजन सम्मिलित है। संक्षिप्त रूप में सुरक्षा और प्रौद्योगिकी परस्पर अंतर-सम्बंधित हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी

  • विविध प्रकार के और सदैव परिवर्तनशील खतरे का सामना कर रहे राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं को लचीलापन प्रदान करने हेतु
    विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षमताओं एवं अवसंरचना का उन्नत होना अत्यावश्यक है। इसके माध्यम से खतरे से निपटने हेतु नीति
    निर्माताओं को अधिक साक्ष्य-आधारित विकल्प प्रदान किए जा सकते हैं।
  • हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्रों में हुए विभिन्न नवाचारों ने सेनाओं को अपने आधारभूत हार्डवेयर और
    संगत अवसंरचना को तीव्र, सुरक्षित और विश्वसनीय बनाने में सहायता प्रदान की है। उदाहरण के लिए, व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (Comprehensive Integrated Border Management System: CIBMS), सीमा सुरक्षा ग्रिड, हैक पूफ संचार आदि के लिए क्वांटम क्रिप्टोग्राफी इत्यादि।

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियां नेटवर्क केंद्रित युद्ध की अवधारणा को वास्तविक रूप प्रदान करने में सहायक रही हैं।

  • विभिन्न IT उपकरणों ने विभिन्न सैन्य प्लेटफार्मों के परिष्करण और उनमें गति लाने की दिशा में सहायता की है।
    उदाहरण के लिए, भारत की केंद्रीय निगरानी प्रणाली (CMS) जो देश के समस्त फोन और ऑनलाइन संचार की निगरानी करने में सहायता करती है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियां, संचार और नौवहन संबंधी प्रयोजनों के लिए प्रासंगिक हैं और खुफिया जानकारी के संग्रह के उद्देश्य से उपग्रह अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त भविष्य में NATGRID पहल खुफिया एजेंसियों के डेटा को एकत्रित करने में सहायक होगी।

नैनो-प्रौद्योगिकी

इलेक्ट्रॉनिक्स और पदार्थ विज्ञान दोनों में इसकी व्यापक उपयोगिता है। यह अंततः जहाजों, विमानों तथा अंतरिक्षयानों को हल्का और मजबूत बनाती है। इससे राज्यों को इन विमानों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने की अनुमति मिल जाएगी और उड़ान की ऊंचाइयों एवं भार ले जाने की क्षमताओं के संबंध में व्यापक तौर पर लचीलापन प्राप्त
होगा।

जैव-प्रौद्योगिकी

लॉजिस्टिक आपूर्ति श्रृंखला में एक क्रांति ला सकती है। इससे ऐसे हल्के खाद्य पदार्थों के निर्माण में सहायता मिलेगी जिन्हें ले जाना आसान होगा, अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकेगा तथा जिनमें पोषण की मात्रा भी अधिक होगी। तकनीक का प्रयोग कर सैनिकों की वर्दी को अधिक हल्का बनाया जा सकता है और उसे छद्म रूप धारण करने की क्षमताओं से लैस किया जा सकता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती के रूप में प्रौद्योगिकी

संचार और सूचना क्रांति

जैसे – वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल, सोशल मीडिया का प्रसार आतंकवादियों, अपराधियों और
जासूसों के लिए एक-दूसरे के साथ संवाद करना, प्रचार-प्रसार करना, सूचना एकत्र करना, जासूसी करना और आपराधिक गतिविधियों का संचालन करना सुगम बनाती है।

 साइबर खतरा

साइबर संघर्ष और साइबर र्शाषण राज्य की सुरक्षा के समक्ष नए खतरे है। अनेक संगठित अपराध नेटवर्क और सीमान्त चरमपंथी समूह डेटाबेस को हैक करते हैं और विशिष्ट सूचना की चोरी करते हैं। कई मामलों में तो इनकी अवस्थिति का पता भी नहीं चलता। भारत सोशल मीडिया के माध्यम से साइबर अपराधियों द्वारा लक्षित किये जा रहे देशों में से एक है। वास्तव में अमेरिका, चीन इत्यादि देश इलेक्ट्रॉनिक जासूसी में भी सम्मिलित हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध नेटवर्क

संसाधनों तक अधिक पहुंच और उन्नत तकनीक के उपयोग से अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधियों अपनी जोखिम प्रबंधन रणनीतियों में महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुआ और इस प्रकार वे राज्य सुरक्षा एजेंसियों की
गिरफ्त से बच जाते हैं।

हथियारों की होड़

प्रौद्योगिकी ने सैन्य क्षमताओं को अधिक बेहतर बनाया और इसने राज्यों के मध्य हथियारों की होड़ को बढ़ावा दिया है।

सोशल मीडिया और राष्ट्रीय सुरक्षा

सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कैसे कर सकती हैं?

  • सूचना साझा करने वाले सुरक्षित समुदायों का निर्माण करने हेतु नागरिकों को सूचित करना और उन्हें सहभागी बनाना;
  • दुर्भावनापूर्ण अफवाहें फैलाने के लिए सामाजिक मंचों के दुरुपयोग से निपटने हेतु ऐसे प्लेटफॉर्मों पर आवश्यक एजेंसियों की
    उपस्थिति सुनिश्चित करना। इस प्रकार की अफवाहें आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए समस्याओं को बढ़ा सकती
    हैं। इसके साथ ही आपातकालीन परिस्थितियों के लिए मानक परिचालन प्रक्रिया तैयार करना।
  • इस मुद्दे के संबंध में नागरिकों की मनोदशा को समझने, पैटर्नो एवं भविष्य में आने व्यवधानों के संभावित उत्प्रेरक अवसरों(लश पाइस) का पूर्वानुमान लगाने के लिए तथा साइबर अपराधा का कन एवं उनके विरुद्ध कारवाही करने के लिए। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर स्वतंत्र रूप से उपलब्ध डेटा का उपयोग करना
  • एक व्यवहार्य आसूचना प्रणाली का निर्माण करना जो एजेंसियों के मध्य साझा करने योग्य मानवीय आसूचना सम्बन्धी कार्यकलापों में सहायता कर सके। साथ ही यह सन्निहित रक्षोपायों से युक्त भी हो ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नागरिकों की निजता का अतिक्रमण न हो।

पुलिसिंग संबंधित मुद्दों में सोशल मीडिया को अपनाने में चुनौतियां:

  • तकनीक का प्रयोग किस प्रकार किया जाए, इस पर स्पष्टता का अभाव
  • पर्याप्त इंटरनेट अवसंरचना का अभाव
  • प्रतिभा की तत्काल उपलब्धता का अभाव,
  • स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया जैसे माध्यमों से निपटने के लिए आवश्यक कर्मियों और सॉफ्ट स्किल की कमी.
  • भारत में भाषाओं की बहुलता के कारण प्रौद्योगिकी के और अधिक अनुकूलन की आवश्यकता है। इसके लिए मानवीय और पूंजीगत, दोनों प्रकार के निवेशों के साथ-साथ बजट योजनाओं का पुन: निर्धारण भी आवश्यक होगा।

सोशल मीडिया- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा

  • सूचना के साधनों और उपयोगकर्ता सामग्री के सर्जक के रूप में टेलीविज़न, सोशल और ऑनलाइन नेटवर्क जैसे मीडिया के
    विभिन्न रूपों के अभिसरण का कानून और व्यवस्था के साथ-साथ सुरक्षा पर भी बहुआयामी प्रभाव पड़ता है।
  • 2012 में असम में नृ-जातीय संघर्ष के पश्चात् वैमनस्य बढ़ाने वाले क्लिप और घृणित संदेशों को भेजने के लिए मोबाइल और सोशल नेटवर्क इंटरफेस का प्रयोग किया गया था। इसके कारण उत्तर-पूर्वी राज्य के निवासियों में घबराहट फैली और बड़े पैमाने पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों से उनका पलायन हुआ।
  • अत्यधिक उच्च मात्रा और तीव्र वेग से सूचना का प्रसार करने की सोशल मीडिया की क्षमता राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष खतरा उत्पन्न करती है।
  • ISIS और अन्य आतंकवादी संगठन अपना प्रचार-प्रसार करने के लिए और युवाओं को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं।

पुलिसिंग के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग

पुलिसिंग के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग कई पहलों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जैसे:

  • यातायात से संबंधित मुद्दों के सुगमतापूर्वक नियंत्रण हेतु दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा फेसबुक या ट्विटर जैसे
    प्लेटफॉर्मों का उपयोग करना,
  • खो गई वस्तुओं के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करना ,
  • इंदौर पुलिस आपराधिक गतिविधि को ट्रैक करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रही है,
  • बेंगलुरू पुलिस का ट्विटर हैंडल “ट्विटर संवाद” के लिए चयनित किया गया है।
  • महाराष्ट्र पुलिस द्वारा संचालित सोशल मीडिया लैब्स प्रोजेक्ट, सोशल मीडिया पर पूर्वानुमानित और अचानक भड़की
    गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु उसे ट्रैक करता है।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय सोशल मीडिया नीति की रूपरेखा को संस्थागत बनाना: साइबर सुरक्षा खतरों से पृथक सामाजिक मीडिया चुनौतियों
    को भी सम्मिलित करने के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति को पुनः संशोधित करने की आवश्यकता है।
  • सोशल मीडिया में संलग्नता से सम्बंधित दिशा-निर्देशों के फ्रेमवर्क को कार्यान्वित करना और उन्हें संस्थागत बनाना। साथ ही
    सोशल मीडिया द्वारा उत्पन्न की गयी चुनौतियों पर जागरुकता उत्पन्न करना।
  • एजेंसियों को सशक्त बनाना, प्रतिभा का सृजन करना और विशेषज्ञों का उपयोग करना: यदि सोशल मीडिया को सभी कर्मियों द्वारा दैनिक जीवन में अपनाया जाता है तो एजेंसियों को अपने विशिष्ट उद्देश्यों हेतु इसका उपयोग करने के लिए तकनीकी ,कानूनी और वित्तीय रूप से सशक्त बनाया जाना चाहिए।

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