भारत की समुद्री सुरक्षा : हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्र
प्रश्न: हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्र इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक रूपरेखा को आकार देने और भारत की समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने में अत्यधिक रणनीतिक महत्व रखते हैं। चर्चा कीजिए। (250 words)
दृष्टिकोण
- संक्षेप में उल्लेख कीजिए कि हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्र रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्यों हैं।
- भू-राजनीति को आकार प्रदान करने और इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा एवं व्यवस्था बनाए रखने हेतु इनके महत्व की चर्चा कीजिए।
- इस संदर्भ में भारत द्वारा अपनाए गए उपायों का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
जून 2019 में प्रधानमंत्री द्वारा मालदीव और श्रीलंका (दोनों हिंद महासागर के द्वीपीय देश हैं) की यात्रा की गयी। इस यात्रा ने भारत के इस क्षेत्र में संलग्न महत्व को रेखांकित किया। निम्नलिखित कारणों से इन देशों का रणनीतिक महत्व अत्यधिक है:
- अवस्थिति: ज्ञातव्य है कि भारत 7500 किमी की लंबी तटीय सीमा और 1200 द्वीपीय क्षेत्रों के साथ हिंद महासागर क्षेत्र के केंद्र में अवस्थित एक समुद्री राष्ट्र है। इस कारण द्वीपीय राष्ट्र अनिवार्यतः भारत के निकटतम पड़ोसी हैं।
- शांति और संघर्ष के दौरान गश्त के लिए समुद्री संचार मार्गों (SLOCs) की निकटता, यह देखते हुए कि विश्व के 64 प्रतिशत तेल व्यापार और विश्व के मालवाहक जहाजों के आधे भाग की आवाजाही का संचालन इसी क्षेत्र से होता है। इसके साथ ही, भारत का 90% व्यापार (मात्रा में) और 90% तेल आयात समुद्र मार्गों से किया जाता है।
- बाब अल-मन्देब और सोमाली तट जैसे क्षेत्रों के साथ समुद्री डकैती जैसे अंतर्राष्ट्रीय खतरों की व्यापकता के कारण बहुपक्षीय सहयोग की आवश्यकता है।
भारत की समुद्री सुरक्षा और इस क्षेत्र की भू-राजनीति को आकार देने में हिंद महासागर के द्वीपीय देशों की भूमिका:
- निकटतम पड़ोसी देश होने के कारण श्रीलंका और मालदीव का भारत के लिए विशेष महत्व है। अतीत में हंबनटोटा परियोजना को चीन द्वारा वित्त पोषित किया गया और बाद में इसे चीन को लीज पर दिया गया, जिससे रणनीतिक चिंताएँ उत्पन्न हुई। इसी प्रकार, मालदीव द्वारा BRI और चीनी प्रभाव को दिए गए समर्थन से मुद्दे अधिक जटिल हो गए। हालाँकि, मालदीव की इण्डिया फर्स्ट पॉलिसी तथा तीन देशों को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय समुद्री संवाद से भारत को इन चिंताओं का समाधान करने में सहायता प्राप्त हुई है।
- प्रचलित और निहित समुद्री खतरों (दोनों पारंपरिक और गैर-पारंपरिक), जैसे कि आतंकवाद, समुद्री डकैती और अवैध तस्करी, जलवायु परिवर्तन व समुद्री स्तर में वृद्धि, बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं और आजीविका की क्षति आदि से निपटने हेतु इस क्षेत्र के साथ भारत के घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है।
- द्वीपीय राष्ट्रों द्वारा नौसैनिक अड्डे को स्थापित करने हेतु प्रमुख शक्तियों को अनुमति प्रदान कर अधिक रणनीतिक प्रभाव का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, चीन ने वर्ष 2017 में जिबूती में अपना प्रथम हिंद महासागर नौसैनिक अड्डा स्थापित किया। भारत द्वारा अगलेगा और असम्पशन द्वीप के विकास हेतु क्रमशः मॉरीशस और सेशेल्स के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
- भारत के पश्चिम में स्थित सोकोट्रा (यमन), मेडागास्कर, मॉरीशस और सेशेल्स के द्वीपों का सामरिक महत्व है। उदाहरण के लिए, सोकोटा रणनीतिक रूप से अदन की खाड़ी के मुहाने पर स्थित है, जो स्वेज नहर को हिंद महासागर से जोड़ता है। इसी प्रकार, मॉरीशस सबसे महत्वपूर्ण समुद्री संचार मार्गों (SLOCs) और पश्चिम एशियाई तेल क्षेत्रों के निकट स्थित है। भारत को FDI का अधिकांश भाग मॉरीशस से प्राप्त होता है। सेशेल्स का EEZ 1.3 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तारित है, जो इसे वाणिज्यिक और रणनीतिक कारणों से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है।
- दक्षिण पूर्व एशिया में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह मलक्का जलडमरूमध्य के निकट अवस्थित है और यह भारत को इस क्षेत्र में सैन्य और आर्थिक गतिविधियों का सूक्ष्मता से निरीक्षण करने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार, इंडोनेशिया के साथ व्यापक रक्षा सहयोग समझौता और सबंग बंदरगाह के विकास की संभावना और भारत-प्रशांत की उभरती हुई अवधारणा में विशिष्ट भूमिका निभाने हेतु भारत को महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है।
- प्रधानमंत्री ने भारत-प्रशांत और हिन्द महासागर की केंद्रीयता के विचार को प्रकट करते हुए भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है। भारत हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देने हेतु सक्रिय है। ये भारत के दृष्टिकोण “क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास (SAGAR)” के अनुरूप हैं और हिंद महासागर में समग्र सुरक्षा प्रदाता बनने संबंधी उद्देश्य की पूर्ति में सहायक है।
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