द्रुत गति से हो रहे तकनीकी परिवर्तन : बच्चों तथा युवाओं के समक्ष चुनौतियों

प्रश्न: द्रुत गति से हो रहे तकनीकी परिवर्तनों के संदर्भ में, शैक्षणिक संस्थानों में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को अंतर्निविष्ट करने के महत्व की विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण

  • प्रश्न के सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • द्रुत गति से हो रहे तकनीकी परिवर्तनों के कारण बच्चों तथा युवाओं के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों तथा समाज पर व्यापक स्तर पर हो रहे उसके दुष्प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  • शैक्षिक संस्थानों में नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों को अंतर्निविष्ट करने के महत्व को रेखांकित कीजिए तथा विवेचना कीजिए कि किस प्रकार ये उपर्युक्त परिस्थितियों से निपटने में सहायक हो सकते हैं।

उत्तर

तकनीकी प्रगति के कारण हमारी कार्य पद्धति और संचार एवं संवाद के आदान-प्रदान की व्यवस्था सरल हो गई है। साथ ही यह समय की बचत करने, स्वास्थ्य सेवाओं और हमारे शैक्षणिक परिवेश में सुधार करने में सहायक सिद्ध हुई है।

दूसरी ओर, इसके कारण अनेक समस्याएँ यथा- पर्यावरणीय प्रदूषण, तकनीक पर निर्भरता आदि भी उत्पन्न हुई हैं। इससे मानव जीवन तथा समाज के समक्ष ख़तरा उत्पन्न हो गया है।

युवावस्था में द्रुतगति से हो रहे तकनीकी तथा सामाजिक परिवर्तन के संपर्क में आने के कारण नई पीढ़ी के लिए चुनौतियों की नवीन श्रृंखला उत्पन्न हुई है, जैसे: 

  • द्रुतगति से होने वाले तथा ध्वंसकारी तकनीकी परिवर्तनों ने अनेक युवकों को अलग-थलग एवं भ्रमित कर दिया है, जिससे वे एक नवीन पहचान तथा जुड़ाव की भावना की खोज के लिए प्रेरित हुए हैं।
  • इंटरनेट समाज में स्वीकार्य तथा सामान्य मान्यताओं को विकृत रूप में प्रस्तुत करता है। परिणामस्वरूप, उपयुक्त व्यवहार के बारे में दिग्भ्रमित अवधारणाएं उत्पन्न होती हैं।
  • दुर्बल अंतर्वैयक्तिक कौशल के कारण युवाओं के समाज में समायोजित न हो पाने संबंधी समस्या भी उत्पन्न हुई है। पीढ़ियों के मध्य सांस्कृतिक तथा सामाजिक टकराव लगभग प्रत्येक परिवार में स्पष्टतः उत्पन्न हो गए हैं।
  • असामाजिक व्यवहार, यौन विचलन तथा धार्मिक उग्रवाद को अनुपयुक्त सामग्री, अनियंत्रित चैटरूम तथा हिंसक/घृणा फैलाने वाले खेलों के कारण बढ़ावा मिल रहा है।

चरित्र निर्माण तथा व्यक्ति और देश के भविष्य के निर्धारण में शिक्षा सर्वाधिक शक्तिशाली साधनों में से एक है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में चरित्र निर्माण पर अत्यधिक कम बल दिया गया है। इसलिए, शैक्षिक संस्थानों में नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है। इसका महत्व निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:

  • युवाओं को मानव जीवन के सही लक्ष्यों तथा उद्देश्यों के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि मूल्यों के ह्रास की गति व्युत्क्रमित की जा सके।
  • ऐसी शिक्षा स्व-जागरुकता, स्व-बोध तथा स्व-मूल्यांकन के शिक्षण हेतु एक मुख्य कारक की भूमिका का निर्वहन कर सकती है।
  • इससे स्वतंत्र चिंतन के साथ-साथ निःस्वार्थता, सहयोगपूर्ण भावना, साझेदारी की भावना तथा नागरिक कर्तव्यों की भावना को बढ़ावा मिलेगा। इससे शान्ति, सौहार्द्र तथा सहयोग की संस्कृति विकसित होगी।
  • छात्र महान व्यक्तित्वों के जीवन से शिक्षा ग्रहण करेंगे तथा समानुभूति, करुणा एवं लोक सेवा जैसे सकारात्मक मूल्यों के महत्व के प्रति उनकी समझ विकसित होगी।
  • तकनीक चरित्र निर्माण में एक सहायक तत्व सिद्ध होगी न कि बाध्यकारी।

महात्मा गांधी शिक्षा को आत्मा की जागृति का एक माध्यम मानते थे। उनके अनुसार, “यदि हम व्यक्ति का चरित्र निर्माण करने में सफल हो जाएँ, तो समाज स्वयं अपनी देख-भाल कर लेगा। इसलिए शैक्षणिक प्रणाली का आधार मूल्य आधारित दृष्टिकोण से तैयार किया जाना चाहिए। साथ ही शैक्षिक संस्थानों में सभी महान धर्मों तथा महान व्यक्तियों की नैतिक शिक्षाओं के शिक्षण के माध्यम से नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों के विकास का प्रयास किया जाना चाहिए।

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