कुपोषण के संदर्भ में तिहरे बोझ : अल्पपोषण, अतिपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी
प्रश्न: भारत वर्तमान में अल्पपोषण, अतिपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के “तिहरे बोझ” का सामना कर रहा है। इनके कारणों का परीक्षण कीजिए और इनका मुकाबला करने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।
दृष्टिकोण
- कुपोषण के संदर्भ में तिहरे बोझ को परिभाषित कीजिए।
- भारत में तिहरे बोझ हेतु उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए।
- इन मुद्दों से निपटने हेतु कुछ प्रमुख उपायों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 4 के अनुसार भारत में कुपोषण की समस्या व्यापक स्तर पर विद्यमान है, जो मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन रूपों में प्रकट होती है, जिसे “तिहरा बोझ” के रूप में भी जाना जाता है:
- अल्पपोषण (Undernutrition), इसके अंतर्गत ऊर्जा और पोषण का अपर्याप्त अंतर्ग्रहण, जिसमें दुबलापन (लंबाई की तुलना में कम वजन), ठिगनापन (आयु के अनुपात में लंबाई का कम होना) तथा अल्पवजन (आयु के अनुपात में कम वजन) शामिल हैं।
- अतिपोषण (Overnutrition), जहाँ पोषण की मात्रा सामान्य वृद्धि, विकास और उपापचय हेतु आवश्यक मात्रा से अधिक हो जाती है। यह अधिक वजन, मोटापे और आहार संबंधी गैर-संचारी रोगों (NCDs) जैसे कि हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह तथा कैंसर का कारण बनता है।
- सूक्ष्म पोषक तत्वों से संबंधित कुपोषण के अंतर्गत मानव शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली हेतु अल्प मात्रा में आवश्यक विटामिनों एवं खनिजों के अभाव को शामिल किया जाता है।
कुपोषण के “तिहरे बोझ” हेतु उत्तरदायी कारण
- परम्परागत आहार जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के मोटे अनाजों, दालों, तिलहनों और स्थानीय मौसमी सब्जियों एवं फलों को शामिल किया जाता है, हमारे आहार में अनुपस्थित होते जा रहे हैं। इन्हें सरकार द्वारा सब्सिडी प्राप्त गेहूं और चावल द्वारा तीव्रता से विस्थापित किए जा रहे हैं। यद्यपि, ये कार्बोहाइड्रेट्स से भरपूर होते हैं, परन्तु इनमें सूक्ष्म पोषक तत्वों का अभाव होता है, जो शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का कारण बनता है।
- निर्धनता एक प्रमुख कारक है जो मांस, फलों और सब्जियों जैसे पोषक आहारों तक पहुंच को बाधित करती है। यह शारीरिक श्रम हेतु व्यक्तियों की क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है तथा इस कारण वे निम्न आय अर्जित करते हैं। इस प्रकार निर्धनता, अल्पपोषण, कम होती कार्य क्षमता तथा निम्न आय अर्जन और निर्धनता का एक दुष्चक्र आरम्भ हो जाता है।
- खाद्य पदार्थों की पोषण संबंधी गुणवत्ता के विषय में सीमित जानकारी, तर्कहीन विश्वास, अनुचित रूप से शिशुओं का पालन-पोषण और अनियमित भोजन संबंधी आदतें भी कुपोषण में योगदान करती हैं।
- विशेषतया पितृसत्तात्मक व्यवस्था वाले परिवारों में भोजन का असमान वितरण अर्थात् महिलाओं एवं प्रीस्कूल बच्चों विशेष कर बालिकाओं को प्राय: अल्प मात्रा में या निम्न गुणवत्तायुक्त भोजन प्रदान किया जाता है।
- आवासन, स्वच्छता और जलापूर्ति की निम्न गुणवत्ता भी खराब स्वास्थ्य तथा संक्रमणों में योगदान करती है इस प्रकार, सामान्य रूप में अल्प पोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी तथा कुपोषण में योगदान करता है।
- भारत में अपर्याप्त मातृ एवं शिशु देखभाल की समस्या सामान्य है जिसके कारण अल्पपोषित और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी ग्रस्त माताओं द्वारा प्राय: कुपोषित शिशुओं को जन्म दिया जाता है।
कुपोषण के “तिहरे बोझ से निपटने हेतु रणनीतियां
- सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन संचार (SBCC): वैश्विक प्रवृत्तियां दर्शाती हैं कि दीर्घकालिक परिवर्तनों हेतु सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियानों से रणनीतियों को SBCC की ओर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है क्योंकि स्थानीय परम्पराएँ और संस्कृति भोजन संबंधी आदतों को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं।
- समुदाय आधारित उत्प्रेरक: समान समुदाय में निवास करने वाली लक्षित आबादी के व्यवहार के व्यवाहर पर समुदाय की क्षेत्रीय कार्यप्रणालियों रुढ़िवादी व्यक्ति प्रभावित करती है।
- खाद्य प्रणाली: स्वास्थ्यप्रद आहारों के लिए संधारणीय एवं सुनम्य भोजन प्रणालियों के सृजन की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य प्रणालियाँ: स्वास्थ्य प्रणालियों को पोषण आवश्यकताओं से संबद्ध होना चाहिए तथा आवश्यक पोषण हस्तक्षेपों के सार्वभौमिक कवरेज को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- पोषण लक्ष्यीकरण: लक्ष्यों की स्थापना का समर्थन करना और पोषण लक्ष्यों हेतु निगरानी प्रणालियों की स्थापना करना।
- पोषण संबंधी नीतियाँ: समेकित रणनीतियों को अपनाना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यापार और निवेश नीतियों के माध्यम से मौजूदा पोषण संबंधी मानकों में सुधार सुनिश्चित किया जा सके।
कुपोषण से निपटने हेतु सरकार ने पहले से ही अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल विकास योजना, सबला (SABLA), मध्याह्न भोजन योजना, सूक्ष्म पोषक तत्व अनुपूरक कार्यक्रम जैसे विटामिन A अनुपूरकता, आयरन अनुपूरकता आदि जैसी योजनाएं प्रारम्भ की गई हैं।
इसके अतिरिक्त, सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित उपकरणों का उपयोग करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (AWWs) को प्रोत्साहित करने, आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों की लम्बाई के मापन की शुरुआत करने, सामजिक लेखा-परीक्षण, पोषण संसाधन केन्द्रों की स्थापना, विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से पोषण के लिए लोगों की सहभागिता हेतु जन आन्दोलन के द्वारा जनसमूह को शामिल करने हेतु एक पूर्ण विकसित राष्ट्रीय पोषण मिशन की स्थापना की गई है।
Read More