स्वास्थ्य वित्तपोषण : दीर्घावधिक रणनीति के रूप में बीमा को सुदृढ़ करने से संबंधित मुद्दे

प्रश्न: भारत में स्वास्थ्य वित्तपोषण की वर्तमान प्रणाली के अंतर्गत बड़े पैमाने पर आउट-ऑफ-पॉकेट भुगतान किए जाते हैं, ऐसे में स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण में सुधार लाने की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए। इस संबंध में स्वास्थ्य वित्तपोषण के लिए दीर्घावधिक रणनीति के रूप में बीमा को सुदृढ़ करने से संबद्ध मुद्दों पर भी चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारत में स्वास्थ्य देखभाल के वित्तपोषण में सुधार की आवश्यकता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • स्वास्थ्य वित्तपोषण हेतु दीर्घावधिक रणनीति के रूप में बीमा को सुदृढ़ करने से संबंधित मुद्दों का आकलन कीजिए। 
  • आगे की राह सुझाइए।

उत्तर

नियोजित विकास के अनेक वर्षों के बाद भी, भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ देखभाल के घोषित उद्देश्य एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय के वास्तविक स्तर के बीच व्यापक असंतुलन है।

भारत में स्वास्थ्य देखभाल के वित्तपोषण में सुधारों की आवश्यकता

  •  अपर्याप्त वित्तपोषण: स्वास्थ्य देखभाल पर कुल व्यय, GDP का लगभग 1.4% है (आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17)। हालाँकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2015 सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में क्रमिक वृद्धि कर इसे GDP का 2.5% करने की परिकल्पना करती है।
  • बढ़ता आउट-ऑफ पॉकेट घरेलू व्यय: भारत, वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य पर सर्वाधिक आउट ऑफ़ पॉकेट व्यय वाले राष्ट्रों में से एक है। शहरी तथा ग्रामीण परिवारों, दोनों के ही इस प्रकार के व्यय में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि हुई है।
  • निजी क्षेत्रक पर बढ़ती निर्भरता: लगभग 60% आंतरिक रोगी (इनपेशेंट) एवं 70% बाह्य रोगियों को (आउटपेशेंट) उपचार निजी क्षेत्रक द्वारा प्रदान किया जाता है। यह निम्न और मध्यम आय वाले वर्गों पर वित्तीय बोझ बढ़ाता है, क्योंकि निजी क्षेत्रक द्वारा ली जाने वाली फ़ीस अनियमित और मनमानी होती है।
  • निम्न बीमा प्रवेश: बीमा द्वारा केवल 5% जनसंख्या ही कवर की गयी है। इससे आउट-आफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय में बढ़ोत्तरी होती है।
  • खरीद प्रक्रिया में भ्रष्टाचार: स्वास्थ्य देखभाल बजट का लगभग 26% दवाओं, टीकों और चिकित्सा आपूर्ति में व्यय किया जाता है। परन्तु, खरीद प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अस्पष्टता के कारण गलत मात्रा में आपूर्ति, निविदा निर्णयों में विलम्ब तथा संसाधनों की चोरी(siphoned off) जैसी अनियमितताएँ उपस्थित होती रहती हैं।
  • बजटीय प्रोत्साहन: जारी कार्यक्रमों के सार्थक आकलन के बिना ही उनमें प्रतिवर्ष परिवर्तन होता रहता है।

स्वास्थ्य बीमा को स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण की समस्या का समाधान करने के प्रमुख उपायों में से एक माना जाता है। हालाँकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NSS) के अनुसार भारत की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या किसी भी स्वास्थ्य बीमा योजना द्वारा आच्छादित नहीं है। इस प्रकार इसके दीर्घावधिक लाभों एवं लागतों का विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य बीमा को सुदृढ़ करने के सकारात्मक पहलू

  • यह स्वास्थ्य पर किए जाने वाले आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी करेगा।
  • निम्न आय वर्गों को पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की उपलब्धता सुलभ होगी।
  • यह गंभीर रोगों के मामले में सामाजिक सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करेगा।
  • यह बीमा क्षेत्रक और संबद्ध वित्तीय क्षेत्रकों को बढ़ावा दे सकता है।

स्वास्थ्य बीमा को सुदृढ़ करने के नकारात्मक पहलू

  • इसे व्यापक रूप से व्याप्त सूचना असममिति एवं परिणामस्वरूप सार्वजनिक कोष पर पड़ने वाले बोझ के कारण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के वित्तपोषण का एक ख़राब मॉडल माना जाता है।
  • भारत में सामान्यतः बीमा कराने वाले लोग सामान्य औसत जनसंख्या की तुलना में ऐसे लोग अधिक होते हैं जिनके रोगग्रस्त होने की सम्भावना होती है। इससे बीमित लोगों का पूल और अधिक जोखिमग्रस्त हो जाता है। परिणामस्वरूप बीमा का मूल्य निर्धारण अधिक कठिन हो जाता है।
  • भारत की व्यवसायगत संरचना श्रम गहन है। इसमें संबद्ध स्वास्थ्य जोखिम अधिक हैं जो प्रीमियम को अधिक महँगा कर देते हैं।
  • जनसंख्या का बड़ा भाग सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं जैसे PMJSBY, RSBY आदि पर निर्भर रहता है, परन्तु इनका आच्छादन एवं पहुँच सीमित है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक निर्धन परिवार वित्तीय साक्षरता एवं जागरूकता के अभाव के कारण स्वास्थ्य बीमा का उपयोग नहीं करते हैं।

आगे की राह

भारत के विशाल मानव संसाधनों को ध्यान में रखते हुए, सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने के महत्व को आवश्यकता से अधिक नहीं आँका जाना चाहिए। हालाँकि, स्वास्थ्य व्यय नागरिकों के लिए निरंतर बढ़ता हुआ बोझ बनता जा रहा है, अतः यह आवश्यक है कि एक उपयुक्त बीमा योजना का व्यापक रूप से लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर स्वास्थ्य देखभाल के सार्वभौमीकरण पर विचार किया जाए। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) का लक्ष्य भी सार्वभौमिक स्वास्थ्य आच्छादन प्राप्त करना एवं सभी को सस्ती दर पर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करना है।

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