सूचना और संचार प्रौद्योगिकी : साइबर खतरा अनुभव और खुलापन (एक्सपोज़र) साइबर स्पेस

प्रश्न: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के द्रुत विकास के लाभों के साथ-साथ, इससे संबद्ध जोखिम और दूरगामी परिणाम भी हैं। सरकार ने भारत में समावेशी और सुरक्षित साइबर स्पेस के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु एक समिति का गठन किया है। समिति ने इस संबंध में जनता की राय मांगी है। एक प्रबुद्ध नागरिक के रूप में, आपको निम्नलिखित विषयों पर अपना सुझाव देना है:

(a) आपको ऐसा क्यों लगता है कि कुछ लोग या लोगों का एक समूह साइबर खतरों, विशेष कर साइबर बुलीइंग (धमकियों) के प्रति अधिक सुभेद्य हैं।

(b) क्या आप मानते हैं कि साइबर स्पेस के मामले में अनुभव और खुलापन (एक्सपोज़र) किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति और व्यवहार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं?

(c) साइबर स्पेस को सभी नागरिकों के लिए अधिक सुरक्षित और अनुकूल बनाने के लिए कौन-से युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित किए जा सकते हैं?

दृष्टिकोण

  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पन्न लाभों और जोखिमों को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • कारण सहित उल्लेख कीजिए कुछ लोग या लोगों का एक समूह साइबर खतरों, विशेष कर साइबर बुलीइंग (धमकियों) के प्रति अधिक सुभेद्य हैं। चर्चा कीजिए कि साइबर स्पेस के मामले में अनुभव और खुलापन (एक्सपोज़र) किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति और व्यवहार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।
  • युक्तियुक्त प्रतिबंधों को सूचीबद्ध कीजिए जो साइबर स्पेस को सभी नागरिकों के लिए अधिक सुरक्षित और अनुकूल बनाने के लिए आरोपित किए जा सकते हैं।

उत्तर

ICT का विकास के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक आयामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसने आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया है, विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करके उनका सशक्तिकरण किया है और विचारों की विविधता उपलब्ध करायी है। हालाँकि ICT की वैश्विक प्रकृति, गति, सुविधा और अनामिकता का दुरुपयोग साइबर-बुलीइंग (धमकियों), साइबर-ग्रूमिंग, हैकिंग, पोर्नोग्राफी, कट्टरपंथ को बढ़ावा देने, धमकी, निजता का उल्लंघन, प्रतिष्ठा की क्षति, पहचान की चोरी जैसे अनेक खतरे उत्पन्न करने के लिए किया जा रहा है।

(a) साइबर-बुलीइंग (धमकियों), किसी को जानबूझकर परेशान करने, धमकाने या आहत करने के लिए संदेश, टिप्पणियाँ और चित्र/वीडियो को भेजने के लिए इंटरनेट या मोबाइल प्रौद्योगिकी के प्रयोग को संदर्भित करती है। किसी साइबर बुली द्वारा दूसरों को धमकाने के लिए टेक्स्ट मैसेज, ईमेल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, वेब पेज, चैट रूम आदि का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि सभी ICT प्रयोगकर्ताओं को साइबर खतरों का सामना करने का जोखिम है, लेकिन कुछ सामाजिक समूह हैं जो साइबर खतरों के प्रति अधिक सुभेद्य हैं

  • महिलाएं: महिलाओं के विरुद्ध होने वाले साइबर अपराध महिलाओं की लैंगिक भूमिका, लैंगिकता और उनके लिए निर्धारित लैंगिक मानदंडों संबंधी रूढ़िवादिता में निहित हैं। महिलाएं ऐसी साइबर बुलीइंग का शिकार होती हैं जिसमें अंतरंग चित्रों को बिना सहमति के साझा करना, कामुक और अश्लील चित्रों को अकारण भेजना तथा यौन प्रेरित व्यवहार के रूप में वर्णित साइबर बुलीइंग के अन्य प्रकार शामिल होते हैं।
  • बच्चे और किशोर: साइबर खतरों के प्रति अपनी प्रायोगिक मानसिकता और सीमित समझ के कारण वे साइबर धमकियो जैसे साइबर खतरों के लिए विशेष रूप से असुरक्षित हैं। अधिगम एवं एकाग्रता संबंधी समस्याओं से ग्रस्त बच्चे इसके प्रति अधिक सुभेद्य हैं। इसके शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक परिणाम हो सकते हैं तथा यह स्कूल छोड़ने और अवसाद का कारण बन सकता है।
  • युवा: युवा ऑनलाइन चरमपंथ, अधिक वेतन वाली ऑनलाइन नौकरियों हेतु आकर्षण आदि के प्रति अधिक सुभेद्य हैं। जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च द्वारा कराए गए एक अध्ययन से ज्ञात होता है कि 25 वर्ष से कम आयु के बच्चों और युवाओं, जो साइबर-बुलीइंग के शिकार होते हैं, में आत्महत्या करने की संभावना दोगुनी होती है।
  • प्रतिष्ठित व्यक्तित्व: प्रतिष्ठित व्यक्तित्व, विशेषतः महिलाएं, अपने रूप-रंग, कार्य, सामाजिक जीवन आदि के लिए शरीर सम्बन्धी नकारात्मक टिप्पणियों (बॉडी शेमिंग), नस्लीय टिप्पणियों, स्टाकिंग और साइबर-बुलीइंग के लक्षित शिकार होते हैं। परिणामस्वरूप सोशल मीडिया, मानसिक और मनोवैज्ञानिक तनाव उत्पन्न करती है और कभी-कभी कुछ मामलों में आत्महत्या की घटनाएं देखने को मिलती हैं।

इसके अतिरिक्त, प्रौद्योगिकी का विलंबित प्रयोग, सूचनाओं में असममिति और व्यवहारिक लक्षण जैसे जटिल पासवर्ड का प्रयोग करने के प्रति अनिच्छा इत्यादि के कारण वृद्ध और डिजिटल रूप से निरक्षर वर्ग भी साइबर खतरों के प्रति सुभेद्य होते जा रहे हैं।

(b) साइबर स्पेस में सोशल नेटवर्क, टेक्स्ट मैसेंजर, गेमिंग साइट्स जैसी सेवाओं और उत्पादों का विकास वांछनीय और अवांछनीय दोनों ही प्रकार की विषयवस्तु के प्रवाह को आश्रय प्रदान कर दृष्टिकोण और व्यवहार को प्रभावित करता है।

ऐसी सेवाओं में इनके उपयोगकर्ताओं को अत्यधिक प्रभावित करने की क्षमता होती है। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया के किसी ग्रुप में व्यक्तियों को उपलब्ध कराई गई सूचनाएं वैयक्तिकृत व समयबद्ध होती हैं और सामान्यतः किसी ऐसे स्रोत से प्राप्त होती हैं जो उनके लिए विश्वसनीय/ज्ञात होता है। इस प्रकार के किसी बंद समूह में लोग एकसमान विचारधारा साझा कर सकते हैं और साझा की गई जानकारियां वैधता प्राप्त कर सकती हैं। इस प्रकार, एक ‘भेड़-चाल/समूह वाली मानसिकता (groupthink)’ का विकास हो सकता है जो घटनाओं और विचारों (सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक) के प्रति समूह की धारणा को दृढ़ता से प्रभावित कर सकती है।

ऑनलाइन समुदायों/समूहों के उद्भव द्वारा सूचना सत्यापन (अर्थात् विश्वसनीय स्रोतों की पहचान करना) की सामान्य प्रक्रिया को ‘नेटवर्क विज़डम’ (अर्थात समूह नेटवर्क का विवेक, जिसकी वैधता अधिक मानी जाती है) द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। कट्टरपंथी समूह और यहां तक कि राजनीतिक दल भी स्थितियों का लाभ उठाने तथा धारणाओं के गलत प्रस्तुतिकरण और परिवर्तन हेतु ऐसे समूहों के अंतर्निहित लचीलेपन का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, वर्ष 2014 में असम में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा से संबंधित विरूपित चित्रों का प्रचार-प्रसार किया गया, जबकि वास्तव में ऐसी कोई घटना घटित ही नहीं हुई थी।

“डिजिटल बेडरूम” की अवधारणा ने बच्चों के दिमाग को विकृत कर दिया है; इसके अंतर्गत इंटरनेट और सोशल मीडिया बाल्यावस्था को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित कर रहे हैं और वास्तविक जीवन से अलगाव को बढ़ा रहे हैं। ऑनलाइन गेम के कारण हिंसक व्यवहार अति सामान्य हो गया है, यह विशेष रूप से बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करता है।

(c) युक्तियुक्त प्रतिबंध जो साइबरस्पेस को अधिक सुरक्षित और अनुकूल बनाने हेतु लागू किए जा सकते हैं: 

  • बच्चों जैसे सुभेद्य समूहों की सोशल मीडिया साइटों तक पहुंच को सीमित करने हेतु आवश्यक तकनीकी विकल्प प्रदान करना।
  • गलत/असत्यापित समाचारों को प्रसारित करने पर प्रतिबंध, विशेषकर जब कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए यह आवश्यक हो।
  • एंटी-पायरेसी कानूनों का सख्त अनुपालन और प्रमुख सोशल नेटवर्किंग साइटों की अनिवार्य ऑडिट करना।
  • साइबर अधिकारियों द्वारा उसी माध्यम का प्रयोग करके सही जानकारी प्रदान करना और अफवाहों को प्रारंभिक अवस्था में ही रोकना।
  • सेक्स, हिंसा, मादक द्रव्यों के सेवन, अश्लीलता या अन्य किसी मैच्योर कंटेंट के संदर्भ में दर्शकों के लिए उपयुक्तता सम्बन्धी वर्गीकरण हेतु अनिवार्य ऑनलाइन कंटेंट रेटिंग प्रणाली की स्थापना करना।

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