श्रम बल की नियोजनीयता में सुधार : विघटनकारी प्रौद्योगिकियों (डिस्रप्टिव टेक्नोलॉजी) द्वारा लाए जा रहे संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न: विघटनकारी प्रौद्योगिकियों (डिस्रप्टिव टेक्नोलॉजी) द्वारा लाए जा रहे संरचनात्मक परिवर्तनों के प्रकाश में श्रम बल की नियोजनीयता में सुधार लाने के साथ-साथ रोजगार अवसरों की संख्या बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • विघटनकारी प्रौद्योगिकियों द्वारा लाए जा रहे संरचनात्मक परिवर्तनों का संक्षिप्त विवरण के साथ परिचय दीजिए।
  • उचित आंकड़ों के साथ अपने तर्कों का समर्थन कीजिए।
  • श्रम बल की नियोजनीयता में सुधार के साथ-साथ रोजगार के अवसरों की संख्या बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले उपायों का सुझाव दीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

अर्थव्यवस्था में नौकरियों की संख्या पर नई तकनीक का समग्र प्रभाव, स्वचालन और नए जटिल कार्यों की खोज के मध्य एक प्रतिस्पर्धा है जो नई नौकरियाँ सृजित करती है। शोध फर्मों द्वारा अनुमान लगाया गया है कि 2020 तक, सभी संगठनों में से 75 प्रतिशत अवसंरचना और परिचालन (I&O) कौशल अंतराल के कारण दृश्य व्यापार व्यवधान का अनुभव करेंगे।

हालांकि, स्वचालन और तीव्र तकनीकी परिवर्तन भी नई नौकरियों के अतिरिक्त उच्च उत्पादकता, आर्थिक समृद्धि, वर्द्धित क्षमता, सुरक्षा और सुविधा प्रदान करने हेतु वचनबद्ध होते हैं।

नियोजनीयता में सुधार के लिए आवश्यक उपाय:

  • निरंतर परिवर्तनशील तकनीक और संबंधित कौशल आवश्कताओं के अनुसार नियोक्ता कौशल के साथ श्रम बल को सुसज्जित करना। यह कार्यक्रमों में नियमित अपडेट की मांग करता है।
  • शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग के मध्य सहयोग को प्रशिक्षुता जैसे कार्यक्रमों के साथ बढ़ाया जाना चाहिए।
  • अकुशल श्रमिकों का प्रशिक्षण और उनके कौशल को आगे बढ़ाने के लिए कौशल संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ण निरंतरता उपलब्ध होनी चाहिए।

बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु आवश्यक उपाय:

  • सरकार के द्वारा
  • निगमों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि करने वाली पहलों का समर्थन करना और नई प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन में श्रमिकों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना।
  • नौकरियों के सृजन हेतु परिधान और चर्म जैसे श्रम-केंद्रित उद्योगों का समर्थन करना।
  • प्रमुख क्षेत्रकों में FDI समझौतों के दौरान प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के आग्रह के माध्यम से नवीनतम प्रौद्योगिकियों तक पहुंच प्राप्त करने हेतु भारतीय उपभोक्ता बाजार के वृहद आकार का लाभ उठाना।
  • कौशल और पुनौशल पहल- स्किल इंडिया के उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करने हेतु सामान्य, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधारों को प्रभावित करने के लिए 2 से 3 वर्षों के समय अंतराल का उपयोग करना।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने में सक्षम बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपकरणों का विस्तार और उन्हें अपडेट करना।
  • जीवन-पर्यन्त सीखने की रणनीतियों को तैयार करना और नागरिकों के मध्य जीवन-पर्यन्त सीखने की दिशा में व्यवहार परिवर्तन को प्रचलित करना, जैसे कैरियर परामर्श केंद्र स्थापित करना, उभरते उन्नत प्रौद्योगिकियों इत्यादि के लिए उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित करना।
  • स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करना जो प्रौद्योगिकी का उपयोग करके असंगठित क्षेत्रों को संगठित क्षेत्रों में परिवर्तित करने में सहायता करता है।
  • अवसंरचना और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, पर्यटन और आतिथ्य में सरकारी निवेश के माध्यम से नौकरियों का सृजन करना और प्रौद्योगिकी-सहायता प्राप्त श्रमबल के उपयोग के माध्यम से अन्य विकास क्षेत्रों में परिवर्तन लाना।
  • उद्योगों द्वारा
  • सीखने हेतु सहयोगपूर्ण परिवेश का निर्माण करना और संगठनात्मक स्तरों पर श्रमबल पुन: प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना।
  • उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के साथ अपने प्रयासों की सफलता सुनिश्चित करने हेतु सरकार के साथ घनिष्ठ साझेदारी में कार्य करना।
  • अकादमिक द्वारा
  • संज्ञानात्मक/निर्णय-संचालित कौशल पर ध्यान केंद्रित करना – नौकरियों और कौशल में परिवर्तन की तीव्र गति,अद्यतन कौशल के लिए बढ़ती मांग उत्पन्न कर रही है।
  • सीखने की दिशा में छात्रों की प्रवृति को बढ़ाने के लिए सहज समयावधि के साथ पाठ्यक्रम तैयार करना।
  • व्यक्तियों द्वारा
  • जीवन पर्यन्त सीखने का उत्तरदायित्व- 20 से 25 वर्ष की आयु तक औपचारिक शिक्षा का वर्तमान मॉडल और पुनः हमारे शेष जीवन के लिए कामकाजी और अनुभवी शिक्षा अप्रचलित है। सरकार और ऐसी कंपनियाँ जहां लोग कार्यरत हैं वहां सीखने के संबंधित अवसरों का लाभ उठाने हेतु लोगों को सक्षम परिवेश की आवश्यकता है।
  • ऑनलाइन अर्थव्यवस्था को अपनाना- इसके लिए संविदात्मक श्रम / परियोजना-आधारित कार्य व्यवस्था के लाभों के महत्व को समझने और मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

तकनीक के साथ विडंबना यह है कि यह प्रचलित नौकरियों के लिए संकट उत्पन्न करती है, लेकिन ऐसी नौकरियाँ सृजित करती हैं जिनकी अभी तक हमारे द्वारा कल्पना भी नहीं की गई है। पारंपरिक व्यवसायों के पास डिजिटल व्यवधान का मुकाबला करने के लिए और उत्पादकता में वृद्धि, व्यापार की सुगमता सुनिश्चित करने हेतु डिजिटल और नई प्रौद्योगिकी प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।

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