सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के लिए अनिवार्य ‘उपशमन'( Alleviation)

प्रश्न : सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के लिए अनिवार्य ‘उपशमन’ अवधि होने के पीछे क्या औचित्य है? इस प्रावधान के उल्लंघन के कई दृष्टान्तों  के आलोक में, क्या आप मानते है कि सिविल सेवा आचरण नियमावली पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है?(150 words)

दृष्टिकोण

  • उत्तर के आरम्भ में, उपशमन अवधि और उससे संबंधित नियमों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  • सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के लिए अनिवार्य उपशमन अवधि के पीछे निहित तर्कों का उल्लेख कीजिए।
  • इस प्रावधान के उल्लंघन के दृष्टान्तों को वर्णित करते हुए, सिविल सेवा नियमों में व्याप्त अंतरालों को रेखांकित कीजिए।
  • उल्लिखित अंतराल के अनुरूप सुधारों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

सेवानिवृत्ति के पश्चात् सिविल सेवकों द्वारा किसी भी व्यावसायिक रोजगार को स्वीकार करने से पूर्व एक निर्दिष्ट समय के लिए उपशमन अवधि पूर्ण करनी होती है। केन्द्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964 और अखिल भारतीय सेवा (आचरण), नियमावली 1968 के अनुसार एक पेंशनभोगी (जो अपनी सेवानिवृत्ति से ठीक पहले ग्रुप ‘ए’ श्रेणी का अधिकारी था) अपनी सेवानिवृत्ति की तिथि से एक वर्ष की अवधि की समाप्ति से पूर्व यदि किसी भी व्यावसायिक रोजगार को स्वीकार करने का इच्छुक है, तो वह निर्धारित प्रपत्र में एक आवेदन जमा करके सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त कर सकता है। इस अवधि को वर्ष 2015 में दो वर्षों से कम करते हुए एक वर्ष किया गया था।

उपशमन अवधि के पीछे निहित तर्क :

  • यह वरिष्ठ सिविल सेवकों द्वारा पद का दुरुपयोग किए जाने से रोकने का एक साधन है, ताकि वरिष्ठ सिविल सेवक सेवानिवृत्ति के पश्चात् निजी प्रतिष्ठानों में पुन: रोजगार प्राप्त करने के लोभ से ऐसे प्रतिष्ठानों का समर्थन न कर सकें।
  • यह नौकरशाही की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और प्रशासन में भ्रष्टाचार की संभावना को समाप्त करने के लिए आवश्यक है।
  • इसके द्वारा सरकार को यह सत्यापित करने के लिए समय मिल जाता है कि विगत तीन वर्षों की सेवा के दौरान सिविल सेवक की ऐसी संवेदनशील या रणनीतिक सूचनाओं तक पहुँच नहीं रही है जो प्रत्यक्ष रूप से उस संगठन (जिसमें वे शामिल होना चाहते हैं) के हितों या कार्य से संबंधित है।
  • साथ ही, यह भविष्य में स्वयं द्वारा चयनित किसी भी रोजगार को प्राप्त करने के सिविल सेवकों के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है।

हाल ही में, एक पूर्व-विदेश सचिव अपनी सेवा अवधि के एक वर्ष पूर्ण होने से पूर्व ही केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के पश्चात् एक निजी प्रतिष्ठान से जुड़ गए थे। एक पूर्व वित्त सचिव को भी किसी निजी कंपनी के प्रमुख के रूप में उस कंपनी में शामिल होने के लिए छूट प्रदान की गई थी।

सिविल सेवा नियमों की त्रुटियां

  • केंद्र सरकार का विवेकाधिकार: व्यक्तिगत सिविल सेवक एक वर्ष की अवधि से पूर्व निजी कंपनियों में शामिल होने के लिए सरकार से छूट के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालाँकि, इस तरह के मामलों में मामला विशिष्ट आधार पर विवेकाधिकार का प्रयोग संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारियों को अनुमति प्रदान करने के लिए निर्धारित सुव्यवस्थित प्रक्रिया को कमजोर बनाता है।
  • निजी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने हेतु आधिकारिक स्थिति का उपयोग करना: इन नियमों के प्रावधानों के अनुसार, सिविल सेवकों को किसी अन्य रोजगार को प्राप्त करने अथवा उस संबंध में प्रस्ताव करने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। हालांकि, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां ऐसे सदस्यों द्वारा निजी कंपनियों के साथ सौदेबाजी की जाती है ताकि वे सरकार के अधीन सेवा में रहते हुए भी निजी कंपनी में सेवानिवृत्ति के पश्चात् अपना रोजगार सुरक्षित कर सकें। यह अनिवार्य रूप से हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न करता है।
  • सेवानिवृत्ति के पश्चात चुनाव लड़ना: इन नियमों में कोई भी प्रावधान किसी सिविल सेवक को राजनीतिक दल में शामिल होने और चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित नहीं करता है। यह एक तटस्थ नौकरशाही के विचार को कमजोर करता है।
  • न्यायिक और अर्ध-न्यायिक निकायों की स्वतंत्र कार्यप्रणाली: सेवानिवृत्ति पश्चात कार्य नियोजन न्यायिक और अर्ध-न्यायिक निकायों के स्वतंत्र कामकाज को बाधित कर सकता है, क्योंकि नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत्ति के पश्चात न्यायाधिकरण/आयोगों में पदों को प्राप्त करने हेतु पूर्व कोई उपशमन अवधि निर्धारित नहीं की गयी है।
  • सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा किए गए परामर्शी (Consultancy) या गैर-कार्यकारी कार्य उपशमन अवधि के प्रावधान में शामिल नहीं होते हैं।

इसके अतिरिक्त, सिविल सेवा नियमों के उल्लंघन के लिए सिविल सेवकों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई प्रारंभ करने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इस प्रकार, मौजूदा व्यवस्था में अक्षमताओं के निवारण हेतु सुधार किए जाने की आवश्यकता है। बिना किसी अपवाद के एक वर्ष की अनिवार्य उपशमन अवधि, नौकरशाहों की सेवानिवृत्ति के पश्चात की नियुक्तियों के लिए मापदंडों का निर्धारण जैसे प्रावधान प्राथमिकता के आधार पर निर्मित किए जाने चाहिए।

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