एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) : राष्ट्रीय जल नीति, 2012 के प्रावधानों का उल्लेख
प्रश्न: एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीय जल नीति, 2012 कैसे IWRM को बढ़ावा देने का प्रयास करती है? (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) के अर्थ, सिद्धांतों और घटकों की व्याख्या कीजिए।
- IWRM को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रीय जल नीति, 2012 के प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) एक ऐसी प्रक्रिया है जो महत्त्वपूर्ण पारितंत्रों की संधारणीयता से समझौता किए बिना न्यायसंगत तरीके से आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने के लिए जल, भूमि और संबंधित संसाधनों के समन्वित विकास और प्रबंधन को प्रोत्साहन देने का प्रयास करती है।
यह एक समग्र दृष्टिकोण है जो व्यापक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक ढांचे के अंर्तगत भौतिक पर्यावरण के प्रबंधन को एकीकृत करने का प्रयास करता है। इसमें विभिन्न विषयों और हितधारकों के ज्ञान का उपयोग करना सम्मिलित है ताकि जल संसाधनों के प्रबंधन तथा विकास के लिए एक व्यापक भागीदारी योजना और कार्यान्वयन उपायों का विकास किया जा सके।
IWRM के सिद्धांत:
- आर्थिक दक्षता
- पर्यावरणीय संधारणीयता
- सामाजिक समता (इसके अंतर्गत निर्धनता में कमी भी सम्मिलित है)
राष्ट्रीय जल नीति, 2012 निम्नलिखित तरीकों से IWRM को बढ़ावा देने का प्रयास करती है:
- जल संसाधन योजना के लिए साझा एकीकृत दृष्टिकोण: नीति के आधारभूत सिद्धांतों में से एक यह है कि जल संसाधनों के नियोजन, विकास और प्रबंधन को स्थानीय, क्षेत्रीय, राज्य और राष्ट्रीय संदर्भ पर विचार करने वाले साझा एकीकृत दृष्टिकोण द्वारा शासित किया जाना चाहिए।
- बहु-विषयक संस्थान: केंद्र / राज्य सरकार के स्तरों पर विभागों / संगठनों को पुनर्गठित किया जाना चाहिए और इन्हें IWRM की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु बहु-विषयक बनाया जाना चाहिए।
- IWRM के सिद्धांतों को बढ़ावा देना: यह नीति IWRM के सिद्धांतों के अनुरूप मानवीय, सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील आधार को रेखांकित करती है।
- अंतर-राज्य समन्वय: यह अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के अनुकूलतम विकास हेतु अंतर-राज्य समन्वय की सुविधा प्रदान करने के लिए एक व्यापक कानून की आवश्यकता का उल्लेख करती है।
- नदी बेसिन दृष्टिकोण: यह नीति जल के सभी रूपों (वर्षा, मृदा नमी, भूमि और सतही जल समेत) के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण के साथ बेसिन/उप-बेसिन को इकाई मानते हुए भूमि और जल संसाधनों का वैज्ञानिक नियोजन सुनिश्चित करने की चर्चा करती है। इसके साथ ही यह अपवाह क्षेत्र एवं कमान क्षेत्र के समग्र व संतुलित विकास सुनिश्चित किए जाने का भी उल्लेख करती है।
- जल का कुशल उपयोग: यह नीति मांग प्रबंधन रणनीतियों, बेसिन प्राधिकरणों की स्थापना करने तथा उन्हें जल संसाधन के उपयोग को नियंत्रित करने से सम्बंधित उपयुक्त शक्तियां प्रदान करने, सूक्ष्म सिंचाई बढ़ावा देने आदि के माध्यम से जल संसाधन के उपयोग के प्रबंधन, योजना-निर्माण और विनियमन की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- सूचना प्रणाली: जल से सम्बंधित समस्त आँकड़ों को सुपरिभाषित प्रक्रियाओं और प्रारूपों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। इससे जल के प्रबंधन में सूचित निर्णय निर्माण हेतु डेटाबेस के विकास की सुविधा के लिए डेटा के ऑनलाइन अपडेशन और हस्तांतरण को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- जल संसाधन का एक सामुदायिक संसाधन के रूप में प्रबंधन: यह नीति जल को एक सामुदायिक संसाधन के रूप में प्रबंधित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। इसके अनुसार जल संसाधन को राज्य के द्वारा सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत के तहत नियंत्रित किया जायेगा जिससे सभी के लिए न्यायसंगत और संधारणीय विकास सुनिश्चित किया जा सके।
NITI आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत सर्वाधिक भयावह जल संकट का सामना कर रहा है और 2030 तक पेयजल की मांग में अत्यधिक वृद्धि होगी। ऐसे में IWRM एक ऐसा दर्शन है जिसका सिद्धांत एवं व्यवहार, दोनों ही स्तरों पर पालन किए जाने की आवश्यकता है।
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