भगत सिंह के क्रांतिकारी उग्रवाद का संक्षिप्त परिचय : भगत सिंह और उनके सहयोगियों द्वारा विचारधारा, लक्ष्य एवं क्रांतिकारी संघर्ष के तरीकों से अर्जित सफलता

प्रश्न: भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने विचारधारा, लक्ष्य एवं क्रांतिकारी संघर्ष के तरीकों को लेकर एक वास्तविक सफलता अर्जित की। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भगत सिंह के क्रांतिकारी उग्रवाद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • भगत सिंह और उनके सहयोगियों द्वारा विचारधारा, लक्ष्य एवं क्रांतिकारी संघर्ष के तरीकों से अर्जित सफलता का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार की उदासीनता और उत्पीड़न ने क्रांतिकारी उग्रवाद के विचारों को प्रेरित किया। ब्रिटिश उत्पीड़नकारी नीतियों के प्रभावस्वरूप, भगत सिंह और उनके सहयोगियों सहित अनेक भारतीय युवा, इस धारणा के प्रति आकर्षित हुए कि भारत की स्वतन्त्रता, केवल व्यक्तिगत वीरतापूर्ण कार्रवाई और हत्याओं जैसी हिंसक क्रांतिकारी पद्धतियों से ही प्राप्त की जा सकती है।

1920 के दशक के मध्य में, एक पुनर्विचार प्रारंभ हुआ तथा भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने विचारधारा, लक्ष्य एवं क्रांतिकारी संघर्ष के तरीकों को लेकर एक वास्तविक सफलता अर्जित की। 

विचारधारा

वर्ष 1928 में, उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख युवा क्रांतिकारियों ने एक नया सामूहिक नेतृत्व स्थापित करते हुए समाजवाद को अपने आधिकारिक लक्ष्य के रूप में अपनाया। इन्होंने HRA को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (आर्मी) में परिवर्तित कर दिया।

परिवर्तित विचारधारा के अनुसार, उन्होंने श्रमिक और किसान संगठनों के माध्यम से सामाजिक क्रांतिकारी और साम्यवादी सिद्धांतों का प्रचार किया। इसके अतिरिक्त, वे पूर्णतया एवं स्वेच्छा से धर्मनिरपेक्ष थे, क्योंकि नौजवान भारत सभा के छः नियमों में से दो नियम थे (a) सांप्रदायिक संगठनों के साथ संबंध न रखना; और (b) लोगों के मध्य सहनशीलता की भावना जाग्रत करना।

लक्ष्य

भगत सिंह अध्ययन में रुचि रखते थे और इतिहास की गहरी समझ के कारण उन्होंने क्रांतिकारी परंपरा को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के उन्मूलन से इतर एक अन्य लक्ष्य प्रदान किया। अपने सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने क्रांति के कार्य-क्षेत्र और परिभाषा को व्यापक स्वरूप प्रदान किया। उनके लिए, क्रांति साम्राज्यवाद से मुक्ति के अतिरिक्त, मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने का एक माध्यम बन गयी। चंद्रशेखर आज़ाद और यशपाल ने क्रांति को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया, जिसका उद्देश्य समाज में एक ऐसी नई व्यवस्था स्थापित करना था, जिसमें राजनीतिक और आर्थिक शोषण असंभव हो।

क्रांतिकारी संघर्ष के रूप

वे, आतंकवाद और व्यक्तिगत वीरतापूर्ण कार्रवाई से मार्क्सवाद की ओर अग्रसर हुए और उन्हें यह विश्वास हुआ कि केवल लोकप्रिय व्यापक जन-आंदोलन ही सफल क्रांति का नेतृत्व कर सकते हैं। उन्होंने युवा किसानों और श्रमिकों के मध्य राजनीतिक गतिविधियों के संचालन हेतु क्रांतिकारियों की एक खुली शाखा के रूप में पंजाब नौजवान भारत सभा की स्थापना में सहयोग किया।

हालांकि, HSRA और इसका नेतृत्व तीव्रता से व्यक्तिगत वीरतापूर्ण कार्यवाहियों और हत्याओं को त्यागकर लोकप्रिय जन राजनीति की ओर आगे बढ़ा, किन्तु, साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज के परिणामस्वरूप लाला लाजपत राय की मृत्यु ने उन्हें पुनः व्यक्तिगत हत्याओं की ओर प्रेरित किया।

इसी क्रम में, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा 8 अप्रैल, 1929 को केंद्रीय विधान सभा में बम फेंकने का कार्य सौंपा गया। हालांकि, इसका उद्देश्य किसी को हानि पहुँचाना नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य गिरफ्तार होकर ट्रायल कोर्ट का प्रयोग प्रचार के एक मंच के रूप करना था, जिससे लोग उनके आंदोलन और विचारधारा से परिचित हो सकें।

इन तरीकों से उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक स्थायी योगदान दिया और राष्ट्रवादी चेतना को व्यापक स्वरुप प्रदान करने में मदद की।

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