सीबेड माइनिंग क्या है: सीबेड माइनिंग से जुड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों

प्रश्न: सीबेड माइनिंग क्या है और यह भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? सीबेड माइनिंग से जुड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों पर प्रकाश डालिए और चर्चा कीजिए कि इनसे कैसे निपटा जा सकता है।

दृष्टिकोण

  • सीबेड माइनिंग शब्द को परिभाषित कीजिए। 
  • भारत के लिए इसके महत्व को समझाइए।
  • इससे संबंधित पर्यावरणीय चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • चर्चा कीजिए कि इन चुनौतियों से किस प्रकार निपटा जा सकता है।

उत्तर

सीबेड माइनिंग (Seabed Mining: SBM) एक प्रायोगिक औद्योगिक क्षेत्र है जिसमें समुद्र तल से जलमग्न खनिजों और निक्षेपों का निष्कर्षण शामिल है। यह अपेक्षाकृत एक नई पुनर्घाप्ति प्रक्रिया (retrieval process) है। इन निक्षेपों का खनन या तो हाइड्रोलिक पंप या बकेट सिस्टम का उपयोग करके किया जाता है, जो अयस्क को संसाधित करने के लिए सतह पर लाता है।

हाल ही में, इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) ने हिंद महासागर क्षेत्र में पॉलीमेटालिक सल्फाइड की खोज करने के लिए भारत को लाइसेंस दिया है। अगले दशक में, भारत सरकार ने गहरे समुद्र में जल के अन्दर चलने वाली मशीनों (underwater crawling machines) और मानव-चालित पनडुब्बियों जैसी समुद्री तकनीकों को विकसित करने और परीक्षण करने के लिए 1 बिलियन डॉलर से अधिक व्यय करने की योजना बनाई है।

सीबेड माइनिंग निम्नलिखित कारणों से भारत के लिए महत्वपूर्ण है:

  • पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स जिनमें तांबा, निकिल, कोबाल्ट, मैंगनीज, लोहा और दुर्लभ मृदा धातुएँ शामिल हैं, का उपयोग आधुनिक गैजेट जैसे स्मार्टफोन और लैपटॉप से लेकर पेसमेकर, हाइब्रिड कार और सौर पैनल बनाने में किया जाता है।  इन संसाधनों के वैश्विक मांग में निरंतर वृद्धि हो रही है।
  • कई गैर-ऊर्जा सामग्रियों की वैकल्पिक उपलब्धता उनके अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में गिरावट लाएगी। यह भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपयोगी होगी, जहां इनकी मांग अत्यधिक है।
  • यह समकालीन समय के सबसे तीव्र व्यवसायों में से एक है जिसके लिए भारत को तैयार रहना चाहिए।
  • भारत, तांबे, निकिल और कोबाल्ट के उत्पादन में इच्छुक है, क्योंकि ये स्वच्छ विद्युत् उत्पादन प्रदान करते हैं।
  • भारत का लक्ष्य खनिजों में आत्मनिर्भर बनना है। वर्तमान में भारत, चीन पर निर्भर है, इसलिए इनका सामरिक महत्व है।

ब्रिटेन स्थित नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर के 2017 के एक अध्ययन के अनुसार, प्रशांत महासागर में सात स्थानों पर खनन प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि समुद्री जीवों की मात्रा और विविधता “प्रायः गंभीर रूप से और दीर्घ काल के लिए” कम हो गई थी। सीबेड माइनिंग से संबन्धित पर्यावरणीय चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • यह सीमित रूप से ज्ञात पारिस्थितिकी के लिए एक अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।
  • खनन से अवसाद के ढेर में वृद्धि हो सकती है और खनन के कारण हुआ व्यवधान धीमी गति से वृद्धि करने वाले प्रवालों और मछलियों के पर्यावासों को नष्ट कर सकता है।
  • अंधकारमय पर्यावासों में प्रकाश के प्रवेश से नितलस्थ समुदायों के व्यवहार और प्रजनन प्रतिरूप में परिवर्तन आएगा। समुद्र के नीचे उत्पन्न ध्वनि उनकी गतिशीलता / प्रवासन प्रतिरूप को प्रभावित करेगी। यह कार्बन डाइऑक्साइड और ऊष्मा को अवशोषित करने वाले और विश्व की जलवायु को नियंत्रित करने वाले महासागरों पर दीर्घकालिक प्रभाव भी डाल सकता है।
  • वर्तमान नियामक तंत्र अर्थात यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी (UNCLOS) पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • खनन हेतु स्थलों को बंद करने की आवश्यकता भी होगी, जो गहरे और उथले समुद्र में प्रजातियों के आवागमन को बाधित करेगा।
  • अयस्कों के प्रसंस्करण के दौरान निकलने वाला अपशिष्ट जल महासागरों के तापमान और लवणता को प्रभावित कर सकता है और इसमें अवसाद और भारी धातुएँ भी मिला सकता है।

उपर्युक्त चुनौतियों से निम्नलिखित तरीकों से निपटा जा सकता है:

  • व्यापक पैमाने पर परियोजनाओं को प्रारम्भ करने से पहले समुद्री तल का गहन सर्वेक्षण और पर्यावरणीय प्रभावों का परीक्षण करना।
  • खनन के बजाए, खनिज नोड्यूल्स को बाहर निकालना समुद्री तलीय वनस्पतियों और जीवों पर कम प्रभाव डालेगा।
  • घरेलू कानूनों, मॉडल नियमों और जवाबदेही तंत्र का एक सुदृढ़ व्यवस्था बनाया जाना चाहिए।
  • UNCLOS में जैव विविधता संरक्षण समझौते के लिए एक पृथक प्रावधान को शामिल किया जाना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र, गहन सागरीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक नया निकाय स्थापित किया जाना चाहिए।
  • देशों को अपने निहित स्वार्थों को नए इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी फ्रेमवर्क में सहमत होने के लिए पृथक रखना चाहिए।

उच्च समुद्रों में संसाधनों के स्थायी दोहन के लिए एक नए अंतर्राष्ट्रीय परामर्श तंत्र की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में महासागर का केवल 2-7% और उच्च समुद्र का केवल 1% भाग संरक्षित है। प्रस्तावित BENJ (जैव विविधता से परे राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार) संधि और युनाइटेड नेशन (UN ) हाई सी ट्रीटी इस दिशा में सकारात्मक कदम सिद्ध होंगे।

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