विश्व में चीनी और गन्ने के अग्रणी उत्पादक के रूप में भारत
प्रश्न: भारत में चीनी उद्योग के वितरण का विवरण प्रस्तुत कीजिए। साथ ही, चीनी क्षेत्र को अवरुद्ध करने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- विश्व में चीनी और गन्ने के अग्रणी उत्पादक के रूप में भारत का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।
- भारत में विशिष्ट गन्ना बेल्ट को चित्रित कीजिए।
- उन कारकों को बताइए जो इन क्षेत्रों के आस-पास चीनी उद्योग की अवस्थिति का निर्धारण करते हैं।
- इस क्षेत्र द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं और संबंधित पर्यावरणीय चुनौतियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर
भारत गन्ना और गन्ने से उत्पन्न चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और विश्व में कुल चीनी उत्पादन के लगभग 8% का योगदान देता है। वर्तमान में, यह सूती वस्त्र उद्योग के पश्चात् भारत का दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत में चीनी उद्योग की शुरुआत तब हुई, जब उत्तर-पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में नील उत्पादकों द्वारा सिंथेटिक डाई के प्रारंभ के कारण नील की मांग में कमी आ गई थी।
भारत में चीनी उद्योग का वितरण गन्ना आधारित है, जो भारी, कम मूल्य, वजन ह्रास और जल्दी खराब होने वाला कच्चा माल है। गन्ने को लंबे समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता है क्योंकि सुक्रोज की मात्रा में कमी होती जाती है। इसके अतिरिक्त, इसे लंबी दूरी तक परिवहन नहीं किया जा सकता क्योंकि परिवहन लागत में कोई भी वद्धि उत्पादन की लागत बढ़ाएगी और गन्ना रास्ते में सूख सकता है। इसलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही अवस्थित होती हैं। साथ ही, यह कच्चे माल की मौसमी प्रवृति के कारण एक मौसमी उद्योग है। इन कारकों के आधार पर, चीनी उद्योग के संकेन्द्रण के दो प्रमुख क्षेत्र हैं। प्रथम क्षेत्र उत्तर में है जिसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब आते हैं तथा द्वितीय क्षेत्र के अंतर्गत दक्षिण में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश आते हैं।
भारत में चीनी उद्योग के समक्ष आने वाली समस्याएं
- अन्य देशों की तुलना में भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम है।
- लघु पेराई मौसम– यह इस उद्योग को मौसमी प्रकृति का बनाता है, जो इस क्षेत्र के लिए वित्तीय समस्याएँ उत्पन्न करता है।
- उत्पादन प्रवृत्तियों में उतार-चढ़ाव – अच्छी उपज वाले कृषि वर्ष के पश्चात् अत्यधिक निम्न उपज वाले कृषि वर्ष।
- उत्पादन की उच्च लागत- गन्ने की उच्च लागत, असक्षम अप्रचलित प्रौद्योगिकी, उत्पादन की अलाभकारी प्रक्रिया और उच्च उत्पाद शुल्क आदि के परिणामस्वरूप विनिर्माण की उच्च लागत के कारण उत्पादन की उच्च लागत।
- अप्रचलित मशीनरी के साथ मिलों के छोटा और अलाभकारी आकार।
- फसल प्रतिरूप में विकृति– गन्ना उत्पादन जल-गहन है और यह महाराष्ट्र जैसे जल की कमी वाले क्षेत्रों में प्रमुखता से उगाया जाता है।
- खांडसारी और गुड़ से प्रतिस्पर्धा: भारत में, 100 टन गन्ने से 10 टन चीनी प्राप्त की जाती है, लेकिन खांडसारी के मामले में केवल 7 टन चीनी उत्पन्न होती है। गुड़ की प्राप्ति केवल 5 प्रतिशत है। इस प्रकार खांडसारी और गुड़ के लिए गन्ने के उपयोग से देश को निवल हानि होती है।
- नीतिगत मुद्दे- राज्य सरकारें प्रायः बाजार की गतिशीलता को अनदेखा करते हुए फसल के लिए उच्च उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Prices: FRP) की घोषणा करती हैं। मिलों द्वारा किसानों को FRP का भुगतान करना पड़ता है, परन्तु उन्हें इसकी पुनः प्राप्ति के लिए बाजार पर छोड़ दिया जाता है। अच्छे उत्पादन के समय, चीनी का बाजार मूल्य लगभग हमेशा अलाभकारी हो जाता है, जबकि FRP उच्च रहता है। इससे किसानों को भुगतान में विलम्ब होता है।
उद्योग के महत्व को देखते हुए, सरकार, किसानों और गन्ना मिल मालिकों के मध्य सहयोगी दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि इन मुद्दों का शीघ्र समाधान किया जा सके। सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की है जो नकद से वंचित चीनी उद्योग की तरलता में सुधार करने में सहायता करेगी। जिसमें इथेनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने और 3 मिलियन टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने हेतु 4,440 करोड़ रुपये की राशि को अलग रखना शामिल है। CCEA ने सफेद/परिष्कृत चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य 29 रुपये प्रति किलो पर निर्धारित करने एवं चीनी मिलों पर स्टॉक होल्डिंग सीमा आरोपित करने का भी निर्णय किया है। इन उपायों से उद्योग और किसानों को अल्पकालिक राहत प्राप्त होने की संभावना है।
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