सरकार के विभागों की वर्तमान संरचना : पूर्व में वर्णित दुर्बलताओं के अनुरूप संबंधित सुधार
प्रश्न: विभिन्न गुणों के बावजूद, सरकार के विभागों की वर्तमान संरचना में कुछ दुर्बलताएँ विद्यमान हैं जो व्यवस्था को धीमा और बोझिल बना देती हैं। विश्लेषण कीजिए। (250 words)
दृष्टिकोण
- उत्तर के आरम्भ में, सरकार के विभागों की वर्तमान संरचना को स्पष्ट कीजिए।
- विभागीय प्रणाली के संबद्ध लाभों का उल्लेख कीजिए।
- विभागीय संरचना में विद्यमान ऐसी दुर्बलताओं की चर्चा कीजिए जो व्यवस्था को धीमा और बोझिल बना देती हैं।
- निष्कर्ष में, पूर्व में वर्णित दुर्बलताओं के अनुरूप संबंधित सुधारों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
संविधान के अनुच्छेद 77 के अंतर्गत निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए, भारत के राष्ट्रपति द्वारा ‘भारत सरकार (व्यवसाय का आवंटन) नियमों’ को निर्मित किया गया है। इन नियमों में निर्दिष्ट किया गया है कि भारत सरकार के कार्यों को मंत्रालयों, विभागों, सचिवालय और कार्यालयों के माध्यम से निष्पादित किया जाएगा।
विशिष्ट सरकारी विभाग सामान्यतः आवंटित कार्यों के संबंध में सरकार की नीतियों के निर्माण, निष्पादन और समीक्षा के लिए उत्तरदायी होते है। यह मुख्यतः भारत सरकार के सचिव की अध्यक्षता में गठित होते हैं। सचिव विभाग के प्रशासनिक प्रमुख और मंत्री के प्रमुख सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।
वर्तमान संरचना की शक्तियां :
- टाइम टेस्टेड सिस्टम: नियमों और स्थापित मानदंडों के अनुपालन ने राष्ट्र निर्माण और एक समावेशी राष्ट्र के सृजन में योगदान दिया है। इनके साथ ही आवश्यकता अनुसार आयोग, वैधानिक बोर्ड, स्वायत्त सहकारी संगठनों इत्यादि के रूप में नवीन संरचनाओं का निर्माण किया गया है।
- स्थिरता: स्थायी सिविल सेवकों द्वारा सरकारी कर्मचारियों की संरचना को एक निर्वाचित सरकार से दूसरी में सत्ता हस्तांतरण के दौरान निरंतरता और स्थिरता प्रदान की जाती है।
- संविधान के प्रति प्रतिबद्धता: इसने व्यापक पैमाने पर सिविल सेवाओं की तटस्थता को बरकरार रखा है और सरकारी कार्यक्रमों एवं सेवाओं के राजनीतिकरण पर रोक लगायी है।
- नीति निर्माण और इसके कार्यान्वयन के मध्य सम्बन्ध: सरकारी विभागों ने नीति निर्माण और इसके कार्यान्वयन के मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करके भारत सरकार और राज्यों के बीच सहकारी संघवाद की अवधारणा को बढ़ावा दिया है।
- राष्ट्रीय दृष्टिकोण: सरकारी विभागों के साथ-साथ इनके संलग्न और अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत लोक सेवकों ने संकीर्ण सीमाओं से आगे बढ़ते हुए एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण को विकसित किया है। इसने राष्ट्रीय एकीकरण को सुदृढ़ बनाने में योगदान दिया है।
वर्तमान संरचना की दुर्बलताएँ:
- नियमित कार्यों पर अनुचित बल देना: मंत्रालय दिन-प्रतिदिन के नियमित कार्यों की अधिकता के कारण नीति विश्लेषण और नीति निर्माण सम्बन्धी कार्यों पर ध्यान देने में प्रभावी रूप से सक्षम नहीं है।
- शक्तियों का संकेन्द्रण: ऐसे कार्य जो राज्य या स्थानीय सरकारों द्वारा किए जा सकते हैं या जो सरलता से आउटसोर्स किए जा सकते हैं, वे भी अभी केंद्र सरकार द्वारा ही सम्पादित किये जा रहे हैं।
- विभागों की संख्या में वृद्धि: अत्यधिक संख्या में मंत्रालयों और विभागों के सृजन से कार्यों का अतार्किक विभाजन हुआ है और निकटता से सम्बद्ध विषयों पर भी एकीकृत दृष्टिकोण और समन्वय का अभाव विद्यमान है।
- बहुस्तरीय संरचना: विस्तारित ऊर्ध्वाधर संरचना में अनेक स्तरों पर मामलों की जांच की जाती है, जिससे प्रायः निर्णय निर्माण में विलम्ब होता है और जवाबदेहिता में कमी आती है।
- जोखिम परिहार: रिवर्स डेलीगेशन की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है तथा फाइलों के हस्तांतरण के माध्यम से परामर्श और निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में जोखिम लेने से बचने का प्रयास किया जाता है। यह कार्य, विलंब और अदक्षता को बढ़ाता है।
- कार्यों का विभाजन: परिचालन स्तर पर, कार्यों के विभाजन और उप-विभाजन से सेवाओं के वितरण को अक्षम और समयसाध्य बनाने का एक सामान्य चलन बना रहा है।
- टीम भावना का अभाव: मौजूदा कठोर पदानुक्रम संरचना सरकारी विभागों के भीतर और उनके मध्य टीम भावना को भी हतोत्साहित करती है।
उपर्युक्त मुद्दों का समाधान करने हेतु, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार विभिन्न कदम उठाए जा सकते हैं जैसे कि समनुषंगिता के सिद्धांत का अनुपालन करना, मंत्रालयों और विभागों को तर्कसंगत बनाना और इनका पुनर्गठन करना, नीति मूल्यांकन की एक अंतर-अनुशासनात्मक प्रणाली की स्थापना करना आदि।
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