प्रभावी पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया की संभाव्यताओं का आकलन

प्रश्न: भारत में प्रभावी पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया नेटवर्क की संभाव्यताओं का आकलन कीजिए। साथ ही, भारत में पुलिस व्यवस्था में सोशल मीडिया के अनुकूलन की अपेक्षाकृत धीमी गति के पीछे उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  •  प्रभावी पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया की संभाव्यताओं का आकलन कीजिए।
  • पुलिस व्यवस्था में सोशल मीडिया के अनुकूलन की अपेक्षाकृत धीमी गति हेतु उत्तरदायी कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

वैश्विक स्तर पर तथा भारत में पुलिस विभाग सूचना संग्रहण, जागरूकता सृजन और सार्वजनिक इंटरफ़ेस को बनाए रखने के लिए प्रौद्योगिकी पर अत्यधिक निर्भर है। इस संदर्भ में, भारत में पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया वृहद संभाव्यता प्रदान करता है क्योंकि लाखों भारतीय फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और अन्य प्लेटफार्मों के सक्रिय उपयोगकर्ता हैं। इसे निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा समझा जा सकता है:

  • पुलिस प्रणाली में समस्या का समाधान करने के लिए सूचना विनिमय, समस्या की पहचान, समस्या निवारण और विश्वास की आवश्यकता होती है। सोशल मीडिया इन सभी पहलुओं में सहायता कर सकता है।
  • सोशल मीडिया अपराध की पहचान करने, संचार अंतराल (कम्यूनिकेशन गैप) को कम करने और पुलिस एवं नागरिकों के मध्य समन्वय में सुधार लाने के लिए नागरिक सहभागिता में वृद्धि करके पुलिस व्यवस्था की सहायता कर सकता है। उदाहरण के लिए नागरिकों द्वारा आपराधिक गतिविधियों की समय पर रिपोर्टिंग अपराध की रोकथाम और जांच आदि में सहायता करती है।
  • नागरिकों से फीडबैक और सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी शिकायतों और विचारों को समझने से पुलिस विभाग का समग्र विकास होता है।
  • सोशल मीडिया के कुछ उपकरण नागरिकों को अपनी पहचान छिपाने (anonymity) की सुविधा प्रदान करते हैं।  यह कानून एवं व्यवस्था से संबंधित मुद्दों के बारे में शिकायत करने के लिए उनके सामाजिक भय को समाप्त करने में सहायक है।
  • सोशल मीडिया सूचना प्रसारित करने में सहायता करता है और नागरिकों को उन क्षेत्रों के बारे में पूर्व-सूचना देता है, जहां संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।  नागरिकों को पुलिस की तैयारियों के बारे में सूचित करने के लिए पुलिस फेसबुक और ट्विटर पेज का उपयोग करती है। हालाँकि, इन कारकों में पुलिस व्यवस्था के लिए कुछ सीमाएं और चुनौतियां भी शामिल हैं:
  • सोशल मीडिया ने अफवाह फैलाना और अल्प समयावधि में भय उत्पन्न करना संभव बना दिया है।
  • इसने पुलिस कर्मियों, यहाँ तक कि उनके निजी जीवन को भी गहन संवीक्षा का विषय बना दिया है।
  • अनामिता किसी पुलिस कर्मी की छवि धूमिल करने के लिए उस पर सारहीन आरोप लगाना सरल बनाती है।
  • सोशल मीडिया का व्यापक उपयोग डाटा के वृहद संकेंद्रण के माध्यम से वाद-योग्य सूचना एकत्र करने की चुनौती भी उत्पन्न करता है।

समग्रतः सोशल मीडिया के व्यापक उपयोग की संभावित उपयोगिता एवं इसकी चुनौतियां, पुलिस द्वारा बदलते परिदृश्य को स्वीकार करना अनिवार्य बनाती हैं। हालांकि, पुलिस व्यवस्था में सोशल मीडिया का अनुकूलन अत्यधिक धीमा रहा है। इसके पीछे निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं:

  • पुलिस के सोशल नेटवर्क पेज संभालने के लिए कार्यबल तथा तकनीकी क्षमताओं की कमी है जो सामुदायिक पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया के अनुकूलन में बाधा उत्पन्न करती है।
  • कुछ राज्यों में पुलिस विभागों द्वारा प्रौद्योगिकी का प्रतिरोध।
  • सामान्य रूप से डिजिटल निरक्षरता और विशेष रूप से पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया के उपयोग के संबंध में लोगों के मध्य जागरूकता का अभाव, एक अवरोधक कारक है।
  • पुलिस की ओर से अस्पष्ट एवं व्यापक (Generic) सूचनाएं तथा नागरिकों की ओर से हिंसक और अपमानजनक सामग्री पुलिस व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया की प्रभावकारिता को कम कर देती है।
  • कई राज्यों में पुलिस व्यवस्था में सोशल मीडिया के उपयोग के संबंध में व्यापक नीति का अभाव है।
  • वास्तविक शिकायतों को अलग करना बहुत कठिन है। इस प्रकार, सोशल मीडिया का दुरुपयोग करके अफवाह फैलाने की संभावना रहती है।
  • पुलिस व्यवस्था में सोशल मीडिया को अपनाने में डाटा सुरक्षा और निजता से संबंधित चिंताएं भी व्यापक अवरोध उत्पन्न कर रही हैं।

सोशल मीडिया का उद्देश्य विकेन्द्रीकृत निर्णय-निर्माण की क्षमता प्राप्त करना है जो क्षेत्रीय अधिकारियों को अपराध की पहचान करने, स्थानीय नागरिकों की सहायता से समस्या को प्राथमिकता देने और पुलिस व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की शक्ति प्रदान करता है। एक प्रभावी सोशल मीडिया रणनीति को अपनाना समय की माँग है जो सोशल मीडिया का उपयोग करने के संभावित प्रतिफलों को बढ़ाने और इसके जोखिमों को कम करने पर केंद्रित हो।

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