भारत में संरक्षण कृषि को अपनाने की संभावना और चुनौती

प्रश्न:संरक्षण कृषि क्या है? भारत में संरक्षण कृषि को अपनाने की संभावनाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, इसके प्रोत्साहन के लिए कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत उपायों का भी उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • उत्तर के प्रथम भाग में, संरक्षण कृषि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  • द्वितीय भाग के अंतर्गत इसकी संभावनाओं एवं चुनौतियों की चर्चा कीजिए। 
  • अंतिम भाग में, संरक्षण कृषि को बढ़ावा देने हेतु नीतिगत तत्वों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

संरक्षण कृषि एक ऐसी कृषि पद्धति है, जिसका उद्देश्य उत्पादन में वृद्धि के साथ -साथ प्राकृतिक संसाधन आधार में भी वृद्धि करना है। इसके अंतर्गत मृदा में प्राकृतिक कार्बनिक पदार्थों में वृद्धि करने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन तकनीकों और विविधतापूर्ण कवर क्रॉप्स को अपनाया जाता है।

संरक्षण कृषि की संभावनाएँ: 

  • यह कृषि उपज में पारम्परिक विधियों के माध्यम से वृद्धि करके खाद्य सुरक्षा में अपना योगदान देती है।
  • यह मृदा अपरदन, लवणीकरण एवं मृदा संबंधी कार्बनिक पदार्थों की कमी जैसी स्थायी समस्याओं का समाधान कर सकती यह सतही जल के वाष्पीकरण में कमी कर जल की कमी से निपटने में सहायता कर सकती है
  • यह इनपुट लागत को विशेष रूप से कम कर सकती है,क्योंकि यह जुताई रहित कृषि (zero tillage) प्रौद्योगिकी पर आधारित होती है।
  • यह क्रॉप बर्निंग को प्रतिस्थापित करके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने में सहायता कर सकती है।
  • यह सामयिक एवं स्थानिक प्रतिरूप में, फसल विविधीकरण हेतु अवसर उत्पन्न कर सकती है। अतः यह प्राकृतिक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन प्रदान करती है।

हालांकि, संरक्षण कृषि के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियां भी विद्यमान हैं:

  • व्यापक नेटवर्किंग: इसके तहत किसानों, वैज्ञानिकों, विस्तार श्रमिकों (extension workers) एवं अन्य हितधारकों के मध्य साझेदारी और सहयोग की आवश्यकता होती है।
  • प्रणाली की समझ: यह मूलभूत प्रक्रियाओं एवं घटकों की अन्तःक्रिया की समझ के संदर्भ में पारंपरिक प्रणालियों की तुलना में अधिक जटिल है।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी चुनौतियां: ये चुनौतियां मृदा में न्यूनतम गड़बड़ी के साथ बीज बुवाई हेतु कृषि मशीनरी के विकास, मानकीकरण एवं अभिग्रहण, फसल कटाई तथा प्रबंधन प्रणालियों के विकास से संबंधित है।
  • स्थल विशिष्टता (Site specificity): संरक्षण कृषि प्रणालियों के लिए विशेष परिस्थितियों में अत्यधिक स्थल विशिष्ट रणनीतियों को अपनाया जाता है, जबकि ये रणनीतियां अन्य परिस्थितियों में अधिक प्रभावी नहीं होती हैं।
  • दीर्घकालिक अनुसंधान परिप्रेक्ष्य: संरक्षण कृषि पद्धतियों, उदाहरणार्थ: जुताई रहित कृषि (no-tillage) एवं सतह पर अधिशेष फसल अवशेषों के कारण संसाधनों में धीरे-धीरे सुधार होता है, और इसके लाभ केवल निश्चित समय पश्चात् प्राप्त होते हैं। इन लाभों के सृजित होने के लिए दीर्घावधि की आवश्यकता होती है।

संरक्षण कृषि को बढ़ावा देने के लिए, राज्य को निम्नलिखित उचित नीतिगत पहलों को प्रारंभ करना चाहिए जैसे:

  • सरकार को खाद्य सुरक्षा से आजीविका सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए तथा कर, शुल्क, मूल्य निर्धारण, व्यापार और सुधारों संबंधी नीतियों के माध्यम से फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • निजी अभिकर्ताओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है, जो नवीन कृषि तकनीक विकसित कर रहे हैं और सार्वजनिक, निजी निगमों एवं किसानों के मध्य साझेदारी को बढ़ावा देते हैं।
  • ऐसे कृषक सहभागी अनुसंधान की आवश्यकता है, जो सूक्ष्म पर्यावरण के लिए उपयुक्त नई मशीनों, फसलों तथा अन्य इनपुट की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम हों।
  • सतत संसाधन प्रबंधन के लिए ज्ञान आधार के निर्माण में तीव्रता लाने की आवश्यकता है।
  • प्रशिक्षण, विस्तार सेवाओं में सहयोग, कार्यक्रम कार्यान्वयन एवं बाजार विनियमन को निष्पादित करने के लिए एक संस्थागत संरचना का सृजन किया जाना चाहिए।
  • संरक्षण कृषि के अनुकूलन को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय समुदायों को समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए।

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