वर्तमान संस्थागत ढांचे से सम्बंधित मुद्दे : मिहिर शाह समिति की अनुशंसा

प्रश्न: जल प्रबंधन को अधिक समग्र और बहुअनुशासनात्मक बनाने के लिए केंद्रीय जल आयोग (CWC) एवं केन्द्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB) के संस्थागत ढांचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता है। मिहिर शाह समिति की अनुशंसाओं के संदर्भ में चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वर्तमान संस्थागत ढांचे से सम्बंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
  • मिहिर शाह समिति की अनुशंसाओं का उल्लेख कीजिए।
  • इस सम्बन्ध में चर्चा कीजिए कि कैसे यह संस्थागत ढांचे में परिवर्तन करेगी और इन निकायों की कमियों को दूर करेगी और कैसे जल प्रबन्धन को अधिक समग्र और बहु-विषयक बनाएगी।

उत्तर

वर्तमान में, जल प्रबन्धन दो पृथक तरीकों से किया जा रहा है- सतही जल प्रबंधन और भूमिगत जल प्रबंधन। हालाँकि, दोनों विषय अलग नहीं हैं बल्कि एक दूसरे से अंतर्संबंधित हैं। सतही जल के समक्ष प्रदूषण और असंधारणीय उपयोग जैसी चुनौतियां हैं। इसके अतिरिक्त भूमिगत जल का स्तर भी तेजी से गिर रहा है और निम्नस्तरीय जलभृत प्रबन्धन के कारण इसकी गुणवत्ता नष्ट हो रही है। इसलिए, जल प्रबन्धन को अधिक समग्र और बहु-विषयक बनाने के लिए संस्थागत ढांचे में एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है ताकि सिंचाई एवं अन्य प्रयोजनों के लिए जल का लाभकारी उपयोग किया जा सके।

मिहिर शाह समिति ने अनुशंसा की है कि CWC और CGWB को राष्ट्रीय जल आयोग (NWC) के रूप में पुनर्गठित और एकीकृत किया जाना चाहिए। यह एकीकृत निकाय भूमिगत और सतही जल के सामूहिक प्रबन्धन में सहायता करेगा। NWC देश में जल संबंधी नीति, डाटा और प्रशासन के लिए उत्तरदायी होगा। यह जल संसाधन मंत्रालय का एक सहायक कार्यालय होगा, जो पूर्ण स्वायत्तता के साथ कार्य करेगा।

प्रस्तावित NWC के मुख्य कार्य: (i) राज्य सरकारों को सुधारात्मक रूप में परियोजनाओं को कार्यान्वित करने हेतु प्रोत्साहित करना (ii) राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और भूजल प्रबन्धन कार्यक्रम का नेतृत्व करना (iii) नदियों के कायाकल्प के लिए स्थानविशिष्ट कार्यक्रम विकसित करना।

प्रस्तावित NWC के आठ भाग: सिंचाई सुधार, नदियों का कायाकल्प, जलभृत का मानचित्रण और भागीदारीपूर्ण भूमिगत जल प्रबन्धन, जल सुरक्षा, शहरी और औद्योगिक जल, जल की गुणवत्ता, जल सम्बन्धी आकंड़ों का प्रबन्धन और पारदर्शिता एवं ज्ञान प्रबन्धन व क्षमता निर्माण।

इन आठ भागों से दक्षतापूर्ण जल-प्रबन्धन हेतु आवश्यक संस्थागत ढांचा तैयार होगा। इससे शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट जल के पुन:चक्रण और पुन:उपयोग हेतु लागत प्रभावी और उचित तकनीक विकसित करने में सहायता मिलेगी। यह सार्वजनिक उपयोग हेतु जल सम्बन्धी आंकड़ों के प्रबन्धन की एक पारदर्शी और सुलभ प्रणाली बनाएगा तथा उसका अनुरक्षण भी करेगा। साथ ही यह सहभागी जल प्रबन्धन का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।

नए संस्थागत ढांचे के लाभ:

  • समग्र और बहुविषयक। सतही जल और भूमिगत जल के बीच तालमेल (सहक्रिया)।
  • संस्थाओं के बीच बेहतर समन्वय।
  • निर्माण की जगह प्रबन्धन और रख-रखाव पर विशेष ध्यान। 
  • एक उच्च स्तरीय केन्द्रीय संगठन जो दूरदर्शी, रणनीतिक, दक्ष और अनुशासित कौशल से लैस होगा और जो CWC एवं CGWB के कुप्रशासन को दूर करेगा।
  • जल की गुणवत्ता, औद्योगिक प्रदूषण, आंकड़ा प्रबन्धन आदि जैसी नई चुनौतियों पर विशेष ध्यान।
  • राज्यों के बीच बेसिन लेवल मैनेजमेंट और स्थान-विशिष्ट रणनीति जिससे सम्मिलित राज्यों के बीच के संघर्ष कम होंगे और सहकारी संघवाद को प्रोत्साहन मिलेगा।

हालाँकि, नए ढांचे के समक्ष कुछ चुनौतियों है, जैसे:

  • केन्द्रीकृत निकाय।
  • बड़े संगठनों के नौकरशाहों की अक्षमताओं के प्रति अति संवेदनशील।
  • राज्यों की भागीदारी अनिवार्य नहीं।।

यदि जल के उपयोग का वर्तमान पैटर्न जारी रहता है, तो वर्ष 2030 तक जल की कुल मांग के लगभग आधे भाग की आपूर्ति भी नहीं हो पाएगी। इस प्रकार, 21वीं शताब्दी में जल प्रबन्धन की अभूतपूर्व चुनौतियों को देखते हुए संस्थागत आमूल-चूल परिवर्तन के लिए यह संस्तुतियां स्वागत योग्य हैं।

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