भारत में ब्रिटिश सर्वोच्चता के तथ्य : किसी विदेशी या भारतीय चुनौती के विरुद्ध उनकी सफलता हेतु उत्तरदायी कारण

प्रश्न: 18वीं शताब्दी के अंत तक न केवल प्रत्येक यूरोपीय प्रतिद्वंद्वी को अपितु भारतीय समकक्षों को पीछे छोड़ते हुए भारत में अंग्रेज़ों के सबसे दुर्जेय शक्ति के रूप में उभरने के पीछे उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • 18वीं सदी के अंत तक भारत में ब्रिटिश सर्वोच्चता के तथ्य पर प्रकाश डालिए।
  • किसी विदेशी या भारतीय चुनौती के विरुद्ध उनकी सफलता हेतु उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

17वीं सदी के प्रारम्भ में ब्रिटिशों का भारत आगमन एक व्यापारिक कम्पनी के रूप में हुआ तथा 18वीं सदी के अंत तक उन्होंने भारत में व्यावहारिक रूप से अपना एकछत्र शासन स्थापित कर लिया। वे अन्य यूरोपीय एवं भारतीय प्रतिद्वंद्वियों से उत्पन्न किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना करने में सक्षम थे। भारत में अन्य यूरोपीय शक्तियों के विरुद्ध उनकी सफलता के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे।

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रबंधन निजी और पेशेवर व्यक्तियों द्वारा किया जाता था जिस कारण वह शीघ्र निर्णय ले पाती थी। इसके विपरीत, फ़्रांसीसी तथा पुर्तगाली कंपनियां क्राउन(crown) द्वारा शासित थीं और उनकी प्रकृति सामन्तबादी थी।
  • विशाल तथा अत्याधुनिक ब्रिटिश नौसेना अपने सैन्य जहाजों को तीव्रता से संचालित करने में सक्षम थी, इस कारण वह फ्रांसीसियों तथा पुर्तगालियों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम थी।
  • इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के प्रारम्भ होने के पश्चात् वे विशाल मात्रा में पूँजी के संचयन में सक्षम हुए। इंग्लैंड की कंपनियाँ अधिक धनी तथा उद्यमशील हो गयी थीं। ब्रिटिश सेना अत्यधिक अनुशासित, प्रशिक्षित तथा तकनीकी रूप से श्रेष्ठ थी। इस कारण ब्रिटिशों की छोटी सेना विशाल संख्या वाली विदेशी सेनाओं को पराजित करने में सफल रही।
  • ब्रिटेन की गृह सरकार अपने यूरोपीय समकक्षों के विपरीत अत्यधिक स्थिर थी। वह कंपनी की गतिविधियों पर कठोर नियंत्रण सुनिश्चित करती थी, साथ ही आवश्यकता के समय उन्हें सरकारी समर्थन भी उपलब्ध कराती थी।
  • ब्रिटेन अपने युद्ध तथा बढ़ते सैन्य व्ययों के लिए वित्त ‘डेट (debt) मार्केट’ से प्राप्त कर लेता था; जबकि उसी अवधि के दौरान डच तथा फ्रांसीसी कंपनियाँ दिवालियापन की समस्या का सामना कर रही थीं।
  • ब्रिटिशों का तीन महत्वपूर्ण तटीय क्षेत्रों बम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता पर नियंत्रण था जबकि फ्रांसीसियों के पास पांडिचेरी तथा पुर्तगालियों के पास केवल गोवा था। इन कारकों ने उन्हें भारत में सर्वत्र उनकी शक्ति के विस्तार तथा समुद्री मार्ग से विभिन्न मोर्चों पर पहुँचने के लिए सैन्य गतिशीलता में सहायता प्रदान की।

इन कारकों ने अनेक देशी राज्यों के विरुद्ध भी ब्रिटिशों की सहायता की। इनके अतिरिक्त, स्थानीय शक्तियों के विरुद्ध उनकी सफलता निम्नलिखित कारकों द्वारा उत्प्रेरित थी:

  • पतनशील मुग़ल साम्राज्य, क्षेत्रीय राज्यों का उदय एवं क्षेत्र प्राप्ति हेतु उनके मध्य के आपसी संघर्ष ने ब्रिटिशों को सहायता प्रदान की। वे एक के विरुद्ध दूसरे का पक्ष लेते थे तथा लाभ के रूप में क्षेत्र प्राप्त करते थे।
  • भारतीयों में एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना का अभाव था। इससे ब्रिटिशों को उन स्थानीय लोगों को किराए के सैनिकों के रूप में भर्ती करने में सहायता प्राप्त हुई, जो अपने साथी भारतीयों के विरुद्ध लड़ने को तैयार थे।
  • ब्रिटिश, शस्त्र, सेना तथा रणनीति में स्थानीय शक्तियों की तुलना में श्रेष्ठ थे। संगठित वित्त के साथ ही वे स्थानीय राजाओं के विपरीत अपनी सेना को नियमित वेतन प्रदान करने में भी सक्षम थे।
  • भारतीय प्रशासकों तथा सेनापतियों में नेतृत्व कौशल का अभाव था; क्योंकि उनका चयन योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि वंशानुगत पहचान के आधार पर किया जाता था।
  • 1757 ई. में बंगाल की विजय ने ब्रिटिशों को अत्यधिक धनी तथा शक्तिशाली बना दिया। इससे उन्हें उनके भविष्य के विजय अभियानों में सहायता प्राप्त हुई।
  • अंततः, भारतीय जनता में भी राजनीतिक चेतना का अभाव था। भारतीयों ने ब्रिटिशों को भी अन्य शासकों की भाँति ही समझा। यही कारण है कि उन्हें रियासतों की प्रजा के प्रतिरोध का सामना शायद ही कभी करना पड़ा।

परिणामस्वरूप, ब्रिटिश 18वीं सदी के अंत तक भारत में अंग्रेज सबसे दुर्जेय शक्ति के रूप में उभरने में सक्षम हुए।

Read More

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.