चंद्रशेखर सीमा की अवधारणा

प्रश्न: चंद्रशेखर सीमा की अवधारणा की व्याख्या कीजिये और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • चंद्रशेखर सीमा की अवधारणा को समझाइए।
  • समझाइए कि ब्लैक होल (कृष्ण विवर) और व्हाइट ड्वार्फ (श्वेत वामन) के निर्माण को समझने में इसने किस प्रकार सहायता की है तथा यह कैसे भविष्य में ब्रह्मांड की विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहायता करेगा।

उत्तर

किसी स्थायी व्हाइट ड्वार्फ तारे का सैद्धांतिक रूप से अधिकतम सम्भावित द्रव्यमान चन्द्रशेखर सीमा (Chandrasekhar limit) कहलाता है। चन्द्रशेखर सीमा का वर्तमान मान 1.4 सौर द्रव्यमान है जो यह दर्शाता है कि एक व्हाइट ड्वार्फ का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुना से अधिक नहीं हो सकता है। इस द्रव्यमान से अधिक होने पर इलेक्ट्रॉन डीजेनरेसी प्रेशर (electron degeneracy pressure) इस स्तर पर नहीं रह जाता है कि वह तारे को न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल में परिवर्तित होने से रोक सके।

इस सीमा का नाम सुब्रमण्यन चंद्रशेखर नामक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है। इन्हें “तारों की संरचना और विकास के लिए महत्वपूर्ण भौतिक प्रक्रियाओं के सैद्धांतिक अध्ययन” हेतु 1983 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

महत्व:

  • 1930 के दशक तक, वैज्ञानिकों का यह मानना था कि नाभिकीय संलयन के माध्यम से सभी तारे अपने नाभिकीय ईंधन को समाप्त करने के बाद व्हाइट ड्वार्फ में परिवर्तित हो जाते हैं।  चंद्रशेखर सीमा ने इस प्रचलित धारणा को चुनौती दी और इसमें संशोधन किया।
  • चंद्रशेखर सीमा के अनुसार किसी भी व्हाइट ड्वार्फ का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुना से कम होने पर वह सदा के लिए व्हाइट ड्वार्फ बना रहेगा।
  • किंतु जब द्रव्यमान इस सीमा से अधिक हो जाता है, तब तारों में एक सुपरनोवा विस्फोट होता है और ये समाप्त हो कर या तो न्यूट्रॉन तारे में या संभवतः एक ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाते हैं। ऐसा विस्फोट लोहे से भी अधिक भारी तत्वों का निर्माण करता है, जिनकी उत्पत्ति तारे की ताप-नाभिकीय प्रक्रियाओं द्वारा संभव नहीं है।
  • केवल एक सुपरनोवा विस्फोट ही तांबा, चाँदी, स्वर्ण जैसे भारी तत्वों और कार्बन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसे ट्रेस एलिमेंट्स (अपेक्षाकृत कम मात्रा में पाए जाने वाले) का निर्माण कर सकता है जो जीवन की प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह ब्रह्मांड की विकास प्रक्रिया को प्रभावित करता है ,क्योंकि यह दोनों उन तत्वों को उत्पन्न और वितरित करता है जिन पर जीवन निर्भर करता है।
  • इसलिए, चंद्रशेखर सीमा एक आदर्श व्हाइट ड्वार्फ के अधिकतम द्रव्यमान के लिए न केवल एक ऊपरी सीमा है, बल्कि यह उस सीमा का भी प्रतिनिधित्व करती है, जिसे पार कर एक तारा ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर उन विभिन्न तत्वों को उत्पन्न और वितरित करता है जो जीवन के अस्तित्व को संभव बनाते हैं।

अंततः, चंद्रशेखर सीमा की अवधारणा न केवल तारों के विकास के सम्बन्ध में हमारी समझ को बढ़ाती है, बल्कि ब्रह्मांड में मौजूद न्यूट्रॉन तारों और ब्लैक होल जैसे अति-सघन और ठोस पिंडों के निर्माण और उनके स्थायित्व के बारे में अध्ययन को भी आगे बढ़ाने में सहायक है। नोट- इलेक्ट्रॉन डीजेनरेसी प्रेशर (electron degeneracy pressure) : पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के अनुसार एक ही दिशा में चक्रण करने वाले दो इलेक्ट्रान एक ही कक्षा में नहीं रह सकते जिसके कारण कम ऊर्जा के इलेक्ट्रान निम्न ऊर्जा कक्षाओं में भर जाते हैं और अन्य इलेक्ट्रान अत्यधिक तीव्र गति से उच्च ऊर्जा स्तरों की ओर जाने को विवश होते हैं। इससे एक दबाव उत्पन्न होता है जो तारे को अत्यधिक गुरुत्व बल के प्रभाव में आकर ध्वस्त होने से बचाता है।

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