डिजिटल प्रौद्योगिकी के बढ़ते महत्व के संबंध में परिचय : वंचित बच्चों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु डिजिटल प्रौद्योगिकी

प्रश्न: डिजिटल प्रौद्योगिकी या तो वंचित बच्चों के लिए एक दिशा-परिवर्तक हो सकती है या फिर एक और बाँटने वाली रेखा बन सकती है जो बच्चों को उनकी संभावनाओं की प्राप्ति से रोकती है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • डिजिटल प्रौद्योगिकी के बढ़ते महत्व के संबंध में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • वंचित बच्चों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु डिजिटल प्रौद्योगिकी की क्षमता पर चर्चा कीजिए।
  • वंचित बच्चों पर डिजिटल प्रौद्योगिकी के नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख करते हुए बताइए कि यह कैसे एक बाँटने वाली रेखा बन सकती है जो बच्चों को उनकी संभावनाओं की प्राप्ति से रोकती है।

उत्तर

सूचना संचार एवं प्रौद्योगिकी (ICT) का तीव्र प्रसार दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है। डिजिटल प्रौद्योगिकी तथा नवाचार विशेष रूप से दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों अथवा निर्धन एवं बहिष्कृत बच्चों के बेहतर भविष्य हेतु नए अवसर उत्पन्न कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, ब्राजील एवं कैमरून के दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों तथा अफगानिस्तान की लड़कियों (जो अपना घर छोड़ने में असमर्थ हैं) को ICT के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जा रही है। कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में भी ICT, चाइल्ड ब्लॉगर्स तथा संवाददाताओं को अपने अधिकारों को प्राप्त करने हेतु सक्षम बना रही है।

ICT अध्ययन, समान हित समुदायों, बाजारों एवं सेवाओं तथा अन्य सुविधाओं तक बेहतर पहुँच प्रदान कर सकती है जिसके माध्यम से बच्चे अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप वंचना का कुचक्र भी टूट जाता है। उदाहरण के लिए, जब दिल्ली की मलिन बस्तियों में कंप्यूटर स्थापित किये गये, तब वंचित बच्चों के जीवन में अभूतपूर्व सुधार हुए जैसे – स्कूल परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन, समस्या को हल करने संबंधी बेहतर कौशल का विकास आदि।

हालांकि, भारत में, अधिकांश बच्चे डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूर्ण उपयोग नहीं करते हैं, जो डिजिटल डिवाइड की स्थिति उत्पन्न करता है। यह केवल उनके अभाव में वृद्धि करता है तथा प्रभावी रूप से उन्हें उनकी क्षमताओं के पूर्ण उपयोग और निर्धनता एवं असुविधा के अंतरपीढ़िगत चक्र को तोड़ने में सहायक कौशल एवं ज्ञान से वंचित करता है।

इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्रौद्योगिकी बच्चों की सुरक्षा, गोपनीयता तथा कल्याण के समक्ष भी अनेक संकट उत्पन्न करती है। यह बच्चों से सम्बंधित खतरों में वृद्धि करते हुए अंततः उन्हें और अधिक सुभेद्य बना देता है। यह निम्न प्रकार से एक विभाजनकारी बल के रूप में कार्य करता है:

  • ICT द्वारा यौनसम्बन्धी मुखर सामग्री तथा अन्य अवैध सामग्री के उत्पादन, वितरण और साझा करने को सरल बना दिया गया है जो बच्चों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार एवं शोषण के लिए उत्तरदायी है। अपर्याप्त डिजिटल साक्षरता और जागरूकता कम आय वर्ग के बच्चों को तस्करी सहित इन दुर्व्यवहारों के लिए अधिक सुभेद्य बनाती है।
  • द्वेषपूर्ण भाषण तथा अन्य नकारात्मक सामग्रियाँ विश्व के प्रति बच्चों के दृष्टिकोण को प्रभावित करती हैं।
  • समूहों के तुलनात्मक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि लो-इंकम-नो-इंटरनेट वाले बच्चों को डिजिटल साक्षरता, शैक्षणिक प्रदर्शन, आकांक्षाओं, कथित क्षमता, आत्मसम्मान, परिवार तथा समान आयुवर्ग के बच्चों के साथ संबंध आदि सभी आयामों में कम स्कोर प्राप्त हुआ है।
  • डिजिटलीकरण बच्चों को नए उपकरणों तथा जीवन शैली की ओर अग्रसरित करता है, जिन्हें निर्धन अभिभावक प्रायः अपने बच्चों को उपलब्ध कराने में अक्षम होते हैं। इससे बच्चों में असंतोष तथा क्रोध की भावना उत्पन्न होती है। इसके साथ ही बाल अपराध सहित मनोवैज्ञानिक एवं व्यवहार संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
  • बच्चों के मध्य डिजिटल निर्भरता एवं ‘स्क्रीन एडिक्शन’ भी उन्हें उनकी संस्कृति से दूर करती है।

वर्तमान डिजिटल युग में, निम्नलिखित उपायों द्वारा डिजिटल डिवाइड को कम करने तथा बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता मिल सकती है:

  • बच्चों को सूचित तथा ऑनलाइन सुरक्षित रखने हेतु डिजिटल साक्षरता।
  • सभी बच्चों की उच्च गुणवत्ता युक्त ऑनलाइन संसाधनों तक वहनीय पहुंच सुनिश्चित करना।
  • बच्चों के डेटा के दुरुपयोग को रोकने के साथ डेटा एन्क्रिप्शन को मान्यता देना; ऑनलाइन रहने वाले बच्चों से सम्बंधित डेटा एकत्र करने और उपयोग करने हेतु अंतरराष्ट्रीय नैतिक मानदंडों और प्रथाओं के उपयोग को लागू करना।
  • ऐसे नियामकीय ढांचे को विकसित करना जो बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पहचान कर सके और वैश्विक स्तर पर समन्वयन तथा ज्ञान साझाकरण को सुदृढ़ कर सके।
  • परस्पर संबद्ध विश्व की समस्याओं से बच्चों की रक्षा करने के लिए तीव्रतर कार्यवाही केंद्रित निवेश तथा व्यापक सहयोग की आवश्यकता है।

यदि डिजिटल प्रौद्योगिकी का सही प्रकार से उपयोग किया जाये तो यह उन बच्चों के लिए एक दिशा परिवर्तक सिद्ध हो सकती है जो निर्धनता, जाति, नृजातीयता, लिंग, विकलांगता, विस्थापन अथवा भौगोलिक अलगाव द्वारा उत्पन्न सामाजिक अशक्तता के कारण पिछड़ते जा रहे हैं। यह उन्हें नए अवसरों को प्राप्त करने तथा डिजिटल विश्व में स्वयं को अधिक लाभान्वित करने के लिए बाजार उन्मुख कौशल प्रदान करने में सहायता करेगी।

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