भारत में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र : विकास के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन

प्रश्न: प्राकृतिक विशेषताओं में समानता के बावजूद, कुछ क्षेत्र उद्योगों को आकर्षित करते हैं जबकि अन्य नहीं। इसके संभव कारण क्या हो सकते हैं? इस संदर्भ में, भारत में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान कीजिए और औद्योगिक क्षेत्रों के रूप में उनके विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद अविकसित रहने वाले क्षेत्रों की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • कच्चे माल के अतिरिक्त उन कारकों का उल्लेख कीजिए जो किसी क्षेत्र में उद्योगों को आकर्षित करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  • भारत में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों को, उनके विकास के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन करते हुए सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

उद्योग की अवस्थिति निर्धारित करने में प्राकृतिक संसाधन महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि, इसके अतिरिक्त , कुछ अन्य कारक भी हैं जो कुछ स्थानों को तुलनात्मक लाभ प्रदान करते हैं, जबकि इनका अभाव औद्योगिक विकास को सीमित करता है। उदाहरण के लिए, भारत में प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद उत्तर-पूर्वी राज्य, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश अपेक्षाकृत अधिक उद्योगों को आकर्षित करने में सफल नहीं रहे हैं।

इनमें निम्न कारक शामिल हैं:

  • अवसंरचना: विद्युत, परिवहन की उपलब्धता।
  • श्रम: कुशल और तकनीकी विशेषज्ञता की उपलब्धता, सस्ता श्रम।
  • बाजार: बाजार से निकटता परिवहन लागत घटाती है और शीघ्र नष्ट होने वाली एवं भारी वस्तुओं के लिए बाजार से निकटता आवश्यक है।
  • पूँजी: उद्योग ऐसे क्षेत्रों में संकेंद्रित होते हैं, जहाँ पहले से ही पूँजी, बैंकिंग और बीमा सुविधाएँ होती हैं या आकर्षित होने की संभावना होती है।
  • सरकारी नीतियाँ:-भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ और औद्योगिक अवस्थिति संबंधी राज्य नीतियाँ: मथुरा में तेल शोधन संयंत्र, कपूरथला में कोच फैक्टरी और जगदीशपुर में उर्वरक संयंत्र सरकारी नीतियों के कुछ परिणाम हैं। –शासन व्यवस्था: निम्न स्तरीय शासन व्यवस्था, संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा को कम करती है तथा लागत और निवेश में जोखिम बढ़ाती है। उदाहरण के लिए झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य नक्सलवाद के कारण बुरी तरह से प्रभावित हैं।

अतीत में, औद्योगिक अवस्थिति काफी हद तक प्राकृतिक संसाधनों और भौतिक परिसंपत्तियों की स्थानीय उपलब्धता से तय होती थी। हालांकि, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है, ज्ञान, सूचना प्रसंस्करण/नवाचार जैसी अमूर्त परिसंपित्तयों के योगदान को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। उपर्युक्त कारकों का इष्टतम मिश्रण प्रदान करने वाला कोई भी स्थान उद्योगों की अवस्थिति के लिए आदर्श बन जाता है। कुछ मामलों में औद्योगिक जड़ता यह सुनिश्चित करती है कि उद्योग अपने पूर्व स्थान को परिचालन हेतु अधिक बेहतर पा रहा है, भले ही अब वहाँ कच्चे माल के स्रोत या सस्ते श्रम जैसे प्रारंभिक अनुकूल कारक उपलब्ध न हो।

भारत में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र:

मुंबई-पुणे औद्योगिक क्षेत्र:

  • कारक: सूती वस्त्र, मुंबई हाई पेट्रोलियम फील्ड, मुंबई पत्तन, परमाणु ऊर्जा संयंत्र, पूँजी।

हुगली औद्योगिक क्षेत्र:

  • कारक: जूट, नील और असम व दार्जिलिंग की चाय, दामोदर घाटी की कोयला खदानें और छोटानागपुर की लौह अयस्क खदानें, हुगली पत्तन, सस्ते श्रम व सरकारी नीतियों के कारण हल्दिया में पेट्रोलियम शोधनशाला, चितरंजन में डीजल इंजन कारखाना आदि।। 

मदुरई-कोयम्बटूर-बंगलुरु क्षेत्रः 

  • कारक: सूती वस्त्र उद्योग, बैंगलोर में भारी इंजीनियरिंग उद्योग, सॉफ्टवेयर उद्योग, सरकारी नीतियों के कारण चेन्नई में पेट्रोलियम शोधनशाला, सलेम लौह एवं इस्पात संयंत्र और उर्वरक संयंत्र, भारत इलेक्ट्रिकल्स, HAL आदि।

अहमदाबाद-वडोदरा क्षेत्र:

  • कारक: वस्त्र उद्योग, पेट्रोलियम तेल क्षेत्र, पेट्रो रसायन उद्योग, कई पत्तन।

छोटानागपुर क्षेत्रः

  • कारकः कोयला, लौह अयस्क, जमशेदपुर, बर्नपुर-कुल्टी, दुर्गापुर, बोकारो और राउरकेला में छः बड़े लौह एवं इस्पात संयंत्र; दामोदर घाटी निगम, सस्ते श्रम वाले अन्य उद्योग।

विशाखापत्तनम-गुंटूर क्षेत्र:

  • कारक: कृषि, गोदावरी बेसिन की कोयला खदानें, विशाखापत्तनम में लौह एवं इस्पात संयंत्र। विशाखापत्तनम और मछलीपत्तनम पत्तन, पेट्रोलियम शोधन संयंत्र।

गुड़गाँव-दिल्ली-मेरठ क्षेत्र:

  • कारक: हल्के और बाजार उन्मुख उद्योग जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, हल्की इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रिकल वस्तुएँ, सॉफ्टवेयर उद्योग, यह क्षेत्र FDI और पूँजी आकर्षित करता है। 

कोल्लम-तिरुवनंतपुरम क्षेत्र:

  • कारक: खनिज-रहित परन्तु जलविद्युत एवं बागान कृषि पर आधारित खाद्य प्रसंस्करण, नारियल और नारियल रेशा उद्योग।

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