सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना के घटक : अवसंरचना से संबद्ध समस्यायें

प्रश्न: मानवशक्ति की अत्यधिक कमी पर विशेष ध्यान देते हुए, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना से संबद्ध समस्याओं पर प्रकाश डालिए। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना के घटकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • श्रमबल (मानवशक्ति) की कमी पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में अवसंरचना से संबंधित मुद्दों का उल्लेख कीजिए।
  • इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
  • अंतिम भाग में, कुछ अन्य संभावित उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

एक सुदृढ़ स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना में कई घटक शामिल होते हैं, जैसे- देखभाल तक पहुँच सुनिश्चित कराने हेतु भौतिक सुविधाएं, प्रयोगशाला, प्रशिक्षण एवं अन्य सहायक सुविधाएं, फार्मास्यूटिकल्स एवं अन्य सामग्रियों की विश्वसनीय आपूर्ति, प्रशिक्षित स्टाफ एवं पेशेवर प्रशिक्षण प्रणालियां तथा जरुरतमंद लोगों तक संसाधनों एवं विशेषज्ञता के वितरण हेतु तंत्र।

स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना से संबंधी मुद्दे

  • भौतिक क्षमता: भारत में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की अत्यधिक कमी है। उदाहरण के लिए, प्रत्येक 1050 रोगियों के लिए एक बिस्तर की उपलब्धता।
  • मेडिकल कॉलेजों और शिक्षा से संबंधित मुद्दे: मेडिकल शिक्षा एक व्यावसायिक उद्यम बन गई है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य केवल अधिकाधिक लाभ अर्जित करना है।  हाल ही में भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) ने निम्न गुणवत्ता और अनुचित गतिविधियों के कारण 32 कालेजों को प्रतिबंधित किया है।
  • प्रशासनिक और विनियामकीय ढांचे से संबंधित मुद्दे: लोढ़ा समिति के अनुसार MCI ने अपने विनियामकीय अधिदेश (मैंडेट) का बेहतर ढंग से पालन नहीं किया है। समिति ने इससे संबंधित व्यापक सुधारों का सुझाव भी दिया है।
  • स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में कर्मचारियों की अत्यधिक कमी: निम्नलिखित आंकड़ों से यह स्पष्ट है:
  • भारत में प्रति 1000 लोगों पर 0.7 डॉक्टर और 1.5 नर्स उपलब्धत हैं, जो प्रति 1,000 लोगों पर 2.5 डॉक्टरों और नौं के विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वैश्विक औसत की तुलना में काफी कम है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (PHCs) और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (CHCs) में कर्मचारियों की अत्यधिक कमी है। PHCs और CHCs में आवश्यक सभी वर्गों के स्वास्थ्य पेशेवरों में 75% से भी अधिक की कमी है।

पेशेवरों की अत्यधिक कमी के अतिरिक्त, निम्नलिखित मुद्दे भी श्रमबल से संबंधित हैं:

  • ग्रामीण-शहरी असमानता- चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित मानवशक्ति का 80% से अधिक भाग शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कार्यरत है।
  • संदेहास्पद अहर्ताएं- WHO की ‘हेल्थ वर्कफोर्स इन इंडिया’- 2016 रिपोर्ट के अनुसार 31% चिकित्सक केवल माध्यमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त हैं और 57% के पास कोई भी अहर्ता नहीं है।

उठाये गए कदम

  • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के विस्तार हेतु सरकार द्वारा प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना प्रारंभ की गयी है।
  • केंद्र सरकार द्वारा नेशनल हेल्थ पॉलिसी प्रारंभ की गयी है जिसका लक्ष्य स्वास्थ्य पेशेवरों की उपलब्धता को बढ़ाने हेतु सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके उसे GDP के 2.5% तक करना है।
  • मानवशक्ति की कमी को दूर करने हेतु सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के एक भाग के रूप में राष्ट्रीय आयुष मिशन प्रारंभ किया है।
  • नीति आयोग द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) आधारित निजी अस्पतालों के प्रस्तावित मॉडल में स्वास्थ्य देखभाल के विस्तार तथा समावेशन में वृद्धि के उद्देश्य के साथ सरकारी अस्पतालों में कुछ विशेष सेवाएं उपलब्ध करायी जाएंगी।

आगे की राह

  • बेड-टू-पेशेंट रेश्यो में सुधार करने हेतु सरकारी अस्पतालों आदि का विस्तार।
  • भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 को प्रतिस्थापित करने हेतु, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के मसौदे के अनुसार MCI का पुनर्गठन। स्थानीय स्तर पर कार्य करने वाली नौं, मिडवाइफ , फार्मासिस्ट तथा सहायक नर्स और प्रसाविका (ANMs) के कौशल विकास हेतु लघु अवधि के पाठ्यक्रम।
  • मेडिकल छात्रों के लिए PHCs/CHCs में अनिवार्य ग्रामीण सेवा का प्रावधान।
    चिकित्सकों और अन्य मेडिकल पेशेवरों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु कॉमन लाइसेंटिएट एग्जामिनेशन।

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