समाजीकरण के एजेंट के रूप में परिवार की भूमिका

प्रश्न:  यद्यपि परिवार समाजीकरण के प्रारंभिक अभिकर्ता होते हैं, जो बच्चे में नैतिक मूल्य अंतर्निविष्ट करते हैं, फिर भी इस संबंध में विद्यालय द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका भी अपरिहार्य होती है।चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • समाजीकरण के एजेंट के रूप में परिवार की भूमिका पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • किसी बच्चे में मूल्यों को प्रसारित करने में विद्यालय की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • समाजीकरण में इसकी अपरिहार्यता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

समाजीकरण एक सामाजिक आत्म का निर्माण करने, किसी की संस्कृति के अध्ययन, संस्कृति के नियम एवं अपेक्षाओं के सीखने की प्रक्रिया है। सम्पूर्ण समाज में विभिन्न संस्थाएं सामाजिक कार्यों के संचालक (conduits) के रूप में कार्य करती हैं। इस संदर्भ में, परिवार और विद्यालय दोनों व्यक्ति की अभिवृत्ति, वरीयताओं और विश्व दृष्टिकोण को आकार प्रदान करने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भविष्य के वयस्क के रूप में एक बच्चे के व्यवहार को, उन मूल्यों और मानदंडों के आत्मसातीकरण के माध्यम से आकार दिया जाता है जो उसके समक्ष प्रस्तुत होते हैं।

एक बच्चे का पहला संपर्क देखभाल करने वालों, माता-पिता या अभिभावकों के साथ होता है। अपने विकास के वर्षों में, एक बच्चा परिवार के लोगों के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को स्थायी रूप से ग्रहण करता है। बच्चे परिवार के सदस्यों के व्यवहार का अनुकरण करते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चे परिवार के बुजुर्गों से महिलाओं का सम्मान करना सीखते है।

इसी प्रकार, विद्यालय समाजीकरण की प्रक्रिया में एक अनिवार्य भूमिका निभाता है। विद्यालयों में अपने बच्चे अपने बचपन का अधिकतर समय व्यतीत करते हैं। यहां बच्चे प्राधिकारियों के संपर्क में आते हैं और शिक्षकों के व्यवहार का अनुकरण करते हैं। वह नियमों का अनुसरण करने, समय सीमा के भीतर कार्य पूरा करने, अनुशासित होने, टीम भावना आदि के महत्व को सीखता है। समान आयु के अन्य बच्चों के साथ उनके संबंध भी उनके विकास के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करते हैं। इस तरह की अंतःक्रियाओं के माध्यम से, करती विभिन्न नैतिक और सामाजिक मूल्यों को समझता है, आत्मसात करता है तथा प्राथमिकता प्रदान करता है। बच्चा नेतृत्व कौशल, टीम में कार्य करना, सहयोग और देखभाल करना सीखता है।

पाठ्यक्रम के माध्यम से, विद्यालय बच्चे को बुनियादी संज्ञानात्मक क्षमताएं प्रदान करता है, बच्चों को सम्प्रेषण करना सिखाता है, उसके समाज की सांस्कृतिक उपलब्धियों से उसे परिचित कराता है, सामाजिक और व्यावसायिक क्षमताओं को बढ़ावा देता है जो उसे सामाजिक, उपयोगी और आर्थिक रूप से उत्पादक बनाने एवं समाज के लिए उपयुक्त लैंगिक भूमिकाएं निभाने हेतु तैयार करने के लिए आवश्यक हैं।

बच्चों में समाज के अनुरूप नैतिकता का विकास करना प्रत्येक विद्यालय की प्राथमिक भूमिका माना जाता है। समाज के मानदंडों और मूल्यों के बारे में छात्रों को निर्देश देना विद्यालयों का कर्तव्य है, यह एक महत्वपूर्ण कार्य है जो अकेले परिवार द्वारा किया जाना अत्यंत कठिन है।

इस प्रकार, परिवार और विद्यालय दोनों व्यक्ति के नैतिक और सामाजिक व्यक्तित्व को आकार प्रदान करते हैं – परिवार में समाजीकरण की प्रक्रिया आरम्भ होती है और विद्यालय इसे परिष्कृत करता है।

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