चक्रवात : भारत के पूर्वी और पश्चिम तटों की चक्रवात संबंधी सुभेद्यता

प्रश्न: चक्रवातों के प्रति भारतीय तटीय क्षेत्रों की सुभेद्यता का आकलन कीजिए। साथ ही, इस संबंध में राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन कार्यक्रम (NCRMP) द्वारा अपनाए गए उद्देश्यों और दृष्टिकोण का भी उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • चक्रवातों को संक्षेप में परिभाषित कीजिए। 
  • भारत के पूर्वी और पश्चिम तटों की चक्रवात संबंधी सुभेद्यता पर चर्चा कीजिए।
  • NCRMP का संक्षेप में परिचय देते हुए, उसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  • NCRMP के दृष्टिकोण पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

चक्रवात सुविकसित निम्न वायुदाब प्रणालियाँ हैं जिनमें प्रचंड पवनें प्रवाहित होती हैं। 7516 कि.मी. लंबी तटरेखा के साथ भारत विश्व के लगभग 10% उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का सामना करता है। 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से, लगभग 5,700 कि.मी. लंबी तटरेखा ऐसी है जहाँ चक्रवात और सुनामी आने की अत्यधिक सम्भावना बनी रहती है। 13 तटीय राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के 84 तटीय जिले चक्रवातों से प्रभावित हैं। इतना ही नहीं, कुल जनसँख्या के 40% लोग तटरेखा से 100 कि.मी. के दायरे में ही रहते हैं। इस प्रकार आपदाओं की स्थिति में पुनर्वास की चुनौती और भी बढ़ जाती है।

चक्रवातों के प्रति सुभेद्यता का आकलन:

 चक्रवात मई-जून और अक्टूबर-नवंबर के महीने में आते हैं। प्राथमिक रूप से नवम्बर में और द्वितीयक रूप से मई में (मानसून से पूर्व) चरम पर होते हैं। इनसे बड़े पैमाने पर जीवन, आजीविका के अवसरों और भौतिक अवसंरचना का विनाश होता है, साथ ही देश की GDP पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

पूर्वी तट की सुभेद्यता:

भारत के पश्चिमी तट की तुलना में पूर्वी तट, विशेषकर आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के क्षेत्र अधिक प्रभावित होते हैं। भारत में आने वाले 80% से अधिक चक्रवातों ने पूर्वी तट को ही प्रभावित किया है। बंगाल की खाड़ी में विकसित होने वाले 58% से अधिक चक्रवात अक्टूबर-नवंबर में और लगभग 30% मानसून के मौसम से पूर्व पूर्वी तट पर पहुँचते हैं और उसे पार करते हैं। पूर्वी तट की उच्च सुभेद्यता का एक कारण सागरीय सतह का तापमान है। सागरीय सतह का तापमान अब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में अधिक है, इस कारण से बंगाल की खाड़ी में अधिक चक्रवात प्रणालियों का निर्माण होता है। इस तट का उच्च जनघनत्व संकट के समय लोगों की त्वरित निकासी में बाधक बनता है। इससे भारी क्षति होती है।

पश्चिमी तट की सुभेद्यता:

पश्चिम तट पर गुजरात सर्वाधिक सुभेद्य है। अरब सागर के ऊपर विकसित होने वाले लगभग 25% चक्रवात अक्टूबर-नवंबर में और मानसून के मौसम से पूर्व पश्चिमी तट पर पहुँचते हैं।

राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम प्रबंधन कार्यक्रम

भारत सरकार ने देश में चक्रवात के जोखिम से निपटने के लिए राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम प्रबंधन कार्यक्रम (NCRMP) का आरंभ किया है। इसे गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा, प्रतिभागी राज्यों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के साथ समन्वय के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। विश्व बैंक ने इस कार्यक्रम के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है।

उद्देश्य

इसका समग्र उद्देश्य भारत के तटीय क्षेत्रों में चक्रवात के गंभीर प्रभावों को कम करने के लिए उपयुक्त संरचनात्मक और गैरसंरचनात्मक उपायों को अपनाना है। NCRMP निम्नलिखित के माध्यम से चक्रवातों और अन्य जल-मौसम विज्ञान संबंधी (hydro-meteorological) खतरों के प्रति तटीय समुदायों की सुभेद्यता को कम करने की कल्पना करता है:

  • उन्नत पूर्व-चेतावनी (early-warning) प्रसार प्रणाली
  • स्थानीय समुदायों की संवर्धित अनुक्रिया क्षमता इत्यादि
  • आपातकालीन आश्रय (shelter) तक बेहतर पहुँच, निकासी (evacuation) इत्यादि
  • जोखिम शमन उपायों को समग्र विकास एजेंडे में प्राथमिकता देना। इसके लिए केंद्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर आपदा जोखिम शमन (mitigation) क्षमता का सुदृढ़ीकरण।

दृष्टिकोण

NCRMP ने सुभेद्यता के विभिन्न स्तरों वाले 13 चक्रवात-प्रवण राज्यों और संघ शासित प्रदेशों (UTs) की पहचान की है। इन राज्यों/संघ शासित प्रदेशों को चक्रवात आने की आवृत्ति, जनसंख्या के आकार और आपदा प्रबंधन के लिए विद्यमान संस्थागत तंत्र के आधार पर पुनः दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। ये श्रेणियाँ हैं:

1. श्रेणी I: उच्च सुभेद्यता वाले राज्य/UTS, अर्थात, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल।

2. श्रेणी II: कम सुभेद्यता वाले राज्य/UTS, अर्थात् महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, गोवा, पुडुचेरी, लक्षद्वीप, दमन और दीव, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।

NCRMP का कार्यान्वयन दो चरणों में किया जा रहा है- 2011 से 2018 तक प्रथम चरण और मार्च 2020 तक के लिए द्वितीय चरण। NCRMP की सफलता से भारत के आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति, दोनों में सहायता मिलेगी।

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