जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक कानून द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का आपके लिए कोई मायने नहीं है – डॉ. बी. आर. अम्बेडकर

प्रश्न: जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक कानून द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का आपके लिए कोई मायने नहीं है – डॉ. बी. आर. अम्बेडकर

दृष्टिकोण

  • दिये गए कथन का संदर्भ प्रस्तुत कीजिए।
  • संक्षेप में यह बताइये कि प्रदत्त उद्धरण को वर्तमान सन्दर्भ में आप किस प्रकार देखते हैं।
  • उपयुक्त उदाहरणों से अपने तर्क को पुष्ट कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारतीय संविधान नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जिनमें से एक स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन देश के मूलभूत कानून द्वारा प्रत्याभूत स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि लोग वास्तविक अर्थों में स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं।

समाज में विद्यमान विभिन्न सामाजिक बुराइयां कानून द्वारा प्रत्याभूत व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करती हैं। जाति-व्यवस्था का पदानुक्रम और पवित्रता व अपवित्रता से जुड़ी धारणाओं ने समाज के कुछ वर्गों हेतु आजीविका के अवसरों को कम किया है। उदाहरण के लिए, हाथ से मैला सफाई का काम इसके साथ जुड़े व्यक्तियों की गतिशीलता को सीमित करता है और बदले में उनकी विकास क्षमता को बाधित करता है।

समय के साथ, समाज यह सुनिश्चित करने के लिए मानदंडों और संस्कृतियों के माध्यम से अपना तंत्र विकसित करता है कि कानून द्वारा प्रदान की गई स्वतंत्रता के बावजूद दमनकारी व्यवस्था बनी रहे। देश भर में महिलाओं द्वारा मंदिर प्रवेश के हालिया आंदोलन इसके उदाहरण हैं कि कैसे प्रतिगामी मानदंडों (मासिक धर्म को अपवित्र मानने) की सामाजिक स्वीकृति महिलाओं के बुनियादी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है। इसके अतिरिक्त, कानूनों के अस्तित्व के बावजूद, पितृसत्ता की व्यापकता और प्रभुत्व के कारण महिलाओं की

सामाजिक स्वतंत्रता को कम किया जाता है, इस प्रकार महिलाओं के लिए शिक्षा और करियर के विकल्पों को बाधित किया जाता है। सामाजिक स्वतंत्रता समाज के भीतर मुक्त रहने की एक स्थिति है जहां सभी व्यक्तियों के लिए जाति, लिंग, धर्म आदि से परे अपनी क्षमताओं के अनुरूप समाज में एक स्थान या हैसियत प्राप्त करने हेतु अवसर उपलब्ध होते हैं। सामाजिक स्वतंत्रता की अनुपस्थिति शिक्षा, स्वास्थ्य-सेवा, श्रम बाजार आदि जैसे सामाजिक अवयवों तक पहुंच में असमानता पैदा करती है।

वर्तमान संदर्भ में, अंतर-जातीय विवाह से संबंधित हिंसा और समाज में समलैंगिकता की हीन स्वीकार्यता भी सामाजिक संस्कृति और मानदंडों तथा कानून द्वारा सुनिश्चित स्वतंत्रता के बीच असहमति दर्शाती है। इसलिए कानून द्वारा प्रत्याभूत कोई अधिकार तब तक अनुपयोगी एवं अर्थहीन जब तक समाज द्वारा उसका विरोध किया जा रहा है।

इसलिए प्रगतिशील विधानों के अनुरूप समाज में प्रगतिशील परिवर्तन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। जागरूकता निर्माण और शिक्षा प्रदान करके सामाजिक संवेदना लाना समाज के सभी वर्गों हेतु सामाजिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में सहायता कर सकता है।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.