भारत में अधिकरणों की कार्यपद्धति

प्रश्न: भारत में अधिकरणों की कार्यपद्धति से संबद्ध मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए। इनका समाधान कैसे किया जा सकता है?

दृष्टिकोण

  • अधिकरणों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • अधिकरणों की कार्यपद्धति से सम्बद्ध मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए।
  •  इन मुद्दों के समाधान हेतु उपाय बताइए।

उत्तर

वास्तव में, नियमित न्यायालयों पर से वादों (cases) का भार घटाने और विशिष्ट व त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए अधिकरणों की स्थापना की गयी थी। हालाँकि निम्नलिखित कारणों से अधिकरणों का कार्य मानकों से कम रहा है:

  •  न्यायिक स्वतन्त्रता की कमी: कार्यपालिका द्वारा अधिकरणों में की गई नियुक्तियां पारदर्शी नहीं हैं। उनके कोषों और पदाधिकारियों को कार्यपालिका द्वारा विनियमित किया जाता है, इस प्रकार इनकी न्यायिक स्वतन्त्रता में कमी होती है। कई अधिकरण प्रायः सम्बन्धित विभागों के विस्तारित कार्यालय के रूप में कार्य करते हैं, जिनमें न्यायिक सदस्यों की बजाए अधिकारियों का जमावड़ा रहता है।
  • न्याय तक पहुंच: चूंकि अधिकरण की पीठे कुछ ही स्थानों पर स्थित हैं, जिससे अनेक वादियों (litigants) को अतर्निहित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • अवसंरचना: अपर्याप्त कार्यबल और अवसरंचना, अनुत्तरदायी वेबसाइटों (unresponsive websites) के कारण अधिकरण की कार्यपद्धति पर उपलब्ध जानकारी की कमी।
  • भर्ती, सेवा की शर्तों और सेवानिवृत्ति की आयु का एकसमान न होना: इसके परिणामस्वरूप ये अधिकरण अपने सम्बंधित मंत्रालयों की दया पर आश्रित रहते हैं।
  • इन अधिकरणों के निर्णयों के विरुद्ध अभियोजनों के कारण उच्च न्यायपालिका में मुकदमों की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
  • अधिकरणों द्वारा अपने न्यायिक सीमाक्षेत्र से बाहर जाना: उदाहरण के लिए सशस्त्र बल अधिकरण ने सशस्त्र बलों को गैर कार्यात्मक अपग्रेड प्रदान कर दिया, जिस पर आपत्ति जताई गई क्योंकि इसे इस प्रकार का आदेश पारित करने की शक्ति प्राप्त नहीं है। नीति निर्माण के क्षेत्र में NGT द्वारा पारित किये गये निर्देश अन्य उदाहरण हैं।
  • अधिकरणों की अधिकता: भिन्न-भिन्न व अतिव्यापी न्यायिक अधिकार क्षेत्रों वाले अनेकों अधिकरणों की उपस्थिति।
  • उच्च न्यायालयों को किनारे करना: कुछ मामलों में, अपीलीय अधिकरण के आदेश के विरुद्ध अपील सीधे सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है।

उपर्युक्त मुद्दों के समाधान हेतु उपाय निम्नलिखित हैं:

  • वे अधिकरण जो न्यायालयों के कार्यक्षेत्र का प्रतिस्थापन करते हैं, उन्हें उच्च न्यायालयों के समान ही संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होना चाहिए।
  • अधिकरणों की सदस्यता और कर्मचारियों से सबंधित प्रश्नों के समाधान के लिए एक मई “अधिकरण सेवा” की आवश्यकता
  • कुछ चुनिंदा अधिकरणों की पीठों की अवस्थिति (स्थान) अनुभवजन्य अध्ययनों (empirical studies) के आधार पर निर्धारित होनी चाहिए।
  • हमारे संविधान के अंतर्गत अधिकरणों की स्वीकार्य सीमा, सर्वोच्च न्यायालय के मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले के निर्णय के अनुसार होनी चाहिए।
  • अधिकरणों के लिए प्रशासनिक और संस्थागत स्वायत्तता सुनिश्चित की जानी चाहिए। विधि आयोग ने सदस्यों की नियुक्ति, योग्यता, चयन और कार्यकाल के साथ ही अधिकरणों के स्थान के सम्बन्ध में कुछ ब्लूप्रिंट प्रदान किया है, जिसे तत्काल प्रभाव से कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.