राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) : मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में आयुष को सम्मिलित करने के सम्मुख विद्यमान चुनौतियां

प्रश्न: राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) के महत्व पर संक्षेप में चर्चा कीजिए। मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में आयुष को सम्मिलित करने के सम्मुख विद्यमान चुनौतियों का वर्णन कीजिए और इन चुनौतियों से बाहर निकलने के लिए आगे की राह सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) की तार्किकता और महत्व पर प्रकाश डालिए।
  • मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में आयुष को सम्मिलित करने के सम्मुख विद्यमान चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
  • इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कुछ आवश्यक उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

आयुष से आशय आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी की भारतीय चिकित्सा प्रणाली से है। सरकार द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) और जिला अस्पतालों (DHS) में लागत प्रभावी गुणवत्तापूर्ण आयुष सेवाएं प्रदान करने तथा भारतीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में मानवशक्ति की कमी की समस्या का समाधान करने के उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय आयुष मिशन आरंभ किया गया है।

महत्व

  • आयुष तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना: कवरेज बढ़ाने हेतु PHCS, CHCs और DHs पर आयुष सुविधाओं को उपलब्ध कराकर।
  • राज्य स्तर पर संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ बनाना: आयुष शैक्षिक संस्थानों, राज्य सरकार की आयुष फार्मेसियों, औषध परीक्षण प्रयोगशालाओं आदि को उन्नत बनाकर।
  • बेहतर कृषि पद्धतियों के माध्यम से औषधीय पौधों की कृषि को बढ़ावा देकर गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • गुणवत्ता मानकों को प्रोत्साहन: आयुष दवाओं हेतु प्रमाणीकरण तंत्र और उच्च ग्रेड मानकों को अपनाकर।

चुनौतियाँ

  • दवा की प्रत्येक प्रणाली हेतु विशिष्ट दृष्टिकोण: उदाहरण के लिए, एलोपैथिक प्रणाली में जैव चिकित्सा मॉडल के आधार पर रोगों के लक्षणों पता लगाया जाता है, जबकि आयुर्वेद प्रणाली मुख्यतः बीमारी से निपटने हेतु एक समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है।
  • दवाओं की विभिन्न प्रणालियों में मरीजों के क्रॉस रेफरल और विभिन्न प्रणालियों के मध्य संक्रमण संबंधी चुनौतियाँ: कुछ रोगों का उपचार आयुर्वेदिक दवाओं से बेहतर होता है, जबकि अन्य रोगों का एलोपैथिक उपचार बेहतर होता  है।
  • वैज्ञानिक रूप से प्रमाणिक कोई लाभ नहीं: आयुष की अधिकांश औषधियों की उनके कथित चिकित्सा गुणों के लिए अभी तक पुष्टि नहीं हई है।
  • वैश्विक स्वीकृति का अभाव: वैश्विक नियामक मानकों ने इन परंपरागत प्रणालियों को उचित रूप से स्वीकृति प्रदान नहीं की है। इसलिए, मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में आयुष को सम्मिलित करने से उनकी चोरी और दुरुपयोग बढ़ सकता है।
  • गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की उपलब्धता खंडित है और पारदर्शी नहीं है: 85% से अधिक औषधीय पौधों को जंगलों से एकत्रित किया जाता है।
  • व्यवहार में कानूनी प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन न होना।

आगे की राह :

  •  वैज्ञानिक शोध, प्रकाशन और बेहतर कार्यप्रणालियों के विकास के माध्यम से आयुष प्रणालियों की प्रभावकारिता और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को हल करना।
  • डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना ताकि आयुर्वेद के पारंपरिक ज्ञान को चोरी और दुरूपयोग से संरक्षित किया जा सके।
  • गुणवत्ता और उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु आदर्श स्थितियों में औषधीय पौधों की कृषि के लिए राज्यों द्वारा प्रोत्साहन।
  • भविष्य के वैद्यों के शिक्षण और प्रशिक्षण मानको में सुधार करने हेतु पारंपरिक स्वास्थ्य कॉलेजों के लिए प्रमाणन प्रणाली।
  • आयुष कार्यप्रणालियों हेतु वैश्विक स्वीकृति प्राप्त करने के लिए आयुष औषधियों, फार्मूलेशन और थेरेपी का क्लीनिकल ट्रायल।

हाल ही में नेशनल हेल्थ पॉलिसी (NHP), 2017 द्वारा आयुष को स्वास्थ्य वितरण प्रणाली में ‘स्टैंड अलोन से त्रिआयामी मुख्यधारा’ में सम्मिलित करते हुए, इसको मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में समाविष्ट करने की सकारात्मक पहल की गई है।

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