न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ : न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाले विभिन्न प्रावधान
प्रश्न: लोकतंत्र में स्वतंत्र न्यायपालिका का क्या महत्व है? न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने हेतु हमारी राजनीतिक संवैधानिक व्यवस्था में निहित रक्षोपायों पर प्रकाश डालिए। (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता के अर्थ का वर्णन कीजिए।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता की आवश्यकता का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाले विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- न्यायिक उत्तरदायित्व के साथ न्यायिक स्वतंत्रता के संतुलन की आवश्यकता बताते हुए निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
भारत में लोकतंत्र, सरकार के तीनों अंगों के मध्य शक्तियों के पृथक्करण की संवैधानिक योजना पर निर्भर है। इसके तहत नागरिकों के अधिकारों का विधिवत संरक्षण सुनिश्चित करने तथा शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए इन तीनों अंगों के मध्य पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था की गयी है। अतिक्रमण, दबाव तथा हस्तक्षेप से मुक्त एक स्वतंत्र न्यायपालिका इस व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग है।
भारतीय न्यायपालिका, शीर्ष स्तर पर उच्चतम न्यायालय (SC) तथा राज्य स्तर पर उच्च न्यायालयों (HCs) के साथ, भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। उच्चतम न्यायालय एक संघीय न्यायालय, अपील के लिए शीर्षस्थ न्यायालय तथा संविधान का संरक्षक है। उच्च न्यायालयों के साथ यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता निम्नलिखित रक्षोपायों द्वारा सुनिश्चित की गई है:
- नियुक्ति की व्यवस्था- उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायलयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायपालिका के कॉलेजियम की अनुशंसाओं के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस प्रक्रिया के माध्यम से कार्यपालिका के पूर्ण विवेकाधिकार में कटौती की गई है तथा न्यायिक नियुक्तियां राजनीतिक विचारों पर आधारित नहीं हैं।
- कार्यकाल की सुरक्षा- न्यायाधीशों को केवल संविधान में उल्लिखित आधारों पर ही हटाया जा सकता है।
- किसी भी विधायिका में न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा नहीं की जा सकती है, केवल उस परिस्थिति को छोड़कर जब महाभियोग का प्रस्ताव विचाराधीन हो।
- नियत सेवा शर्ते- न्यायाधीशों की नियुक्ति के पश्चात् उनके वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार इत्यादि में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किए जा सकते है।
- व्यय संचित निधि पर भारित होते हैं- इस कारण, ये व्यय वार्षिक संसदीय मतदान से मुक्त होते हैं।
- न्यायपालिका की अवमानना हेतु दंड देने की शक्ति- इसके कारण न्यायपालिका के कार्यों और निर्णयों का मनमाने ढंग से विरोध या आलोचना नहीं की जा सकती है।
- अन्य प्रावधान- जैसे कि सेवानिवृत्ति के पश्चात् प्रैक्टिस पर प्रतिबन्ध, संसद को न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार को कम करने की शक्ति प्राप्त न होना, अपने कर्मचारियों को नियुक्त करने की स्वतंत्रता आदि भी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने में सहायता प्रदान करते हैं।
किसी लोकतांत्रिक राजनीति में, सभी शक्तियाँ नागरिकों के विश्वास में निहित होती हैं तथा इनका प्रयोग अनिवार्य रूप से नागरिकों के हित में किया जाना चाहिए। अतः, न्यायपालिका की स्वतंत्रता का संरक्षण सुनिश्चित करते हुए, इसका न्यायपालिका के उत्तरदायित्व तथा पारदर्शिता के साथ संतुलन स्थापित करना अनिवार्य है।
Read More
- भारत में न्यायिक प्रणाली में आवश्यक सुधारों का विस्तारपूर्वक वर्णन
- संघवाद की अवधारणा : भारतीय संघ की व्याख्या
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 : भारतीय संविधान विश्व के अन्य संविधानों के सर्वोत्तम लक्षणों से प्रभावित
- सिटीजन चार्टर : सार्वजनिक सेवाओं को नागरिक केंद्रित बनाने में सहायता करता है।
- भारतीय सन्दर्भ में ‘तत्व एवं सार’ के सिद्धांत (doctrine of ‘Pith and Substance’) की बुनियादी अवधारणा