लोक सेवकों के आचरण : एक पृथक आचार संहिता और नैतिक संहिता की आवश्यकता के तर्काधारों का वर्णन

प्रश्न: यह सार्वजनिक कार्रवाई और निजी हित के अंतरफलक (इंटरफ़ेस) पर है, जिससे न केवल नैतिक संहिता बल्कि आचार संहिता तैयार करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है। इस संदर्भ में, नैतिक संहिता के साथ-साथ आचार संहिता का प्रारूप तैयार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • लोक सेवकों के आचरण को विनियमित करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
  • एक पृथक आचार संहिता और नैतिक संहिता की आवश्यकता के तर्काधारों का वर्णन कीजिए।
  • दोनों के मध्य मेहत्वपूर्ण भिन्नताओं पर प्रकाश डालिए।
  • इसका उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिए कि इनके उद्देश्यों में समानता के कारण दोनों को कैसे पूरक बनाया जा सकता है।

उत्तर

लोक सेवा संगठन के लिए यह अनिवार्य है कि वह इस प्रकार आचरण करें कि सरकार और उसके संस्थानों की सत्यनिष्ठा में लोक विश्वास को संरक्षित और बढ़ावा दिया जा सके। लोक सेवकों के संदर्भ में, व्यवहार के मानकों को और अधिक सख्त बनाना चाहिए, क्योंकि लोगों के भविष्य का मार्गदर्शन करने वाले किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति/संगठन को न केवल नैतिक होना चाहिए बल्कि उसके व्यवहार में भी इन नैतिक मूल्यों को परिलक्षित होना चाहिए।

हालांकि, कानूनों और नियमों की कोई विस्तृत प्रणाली पूर्ण रूप से सभी परिस्थितियों के लिए उत्तरदायी नहीं हो सकती है (विशेषकर उस स्थिति में जब एक लोक सेवक के विवेकाधिकार की सीमा में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है)। वस्तुतः ऐसे में न सिर्फ़ एक नैतिक संहिता अपितु एक आचार संहिता को स्थापित करने की आवश्यकता की उत्पत्ति; सार्वजनिक कार्रवाई और निजी हित के अंतरफलक (इंटरफ़ेस) पर होती है।

नैतिक संहिता में उचित व्यवहार और सुशासन के व्यापक मार्गदर्शक सिद्धांत सम्मिलित होते हैं। ये व्यापक नैतिक मानकों के संबंध में किसी संगठन के सदस्यों के लिए अनुस्मारक के रूप में कार्य करते हैं; उदाहरण के लिए सत्यनिष्ठा बनाए रखना, कार्य पद्धति में पारदर्शिता सुनिश्चित करना आदि। ये कठिन या अस्पष्ट परिस्थितियों में नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

हालांकि, केवल नैतिक संहिता (CoE) ही पर्याप्त नहीं है, आचार संहिता (CoC) भी आवश्यक है, क्योंकि आचार संहिता स्वीकार्य और अस्वीकार्य व्यवहार और कार्रवाई की एक निश्चित और सुस्पष्ट सूची प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह विशिष्ट करने योग्य (do’s) और न करने योग्य (don’ts) कार्यों, जैसे रिश्वत स्वीकार न करना, मीडिया के समक्ष संगठन की आंतरिक कार्यप्रणाली को उजागर न करना आदि के अनुपालन को बढ़ावा देती है। यह लोक सेवकों को गलत कार्यों के प्रति सचेत भी करती हैं तथा अनुचित कार्यों की पहचान कर सक्रिय रूप से इसका समाधान करती हैं। इसलिए, ये अनुचित कार्य करने के विरुद्ध भ्रष्ट या संभावित भ्रष्ट अधिकारियों के मस्तिष्क में एक मानसिक अवरोध उत्पन्न करने हेतु भी आवश्यक है।

एक स्पष्ट संहिता की आवश्यकता इसलिए भी उत्पन्न होती है चूँकि सिविल सेवकों (एक व्यक्ति के रूप में) के पास उनके मार्गदर्शन के लिए स्वयं के सिद्धांत हैं। इससे पृथक-पृथक व्यक्तियों के साथ कार्यवाई में विसंगतियां उत्पन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त, एक स्पष्ट रूप से प्रतिपादित संहिता में, व्याख्या की आवश्यकता नहीं होती है और इस प्रकार यह सिविल सेवकों के व्यवहार को मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु एक वस्तुनिष्ठ साधन के रूप में कार्य करती है। नैलिक संहिता और आचार संहिता दोनों ही परस्पर संबंधित है। जहां CoE कर्तव्यों के निष्पादन हेतु उच्च सिद्धांत प्रदान करती है, वहीं CoC उच्च सिद्धांतों से व्युत्पन्न दिशानिर्देशों का एक विशिष्ट समुच्चय प्रदान करती है।

नैतिक संहिता का उपयोग आचार संहिता को संशोधित कर उन व्यवहारों या परिस्थितियों को शामिल करने के लिए किया जा सकता है, जो पूर्व में शामिल नहीं थे। जबकि आचार संहिता अप्रत्यक्ष रूप से उन मानकों को स्थापित करके नैतिक संहिता की सहायता करती है जिनके माध्यम से लोक सेवकों द्वारा अपनी कार्यवाई का परीक्षण किया जा सकता है और अंततः उनमें सही कारणों के लिए सही कार्य करने की आदत अंतर्निविष्ट हो जाती है। इस प्रकार, दोनों एक ही उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य करते हैं और परस्पर पूरक होते हैं।

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