धर्म परिवर्तन का अधिकार (Right to Convert)
“धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार” से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधानः
अनुच्छेद 25: लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार होगा।
अनुच्छेद 26: लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को धार्मिक और परोपकारी प्रयोजनों के लिए संस्थानों की स्थापना और पोषण का, अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का तथा ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 27: इस अनुच्छेद में वर्णित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं।
अनुच्छेद 28: इस अनुच्छेद के तहत यह अनिवार्य है कि राज्य द्वारा वित्त पोषित शैक्षणिक संस्थानों में कोई धार्मिक निर्देश नहीं दिया जाएगा।
अन्य संबंधित तथ्य
निम्नलिखित अवलोकन 26 वर्षीय होम्योपैथी छात्रा हादिया के बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के भाग हैं। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित निर्णय दिया:
- चयन का अधिकार (Right to choice): धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता किसी भी व्यक्ति की स्वायत्तता के लिए आवश्यक है।आस्था का चयन व्यक्ति का बुनियादी विषय है जिसके अभाव में धर्म के चयन का अधिकार आधारहीन हो जाता है।
- स्वतंत्रता (Liberty): विश्वास और आस्था सम्बन्धी विषय (जिसमें किसी भी धर्म में विश्वास करना सम्मलित है) संवैधानिक स्वतंत्रता की मूल भावना में निहित हैं और यह संविधान विश्वास करने वालों के साथ-साथ अनीश्वरवादियों (agnostics) के लिए भी उपलब्ध है।
- पहचान (Identity): पहनावा एवं भोजन, सोच एवं विचारधारा, प्रेम एवं जीवनसाथी चुनना आदि पहचान के केन्द्रीय पहलू हैं। जीवनसाथी के चयन में समाज की कोई भूमिका नहीं होती है।
- संवैधानिक संरक्षण (Constitutional Protection): संविधान प्रत्येक व्यक्ति की जीवन शैली या विश्वास (जिसका पालन वह करना चाहता है) को बनाए रखने की क्षमता को सुरक्षा प्रदान करता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्म के चयन और अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार सार्थक अस्तित्व के मूलभूत भाग हैं। राज्य और “पितृसत्तात्मक सर्वोच्चता” व्यक्ति के इस निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।
यह सर्वोच्च न्यायालय के “प्रचार (propagate)” शब्द के संदर्भ में किए गए पूर्व निर्वचन में परिवर्तन करता है। पूर्व निर्वचन के अनुसार इसका अर्थ है “अपने धार्मिक सिद्धांतों का विस्तार करने हेतु किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म को प्रसारित करने या प्रचार करने का अधिकार प्राप्त है”, परन्तु किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म को परिवर्तित करने का अधिकार इसमें शामिल नहीं है।
भारत में धर्मांतरण का मुद्दा
- भारतीय संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 25 से 28) में भारत में विशिष्ट सीमाओं से युक्त धर्म की स्वतंत्रता (भारतीय नागरिकों तथा भारत में निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए) का वर्णन किया गया है। यद्यपि धर्म को भारतीय संविधान में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है तथापि न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से इसका समय-समय पर विस्तार किया गया है।
- हालांकि भारत में धार्मिक मामलों में राज्य का सीमित और अनुमेय हस्तक्षेप है। तथापि विभिन्न राज्य सरकारों (उत्तराखंड, झारखंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा इत्यादि) ने धर्मांतरण रोधी कानूनों को क्रियान्वित किया है जिनका उद्देश्य बलपूर्वक या प्रलोभन के माध्यम से किये जाने वाले धर्मांतरण को रोकना है। ऐसे कानून अत्यधिक आलोचना का विषय रहे हैं और इन पर धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
- संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित प्रावधानों में धर्मांतरण के अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया जिसके कारण यह मुद्दा जटिल हो गया है। विभिन्न मामलों में न्यायालय के निर्णयों ने धर्म की स्वतंत्रता और व्यक्ति के चयन के अधिकार के | आलोक में देश में धर्मांतरण के विषय पर एक महत्वपूर्ण समझ विकसित की है।
निष्कर्ष
यह समझना महत्वपूर्ण है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी दबाव या प्रलोभन के बिना अपना धर्म परिवर्तित करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार निरर्थक हो जाएगा। सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय उपकरण इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हैं कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार अन्तर्निहित है।
यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका में धर्मांतरण के लिए प्रलोभन देना भी विधिसम्मत है और इस प्रकार के प्रलोभन पर प्रतिबंध लगाने हेतु पारित किसी भी अध्यादेश या आदेश को न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया है। भारतीय संविधान धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है
परंतु यह स्पष्ट रूप से धर्मांतरण के अधिकार का उल्लेख नहीं करता है। धर्मान्तरण एक मूल अधिकार नहीं हो सकता है (जैसा कि स्टैनिसलॉस वाद में कहा गया है) परंतु धोखाधड़ी, जबरन और प्रलोभन जैसे तत्व नहीं होने पर निश्चित रूप से किसी भी व्यक्ति को धर्म-परिवर्तन का अधिकार है।