भारत में राजकोषीय संघवाद को सुदृढ़ करने में राज्य वित्त आयोग का महत्व

प्रश्न: भारत में राजकोषीय संघवाद को सुदृढ़ करने में राज्य वित्त आयोग के महत्व पर प्रकाश डालिए। क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि इन्हें अपनी यथोचित भूमिका के निर्वहन हेतु आवश्यक वातावरण प्रदान नहीं किया गया है?

दृष्टिकोण

  • राज्य वित्त आयोग (SFC) के सृजन एवं इससे संबंधित संवैधानिक अनुच्छेदों का उल्लेख कीजिए।
  • भारत में राजकोषीय संघवाद को सुदृढ़ करने में राज्य वित्त आयोग के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  • समझाइए कि किस प्रकार इन्हें अपनी यथोचित भूमिका के निर्वहन हेतु अनुकूल माहौल प्रदान नहीं किया गया है।
  • SFC के यथोचित कार्य संचालन को सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक उपायों का सुझाव देते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

राज्य वित्त आयोग (SFC) वस्तुतः भारत में राज्य/उप-राज्य स्तर के राजकोषीय संबंधों को तर्कसंगत बनाने और व्यवस्थित करने के लिए 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा सृजित एक विशिष्ट निकाय है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-1 और 243-Y के अंतर्गत इसके गठन से संबंधित उपबंधों को प्रतिष्ठापित किया गया है। इसका गठन प्रत्येक 5 वर्ष के उपरान्त सम्बंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा किया जाता है।

भारत में राजकोषीय संघवाद को सुदृढ़ करने में राज्य वित्त आयोग का महत्व:

  • यह निम्नलिखित विषयों को शासित करने वाले सिद्धांतों की अनुशंसा करता है
  • राज्य द्वारा उद्गृहीत करों, शुल्कों, पथकरों और फीसों के शुद्ध आगमों का राज्य और स्थानीय निकायों के मध्य वितरण को।
  • ऐसे करों, शुल्कों, पथकरों और फीसों के अवधारण को, जो स्थानीय निकायों को समनुदिष्ट की जा सकें या उनके द्वारा विनियोजित की जा सकें।
  • राज्य की संचित निधि से स्थानीय निकायों को सहायता अनुदान को।
  • स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक उपायों के संबंध में।
  • इसका प्राथमिक कार्य नागरिकों को मूलभूत सेवाओं के वितरण में बढ़ते हुए क्षैतिज असंतुलन में सुधार करना है।

राज्य वित्त आयोगों के समक्ष चुनौतियां:

SFC को अपनी यथोचित भूमिका के निर्वहन हेतु आवश्यक वातावरण प्रदान करना राज्यों का उत्तरदायित्व है। हालांकि, संघ एवं राज्यों के साथ-साथ पेशेवर समुदायों द्वारा इस संस्थान के महत्व की अनुचित उपेक्षा भी की गयी है, जो निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट होती है:

  • SFCs के गठन में विलम्ब: 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों के अधिनियमन के बाद से केवल कुछ राज्यों (असम, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और केरल) द्वारा ही निर्धारित अंतराल पर इन्हें गठित किया गया है।
  • विशेषज्ञता का अभाव: इनमें शिक्षाविदों या सार्वजनिक वित्त संबंधी विशेषज्ञता धारण करने वाले लोगों की बजाय सेवारत/सेवानिवृत्त नौकरशाहों का प्रभुत्व होता है।
  • विश्वसनीय फील्ड लेवल डेटा का अभाव।
  • केंद्रीय वित्त आयोग (13वें को छोड़कर) द्वारा भी SFCs को सुदृढ़ करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए हैं।
  • कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां SFC की अनुशंसाओं को न तो औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है और न ही SFC की रिपोर्ट राज्य विधायिका के समक्ष प्रस्तुत की गई है। उदाहरण स्वरूप- मणिपुर।
  • एक आयोग से दूसरे आयोग में संस्थागत ज्ञान और संस्थागत अनुभवों को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए कोई व्यवस्थित तंत्र नहीं है।

परिणामस्वरूप, SFC के वास्तविक कार्य संचालन हेतु आवश्यक वातावरण इनकी यथोचित भूमिका के निर्वहन हेतु अनुकूल नहीं रहा है। हालांकि, भारत में राजकोषीय संघवाद की मौजूदा व्यवस्था में SFCs द्वारा यथोचित भूमिका के निर्वहन हेतु निम्नलिखित उपाय किये जाने की आवश्यकता है:

  • SFCs के गठन और संरचना के लिए एकसमान परिचालनात्मक दिशानिर्देश विकसित करना।
  • जिला नियोजन समितियों को SFCs और विकास योजना के लिए डेटा-हब के रूप में कार्य करना चाहिए।
  • समेकित परिणामों के लिए राज्य और केंद्रीय वित्त आयोग की रिपोर्ट का समन्वय करना।
  • बेहतर परिणामों की प्राप्ति के लिए साक्ष्य आधारित कार्रवाई रिपोर्ट।

संवैधानिक स्थिति के संदर्भ में राज्य वित्त आयोगों को केंद्रीय वित्त आयोग के समान मानकर उनके कार्य संचालन में सुधार करने से स्थानीय निकायों के मध्य विद्यमान क्षैतिज वित्तीय असंतुलन की समस्या का समाधान किया जा सकता है और उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है।

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