भारत में क्षेत्रीय प्रवास तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दे
भारत में क्षेत्रीय प्रवास तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दे (Regional Migration in India and Security Issues)
प्रवास में अस्थायी या स्थायी निवास के उद्देश्यों हेतु राज्य सीमाओं से जनसंख्या के संचरण की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होती है। प्रवास प्रक्रियाओं के संचालन हेतु आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कारक सम्मिलित रूप से उत्तरदायी होते हैं।
प्रवासियों एवं शरणार्थियों के सम्बन्ध में मौजूद अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा मानदंड उनकी सभी समस्याओं से सम्बंधित नहीं हैं। उदाहरणार्थ बड़ी विकास परियोजनाओं तथा जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विस्थापन को मौजूदा कानूनों के अंतर्गत शामिल नहीं किया गया है।
असम में प्रवास
पृष्ठभूमि
- असम में चाय उद्योग का विकास अंग्रेजों द्वारा किया गया था। चाय बागानों में मज़दूरी के लिए उन्होंने बिहार तथा अन्य प्रांतों से श्रमिकों का आयात किया।
- असम के लोग मुख्य रूप से ऊपरी असम में निवास करते थे तथा प्रति वर्ष केवल एक ही फसल उपजाते थे। वे न तो चाय बागानों में श्रमिकों के रूप में कार्य करने और न ही कृषि उपज में वृद्धि अथवा विस्तार करने के इच्छुक थे।
- इसलिए, अंग्रेजों ने अकृषित भूमि पर कृषि करने हेतु वर्तमान बांग्लादेश से बंगाली मुस्लिम किसानों को निचले असम में आने के लिए प्रोत्साहित किया। इससे प्रवास की पद्धति निर्धारित हुई जो स्थानीय परिस्थितियों में परिवर्तन के बावजूद वर्तमान में भी जारी है।
- 1979 में असम से अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने के लिए असम के लोगों द्वारा सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन प्रारंभ किया गया। यह आन्दोलन 1985 में असम समझौते के साथ समाप्त हुआ।
अवैध प्रवास के उत्तरदायी कारक:
- जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि के कारण बांग्लादेश में भूमि पर दबाव तथा बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही वहां भयंकर बाढ़ तथा चक्रवात के परिणामस्वरूप जनसंख्या के बड़े हिस्से को विस्थापित होना पड़ा।
- बांग्लादेश से भारत में वृहत पैमाने पर प्रवास का प्रमुख कारण दोनों देशों के मध्य 4,096 किलोमीटर की छिद्रिल सीमा है। जिसकी बाड़बंदी का कार्य अभी तक पूर्ण नहीं हो पाया है।
- भारत में बेहतर आर्थिक अवसरों की उपलब्धता।
सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ
- असम आंदोलन: अवैध प्रवास के मुद्दे से निपटने में सरकार की विफलता के कारण असम लोगों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। | असम समझौता इस आंदोलन का ही परिणाम है।
- अवैध मतदाता: अधिकांश बांग्लादेशी आप्रवासियों ने मतदाता सूची में अवैध रूप से अपना नाम दर्ज कराते हुए राज्य की नागरिकता का दावा कर प्रस्तुत किया है। असम में आप्रवासी जनसंख्या राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक के रूप में कार्य करती है। हाल ही में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) पहल को प्रारंभ किया गया है। जिसका उद्देश्य राज्य में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान करना है।
- आतंकवाद का मुद्दा: पाकिस्तान की ISI बांग्लादेश में सक्रिय है और असम में आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन प्रदान करती है। यह भी आरोप लगाया जाता है कि आतंकवादी अवैध प्रवासियों के रूप में आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने हेतु असम में प्रवेश करते हैं।
भारत के लिए विकल्प
- कूटनीतिक प्रयास: भारत द्वारा बांग्लादेश का सहयोग प्राप्त करने के लिए कूटनीतिक राजनयिक प्रयास करने आवश्यक है। ,क्योंकि अवैध प्रवास की समस्या का समाधान बिना गंतव्य देश के सहयोग के किया जाना संभव नहीं है। बांग्लादेश द्वारा अपने नागरिकों के डिजिटल डेटाबेस के साझाकरण द्वारा यह प्रक्रिया और भी सुगम हो जाएगी।
- प्रतिरोधी कूटनीति: सुरक्षा बलों की कार्रवाई द्वारा अवैध प्रवासियों को स्पष्ट रूप से यह व्यक्त करना चाहिए कि यदि वे सीमा पार करने का प्रयत्न करेंगे, तो उनके लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- बेहतर सीमा प्रबंधन: बाड़बंदी, सीमा सड़कों का निर्माण तथा सीमा का उचित प्रबंधन करने से स्थिति में सुधार होगा।
- विशिष्ट पहचान संख्या (UID) योजना: डाटा को संकलित कर नए अवैध प्रवासियों के सुविधाजनक स्तर को कम करने में सहायता मिलेगी।
- मतदान अधिकारों से वंचित करना: पहले से मौजूद बांग्लादेशियों को केवल रोजगार की अनुमति दी जानी चाहिए न कि मतदान की। इससे इनकी एक राजनीतिक शक्ति के रूप में सरकारी निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता कम हो जाएगी।
रोहिंग्या शरणार्थी
- यह म्यांमार के रखाइन प्रान्त में निवास करने वाला मुस्लिम अल्पसंख्यक समूह है। बौद्ध बहुसंख्यक देश म्यांमार ने इन लोगों को नागरिकता से वंचित कर राज्यविहीन बना दिया है।
- लगभग 40000 रोहिंग्या प्रवासी अवैध रूप से भारत में निवास कर रहे हैं और अभी तक किसी को भी वापस नहीं भेजा गया
- सरकार के एक हलफनामे में कहा गया है कि एजेंटों तथा दलालों के माध्यम से म्यांमार से अवैध आप्रवासियों का एक संगठित अंतर्वाह हुआ। इस संगठित अंतर्वाह के माध्यम से अवैध आप्रवासियों/रोहिंग्याओं को बेनापोल-हरिदासपुर (पश्चिम बंगाल), कोलकाता, हिली (पश्चिम बंगाल), सोनामुरा (त्रिपुरा) और गुवाहाटी के माध्यम से भारत में प्रवेश कराया गया था।
उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपने एक हलफनामे में केंद्र ने कहा कि रोहिंग्या मुस्लिम भारत में नहीं रह सकते क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु एक खतरा हैं।
- सरकार के अनुसार कुछ रोहिंग्या आतंकवादी समूहों के साथ सम्बद्ध हैं और इसलिए उन्हें भारत में निवास करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- सुरक्षा एजेंसियों द्वारा दी गयी सूचनाएं हवाला चैनलों के माध्यम से फंड एकत्र करने, मानव तस्करी तथा जाली भारतीय पहचान दस्तावेजों की खरीद में रोहिंग्याओं की संलिप्तता की ओर संकेत करती हैं।
- इंटेलीजेंस रिपोर्ट से यह भी संकेत मिलता है कि ISIऔर ISIS सांप्रदायिक हिंसा द्वारा पूर्वोत्तर को अस्थिर करने के लिए | रोहिंग्या समुदाय का उपयोग करना चाहते हैं। ये संगठन देश के बौद्ध नागरिकों पर हिंसा के लिए भी कट्टरपंथी रोहिंग्या समुदाय का प्रयोग करना चाहते हैं।
विश्लेषण
- प्रवास तथा सुरक्षा का संबंध परस्पर जटिल एवं विरोधाभासी रहा है। व्यक्तियों और समुदायों ने प्रवास के खतरों को भिन्नभिन्न प्रकार से समझकर उसी के अनुसार कार्यवाही की है। स्थानीय तनाव के राजनीतिक हिंसा में परिवर्तित होने पर भारतीय राज्य के लिए प्रवास एक प्रमुख मुद्दा बन जाता है और राज्य सुरक्षा के समक्ष प्रत्यक्षतः चुनौती उत्पन्न करता है।
- यद्यपि इस सम्बन्ध में कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं कि प्रवास राष्ट्रीय चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तथापि प्रवास के मुद्दे को असम जैसे सीमावर्ती राज्यों में उच्च प्राथमिकता दी जाती हैं और राज्य एवं स्थानीय राजनीति में समर्थन में वृद्धि करने हेतु यह एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है।
- विभिन्न दृष्टिकोणों तथा प्राथमिकताओं के कारण प्रवास संबंधी नीतियां अधिक अस्पष्ट हो गई हैं। भारत में राष्ट्रीय नीतियों की अनुपस्थिति में राज्य सरकारें प्रवास एवं सीमा नियंत्रण पर अपने स्वयं के एजेंडे का अनुसरण करती हैं। क्षेत्रीय पार्टियाँ सुरक्षा एजेंडा स्थापित कर सकती हैं या नहीं, यह काफी हद तक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी राजनीतिक शक्ति पर निर्भर करता है।
- राज्य एवं गैर-राज्य अभिकर्ता प्रवास को राष्ट्रीय पहचान तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए एक खतरा बताकर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे को सुरक्षा संबंधी समस्या के रूप में देखने लगते हैं। ऐसा करके वे प्रवासियों तथा नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित कर देते हैं और पहले से ही सुभेद्य जनसंख्या के समक्ष जेनोफोबिया (विदेशियों के प्रति भय की भावना) और हिंसा की समस्या भी उत्पन्न कर सकते हैं।
आगे की राह
- एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दे के रूप में प्रवास बहुपक्षीय दृष्टिकोणों एवं क्षेत्रीय समाधानों की मांग करता है। इसके साथ ही अनियमित प्रवास और मानव तस्करी जैसी समस्याओं के समाधान हेतु भी सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए।
- प्रवास के प्रवाह को विनियमित करने, आंतरिक विस्थापन और शरणार्थी संकट का समाधान करने तथा सीमा सुरक्षा में वृद्धि करने के लिए क्षेत्रीय फ्रेमवर्क को विकसित करने में भारत एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
- भारत को वर्तमान मानवतावादी संकट के समाधान के लिए बांग्लादेश और म्यांमार दोनों देशों के साथ समन्वित रूप से कार्यवाही करनी चाहिए। इसके साथ ही भारत-बांग्लादेश और भारत-म्यांमार अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की सक्रिय निगरानी की।