क्षेत्रवाद : उग्रवाद एवं अलगाववाद

प्रश्न: क्षेत्रवाद को तब तक हानिकारक नहीं माना जाना चाहिए जब तक कि यह उग्रवादी एवं आक्रामक रुख न अपनाए तथा अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा न दें। चर्चा कीजिये।

दृष्टिकोण

  • क्षेत्रवाद को परिभाषित कीजिए।
  • राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में इसके कारण उप-राष्ट्रीय आकांक्षाओं को जन्म देने में क्षेत्रीयता द्वारा निभाई गई भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • राष्ट्रवाद के प्रति क्षेत्रीयता को विरोधी बनाने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

क्षेत्रवाद, एक राष्ट्र राज्य के भीतर एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों के एक वर्ग के विशिष्ट जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक या आर्थिक हितों के दावे को संदर्भित करता है। क्षेत्रवाद, स्वतंत्रता के बाद के समय में विविध मांगों के रूप में उभरा तथा उप-राष्ट्रवाद एवं अलगाववादी प्रवृत्तियों के उदय में योगदान दिया। उदाहरण स्वरूप पंजाब और उत्तर पूर्व में अलगाववादी आंदोलन। हालांकि, राष्ट्रवाद राज्य के गठन के लिए स्वाभाविक रूप से हानिकारक नहीं है।

सकारात्मक क्षेत्रवाद:एक राष्ट्र के लिए आवश्यकता/अनिवार्यता

  •  क्षेत्रवाद, जब तक कि प्रकृति में अलगाववादी न हो, निर्णय निर्माण में विभिन्न क्षेत्रों से इनपुट शामिल करते हुए लोकतंत्र के एक सारभूत तत्व के रूप में कार्य करता है।
  • क्षेत्रवाद विभिन्न क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता करता है। उदा- वर्ष 2000 में, 3 नए राज्यों के गठन ने जनजातीय पहचान और प्रतिनिधित्व की आकांक्षाओं को पूर्ण किया।
  • क्षेत्रवाद देश के लोगों को बेहतर सुरक्षा और सकारात्मक भेदभाव प्रदान करने में सहायता करता है क्योंकि यह भारत में जातीय-राष्ट्रीय पहचान के पक्ष में समरूप राष्ट्रीय पहचान की अवधारणा का विस्तार करता है। उदाहरण के लिए – 5वीं और छठी अनुसूचियां अधिक अनुसूचित जनजाति आबादी वाले क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष संस्थागत उपाय प्रदान करती हैं।
  • क्षेत्रीय विकास और सामाजिक-राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव भी राज्य पुनर्गठन के लिए प्रमुख मुद्दा बन गया। उदा0 अपनी भूमि के बेहतर विकास हेतु तेलंगाना को एक पृथक राज्य का दर्जा प्रदान किया है।
  • हाल के वर्षों में उप राष्ट्रवाद या क्षेत्रीयवाद ने क्षेत्रीय विकास के लिए सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद जैसी राजनीतिक आर्थिक व्यवस्था विकसित करने में सहायता की है।
  • उप राष्ट्रीय पहचान और एकजुटता भी सकारात्मक सामाजिक परिणाम देते हैं। दक्षिणी राज्यों की प्रतिबद्धता और सामाजिक कल्याण में सफलता का श्रेय यूपी और बिहार जैसे राज्यों को दिया जा सकता है।

नकारात्मक क्षेत्रवाद: बलकनीकरण/विभाजन के लिए उपाए

  • कई बार, क्षेत्रवाद अलगाववाद, सैन्यवाद, उग्रवाद और आतंकवादी गतिविधियों का एक प्रमुख कारण बन जाता है। पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन इसका उदाहरण है।
  • यह राष्ट्रीय एकता के लिए भी खतरा बन जाता है जब राजनेता संकुचित क्षेत्रवाद में लिप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने महाराष्ट्र में गैर-स्थानीय लोगों के रोजगार का विरोध किया, बिहार के प्रवासी मजदूरों पर 2003 में ULFA द्वारा हमला किया गया आदि।
  • क्षेत्रीय राजनीतिक स्थिति ने विभिन्न असंवैधानिक मनोभावों और धारणाओं को जन्म दिया है, जैसे ‘भूमि पुत्र (सन ऑफ़ सॉइल) सिद्धांत जहां मुख्य भाषाई समूह राज्य के संसाधनों पर नियंत्रण का दावा करता है।
  • इसने कुछ मामलों में राज्यों के मध्य विवादों को बढ़ावा देते हुए अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहित किया है। उदा क्षेत्रवाद ने तमिलनाडु और कर्नाटक के मध्य कावेरी जल विवाद को और अधिक वृद्धि कर दिया है।

भारतीय संदर्भ में क्षेत्रवाद सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों सिद्ध हुआ है। राष्ट्रीय हितों से समझौता किए बिना स्थानीय मांगों को संतुलित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्षेत्रीय मांगें लोकतांत्रिक विकास का आधारभूत तत्व हैं। इसलिए, किसी सामाजिकसांस्कृतिक पहचान को अन्य की तुलना में विशेषाधिकार दिए बिना क्षेत्रीय आकांक्षाओं को भारत की बहुलतावादी राष्ट्रीय पहचान का निर्माण करना चाहिए।

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