केस स्टडीज : आदिवासी समुदाय

प्रश्न: एक निजी कंपनी ने मुख्यत: देशज आदिवासी समूहों की आबादी वाले राज्य में एक तेज बहाव वाली नदी से प्राप्य संभावनाओं का दोहन करने के लिए एक वृहद् जल विद्युत परियोजना का प्रस्ताव दिया है। यह राज्य पिछड़ा है और इसे सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु अत्यधिक धन की आवश्यकता है। राज्य सरकार इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रही है और इस प्रकरण पर अभी अंतिम निर्णय लेना शेष है। जहां इस परियोजना से पर्याप्त राजस्व और रोजगार सृजन की आशा है, वहीं इससे आस-पास के क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे, जिससे अंततः आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा। चिंता का एक और मुद्दा यह है कि आदिवासी समुदाय इस भूमि तथा नदी को पवित्र एवं अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए अभिन्न मानते हैं। इस प्रकार, आदिवासी इस परियोजना को आगे बढ़ाने के पक्षधर नहीं हैं और पहले से ही इसका विरोध कर रहे हैं। उनके नेता ने सरकार द्वारा इस परियोजना को आगे बढ़ाए जाने की स्थिति में आमरण अनशन आरंभ करने धमकी दी है। इसने मुख्यधारा के मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी ध्यान आकर्षित किया है।

उपर्युक्त जानकारी के आधार पर, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) इस प्रकरण में सम्मिलित हितधारकों और उनके संबंधित हितों की पहचान कीजिए।

(b) सम्मिलित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, क्षेत्र में संधारणीय विकास सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न हितों के बीच कैसे समन्वय स्थापित किया जा सकता है?

दृष्टिकोण

  • प्रकरण में वर्णित मुद्दों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • निर्दिष्ट प्रकरण में सम्मिलित हितधारकों का वर्णन कीजिए और उनके हितों का उल्लेख कीजिए।
  • इस बात पर चर्चा कीजिए कि क्षेत्र में संधारणीय विकास सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न हितधारकों के हितों के बीच कैसे समन्वय स्थापित किया जा सकता है।

उत्तर

निर्दिष्ट प्रकरण विकास-प्रेरित विस्थापन से उत्पन्न मुद्दों और इस कारण विस्थापित समूहों, क्षेत्रीय निवासियों पर पड़ने वाले सामाजिक व आर्थिक प्रभावों को उचित रूप से दर्शाता है।

(a) इस प्रकरण में सम्मिलित हितधारक और उनके हित इस प्रकार हैं:

  • इस क्षेत्र में रहने वाले देशज आदिवासी: यदि परियोजना उनके द्वारा बसाए गए क्षेत्र को जलमग्न कर देती है तो उन्हें विस्थापित होना पड़ेगा और वे अपना घर, उपजाऊ भूमि, सांस्कृतिक पहचान व स्थल, पारस्परिक-सहायता तंत्र इत्यादि लगभग सब कुछ खो देंगे। इसके अतिरिक्त, जिस भूमि और नदी को वे पवित्र तथा अपनी संस्कृति का एक अभिन्न अंग मानते हैं, उन्हें उजाड़ दिया जाएगा।
  • राज्य सरकार: इस परियोजना से यह आशा की जाती है कि यह एक ऐसे राज्य के लिए राजस्व का उत्पादन करेगी, जो पिछड़ा है और जिसे सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु धन की आवश्यकता है। इस प्रकार राज्य सरकार परियोजना से प्राप्त होने वाले संभावित लाभों के लिए इस पर विचार-विमर्श कर रही है। हालाँकि, सरकार को अपने विकास हितों को इसका विरोध करने वाले आदिवासियों के हितों के साथ संतुलित करना होगा।
  • राज्य के अन्य निवासी: यदि राज्य द्वारा उत्पन्न राजस्व का उपयोग कल्याणकारी गतिविधियों या अवसंरचनात्मक विकास के लिए किया जाता है तो वे इससे लाभ उठा सकते हैं। यह परियोजना उनके लिए रोजगार के अवसरों का सृजन भी करेगी।
  • निजी कंपनी: यदि विद्युत परियोजना अनुमोदित होती है तो यह कंपनी के व्यवसाय का विस्तार करेगी और उसके लिए अतिरिक्त राजस्व सृजित कर सकती है।
  • मीडिया प्रतिनिधि: उनकी रुचि मुद्दे की पर्याप्त कवरेज और परियोजना के बारे में सूचना के प्रसार में निहित है।
  • सामाजिक कार्यकर्ता: वे आदिवासी समूहों के अधिकारों और परियोजना के पारिस्थितिक प्रभावों के संबंध में चिंतित हैं।
  • पर्यावरण: प्रस्तावित विद्युत परियोजना का क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

(b) निर्दिष्ट परिदृश्य में कई मुद्दे सम्मिलित हैं। इनमें सम्मिलित हैं:  एक पिछड़े राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास, आदिवासियों का उनकी भूमि पर अधिकार और उनका संभावित विस्थापन, चयनित परियोजना स्थल का सांस्कृतिक महत्व होना, बड़े-पैमाने की परियोजनाओं के पारिस्थितिक परिणाम आदि। इस प्रकार, विभिन्न हितों के बीच समन्वय स्थापित करना और एक ऐसा समाधान अपनाना उचित है जो स्थायी और निष्पक्ष दोनों हो। यह निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:

  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिवासियों के अधिकारों को स्वीकार किया जाना चाहिए और उनके विस्थापन को रोकना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार को आदिवासी समुदाय के लिए नदी/भूमि के पवित्र होने के मुद्दे पर विचार करना चाहिए और अन्य व्यवहार्य विकल्पों की खोज करनी चाहिए।
  • परियोजना को स्वीकृति देने से पूर्व, सरकार को परियोजना की लागत और लाभों की जांच करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन, दोनों पहले ही किये जाने चाहिए और प्रभावित व्यक्तियों को इन मूल्यांकनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • इस समिति को परियोजना के पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इसके लिए वैकल्पिक स्थलों की पहचान के प्रयास करने हेतु भी निर्दिष्ट किया जाना चाहिए।
  • सामाजिक कार्यकर्ताओं को सरकार और विरोधी समूहों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना चाहिए। प्रभावित समूहों की चिंताओं को दूर करने के लिए विविध समुदायों पर आधारित चर्चाएँ की जानी चाहिए।
  • पुनर्वास के मामले में, आदिवासियों को उनकी पैतृक भूमि के निकट ही बसाया जाना चाहिए। उन्हें छोटे-छोटे समूहों में अलग-अलग भी नहीं किया जाना चाहिए, ताकि उनका सामाजिक सामंजस्य बरकरार रहे। इसके अतिरिक्त, उनके लिए मुआवजा-सह-पुनर्वास नीति भी उचित होनी चाहिए।
  • मीडिया की रिपोर्टिंग निष्पक्ष होनी चाहिए और दर्शकों को आकर्षित करने के लिए इस मुद्दे को सनसनीखेज नहीं बनाया जाना चाहिए।

सरकार के विकास लक्ष्यों को आदिवासियों के हितों और आकांक्षाओं के साथ संरेखित किया जाना चाहिए। जहां तक संभव हो जनजातीय जीवन के साथ छेड़-छाड़ नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं और परंपरा का विघटन हो सकता है।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.